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शिवाजी की पुत्रवधु ताराबाई भोंसले व शिवाजी द्वितीय

 ताराबाई भोंसले व शिवाजी द्वितीय (मराठा साम्राज्य की संरक्षिका )


ताराबाई (1700-1707)


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महारानी ताराबाई भोंसले


  • नाम -ताराबाई भोंसले

  • जन्म -1675ई.

  • पिता-हंबीरराव मोहिते(शिवाजी के सरसेनापति) 

  • पति-राजाराम प्रथम

  • पुत्र-शिवाजी द्वितीय

  • संरक्षिका-

  • मृत्यु -9 दिसंबर 1761 ई० 




राजाराम की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी ताराबाई से उत्पन्न उनका अवयस्क पुत्र शिवाजी द्वितीय सिंहासनारूढ़ हुआ।राज्याभिषेक के समय शिवाजी द्वितीय की उम्र मात्र 4 वर्ष थी| अतः ताराबाई छत्रपति शिवाजी द्वितीय व मराठा साम्राज्य की संरक्षिका बनी।ताराबाई अपनी क्षमता और सामर्थ्य के बल पर राज्य की वास्तविक शासिका बन गईं। उन्होंने भयानक संकटग्रस्त स्थिति में मराठा राज्य की रक्षा की।मुगलों से स्वतन्त्रता संघर्ष जारी रखा। उसने (ताराबाई) रायगढ़, सतारा तथा सिंहगढ़ आदि किलों को मुगलों से जीत लिया।

 राजगद्दी पर उत्तराधिकार का  प्रश्न विवादास्पद था । मराठा सरदार वैयक्तिक ईर्ष्या के कारण बंटे हुए थे । कई हजार मावली  अर्थात मराठों की पर्वतीय सैनिक टुकड़ी,को  मुगलों से वेतन प्राप्त होता था । मराठों की दूसरी राजधानी जिंजी के पतन के बाद औरंगज़ेब ने मराठा दुर्गों पर क्रमशः अधिकार करने के लिए अपने सभी संसाधन लगा दिए । महारानी ताराबाई  ने इन परिस्थितियों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई जिसके बारे में विरोधी मुस्लिम इतिहासकार खाफी खाँ ने प्रशंसापूर्वक  लिखा है, "ताराबाई के दिशा-निर्देशन में मराठों की गतिविधियाँ दिन-प्रतिदिन बढ़ने लगीं । उसने सेनापतियों की नियुक्ति और स्थानान्तरण, देश  में कृषि उपज तथा मुगल आधिपत्य के अधीन प्रदेशों पर हमलों की योजना आदि सभी कार्यों का नियंत्रण स्वयं अपने हाथों में ले लिया। उसने दक्कन के 6 सूबों का विध्वंस करने तथा अपने अधिकारियों का हृदय विजित करने के लिए सैनिक ट्रकड़ियाँ भेजने की ऐसी व्यवस्था की कि उसके राज्यकाल में मराठा के विरुद्ध औरंगजेब द्वारा किए गए सभी प्रयास विफल हो गए ।" ताराबाई ने जगह-जगह जाकर मुगलों के विरुद्ध मराठा अभियानों को दिशा-निर्देश दिया ।  उसके निर्देशन में 1703 में मराठों ने बरार पर आक्रमण किया ।फिर  1706 में उन्होंने गुजरात पर हमला करके बड़ौदा को लूट लिया । 1706 ई. में ही मराठों ने अहमदनगर में औरंगजेब के शिविर पर धावा बोल दिया।इसी तरह  औरंगाबाद के सूबे को मराठों द्वारा कई बार लूटा और बरबाद किया गया। इस अराजक और अव्यवस्थित परिस्थितियों में 3 मार्च, 1707 को औरंगजेब की दक्कन में ही मृत्यु हो गई । उस समय ताराबाई सत्तारूढ़ थीं। लगभग आधी शताब्दी तक चले इस मुगल-मराठा संघर्ष के दौरान औरगजेब की व्यापक राजनीतिक योजनाएँ निष्फल होकर रह गाई,  मुगल सेना छिन्न-भिन्न हो गईं और उसके संसाधन समाप्त प्रायः हो गए|


औरंगजेब की मृत्यु के बाद उसके पुत्र आजमशाह ने 8 मई 1707 ई० को शाहू को कैद से मुक्त कर दिया। परन्तु कैद से मुक्त होने के बाद जब शाहू सतारा पहुंचे, तब तक ताराबाई शिवाजी द्वितीय को छत्रपति घोषित कर  चुकी थी। शाहू की रिहाई के बाद ताराबाई और शाहू की सेनाओं के बीच राजगद्दी के प्रश्न को लेकर गृहयुद्ध शुरू हो गया और यह 1714 तक चला।

12 अक्टूबर, 1707 ई० में शाहू तथा ताराबाई के मध्य 'खेड़ा का युद्ध हुआ| जिसमें शाहू ने बालाजी विश्वनाथ की मदद से विजयी प्राप्त की। और 1708 ई० में शाहू ने मराठा सत्ता पर अधिकार कर लिया। अब मराठा राज्य दो विरोधी उपराज्यों में विभक्त हो गया। एक राज्य सतारा था जिस के प्रमुख शाहू थे|


दूसरे राज्य कोल्हापुर था| जिसके प्रमुख शिवाजी द्वितीय या वस्तुत: ताराबाई थी। पेशवाओं की शक्ति का उत्थान शाहू व राजाराम की विधवा पत्नी ताराबाई के मध्य चल रहे गृहयुद्ध के दौरान हुआ। चुंकि ताराबाई ने मुगलों के खिलाफ युद्ध में सक्रिय भाग लिया था तथा मुगल-मराठा युद्ध के दौरान राज्य की गृहनीति का संचालन भी कुशलता से किया था। इसी आधार पर वह गद्दी पर अपने पुत्र का अधिकार चाहती थी जबकि नियमानुसार गद्दी पर संभाजी का अधिकार होता था। रामचंद्र पंत (जिसे राजाराम के समय  निरंकुश शासक (हुकूमत पनाह) के अधिकार दिये गये थे) ने राजाराम की अन्य विधवा राजबाई के साथ षड्यंत्र रचा तथा उसके पुत्र संभाजी को ताराबाई के पुत्र शिवाजी के स्थान पर गद्दी देने की योजना बनाई। उन्होने शिवाजी द्वितीय व ताराबाई को बंदी बनाकर 1718 में संभाजी को छत्रपति घोषित कर दिया गया। इस प्रकार बिना किसी रक्तपात के ही शाहू के सबसे प्रबल शत्रु से छुटकारा पा लिया गया। यद्यपि इसके लिए मराठा राज्य को दो शासन इकाइयों सतारा तथा कोल्हापुर में विभाजित करना पड़ा किंतु तत्कालीन स्थिति में गृहयुद्ध की समाप्ति तथा शांति की स्थापना का कार्य राज्य विभाजन से कहीं अधिक महत्वपूर्ण था। शांति स्थापना का यह कार्य पेशवा बालाजी विश्वनाथ की कूटनीतिक कुशलता के कारण ही संभव हो सका।

इन दो प्रतिद्वन्दी शक्तियों (सतारा तथा काल्हापुर)  के मध्य शत्रुता अन्ततः 1731 ई० वार्ना की सन्धि के द्वारा समाप्त हुई। इस सन्धि में यह व्यवस्था की गई कि शम्भा जी द्वितीय मराठा राज्य के दक्षिणी भाग पर जिसकी राजधानी कोल्हापुर थी, शासन करे तथा उत्ती भाग जिसकी राजधानी सतारा थी, पर शाहू शासन करे।



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