उत्तरवर्ती मुगल शासक muhammad shah rangeela भारतीय इतिहास में
मुगल शासक muhammad shah rangeela भारतीय इतिहास में
मुहम्मदशाह (1719-1748)
मुगल दरबार परस्परविरोधी चार प्रमुख गुटों-तूरानी, ईरानी, अफगान और हिन्दुस्तानी, में विभाजित थे। पहले तीन दल गैर-भारतीय थे और उनकी गुटबाजी पूर्णतः ।जातीय अथवा धार्मिक भावनाओं पर आधारित थी, जिन्हें विभिन्न अमीरों द्वारा अपनी सुविधानुसार भड़काया जाता था|
मुहम्मद शाह
ऐसे समय में 1719 ई. में सैयद बंधुओं ने फ़र्रुख़सियर, के बाद रफीउद्दरजात,रफीउद्दौला,और फिर रोशन को मुहम्मदशाह के नाम से मुगल गद्दी पर पर बिठाया| जो गद्दी पर बैठने के समय केवल सत्रह साल का किशोर था । अब यह स्थिति सम्राट के चरित्र के कारण और खराब हो गई|
तारीख-ए-हिन्द के लेख रुस्तम अली के अनुसार "मुहम्मद शाह अपने कर्त्तव्यों के प्रति लापरवाह था लेकिन वास्तविकता यह थी कि उसे यह मालूम ही नहीं था कि उसके कोई कर्त्तव्य भी हैं जो उसे पूरे करने हैं ।” मुहम्मद शाह गद्दी पर बैठने के बाद एक वर्ष से अधिक समय तक अपने पूर्ववर्ती शासकों की भाँति सैयद बन्धुओं के हाथों में एक कठपुतली की तरह बना रहा । यद्यपि मुहम्मदशाह, सैयद बंधु, जिन्हें राजाओं का निर्माता कहा जाता था, के सहयोग से शासक बना था, किन्तु वह सैयद बंधुओं के बढ़ते हुए हस्तक्षेप से तंग आ गया था. अतः उसने सैयद बंधुओं की शक्ति पर रोक लगानेसैयद के लिए एक दल का गठन किया, जिसका नेतृत्व चिनकिलिचखाँ तथा सादात खान ने किया.
सैयद बंधुओं का अन्त:-
सैयद बन्धु भी शीघ्र ही मुगल दरबारी राजनीति का शिकार हो गए । उनके विरुद्ध षड्यन्त्र रचने वाला प्रमुख व्यक्ति चिन किलिच खाँ या निजाम-उल मुल्क था, जिसने इतिमाद -उद-दौला, सआदत खाँ, राजमाता और स्वयं सम्राट के साथ मिलकर सैयद बन्धुओं से मुक्ति पाने के लिए एक गुप्त योजना बनाई । पहले चिनकिलिच खाँ ने विद्रोह कर दिया. विद्रोह को दबाने के लिए सैयद हुसैन अली जो दक्कन में मुगल वाइसराय था, गया, किन्तु सैयद हुसैन अली खाँ, को उसके पुत्र के साथ दक्कन में धोखे से मार डाला गया (अक्टूबर 1720) । इसके एक माह उपरान्त उसके भाई सैयद अब्दुला खाँ को बन्दी बना लिया गया और बाद में उसे जहर देकर मार डाला गया ।इस प्रकार सैयद बंधुओं की बढ़ती हुई शक्ति का अंत हो गया|
सैयद बन्धुओं के पतन के बाद दरबार में षड्यन्त्र की बाढ़ आ गई और मुगल साम्राज्य का शीघ्रता से पतन होना शुरू हो गया ।
सैयद बन्धुओं के पतन के बाद मुगल दरबार की स्थति:-
सैयद बन्धुओं के पतन के बाद वह अपनी प्रेमिका एवं पत्नी रहमत-उन-निसा कोकी जिऊ, हाफिज़ खिदमतगार खाँ नामक एक हिजड़े और दरबार के कुछ अन्य प्रमुख अमीरों के चंगुल में फंस गया । पहले (अकबर,जहाँगीर…. आदि के समय) मुगलों के अधीन वज़ीर प्रमुख प्रशासक होता था जो सम्राट की नीतियों को कार्यान्वित करने के लिए एक साधन था । जिसे सम्राट अपनी इच्छानुसार नियुक्त अथवा निलम्बित कर सकता था|वज़ीर के हाथों की कठपुतली बन कर रह गया
सैयद बन्धुओं के पतन के बाद उसका पहला वज़ीर मुहम्मद अमीन खाँ था जिसने बादशाह को सैयद बन्धुओं के नियन्त्रण मुक्त कराने में अग्रणी भूमिका का निर्वाह किया था ।
जनवरी 1721 में मुहम्मद अमीन खाँ की मृत्यु के बाद यह पद निज़ाम-उल-मुल्क को सौंपा गया जिसने इसका कार्यभार एक वर्ष बाद सम्भाला । उसका कार्यकाल बहुत कम था । यद्यपि मूलतः दक्कन में वाइसराय के रूप में अपनी स्थिति मजबूत रखना चाहता था तथापि उसने साम्राज्य में फिर से जान डालने के लिए प्रशासकीय सुधारों की योजना तैयार ताकि प्रशासकीय कार्यक्षमता एवं कुशलता की पुनर्स्थापना और वित्त व्यवस्था में सुधार लाया जा सके।लेकिन मुहम्मद शाह ने उसकी प्रशासकीय योजना को समर्थन देने के स्थान पर उसके लिए परोक्ष रूप से मुसीबतें खड़ी कीं । अतः परेशान होकर उसने वज़ीर का पदभार छोड़कर दक्कन की ओर प्रस्थान किया, जहाँ उसने सैनिक विजय के द्वारा (अक्टूबर 1724) हैदराबाद में अपने स्वतन्त्र राज्य की स्थापना की ।
निज़ाम-उल-मुल्क के बाद मोहम्मद अमीन खाँ का पुत्र कमरूद्दीन वज़ीर बना।वह एक अकर्मण्य तथा शराबी था । अपने पद को सुरक्षित रखने और यथासम्भव कम से कम काम करने को अपनी सर्वोच्च बुद्धिमत्ता समझता था। तूरानी गुट की शक्ति का विघटन करने के लिए उसे बर्खास्त कर दिया गया। उसके उत्तराधिकारी रोशन-उद्-दौला को गबन करने का दोषी पाया गया। अतः उसके स्थान पर खान-ए-दौरों की वज़ीर के पद पर नियुक्ति की गई ।
1720 ई० में मुहम्मद शाह ने वसूल किये जाने वाले जजियाकर को अंतिम रूप से प्रतिबंधित कर दिया।
स्वतंत्र राज्यों का उदय:-
मुहम्मद शाह के शासनकाल के प्रारम्भिक दो दशकों में मुगल साम्राज्य का तेजी से विघटन हुआ ।
1722 में मुहम्मदशाह ने चिनकिलिच खां अथवा निजामुल मुल्क को वजीर के पद पर नियुक्त किया, लेकिन 1724 को निजामुल मुल्क बादशाह के शंकालू स्वभाव और दरबार में हो रहे निरन्तर झगड़ों, षड्यंत्रों से तंग आकर वजीर का पद छोड़कर दक्कन वापस चला गया।वहाँ जाकर मुहम्मदशाह के शासनकाल में ही निजामुलमुल्क (चिनकिलिच खाँ) ने हैदराबाद के 6 सूबों पर अधिकार कर लिया| और इस तरह1724 में चिनकिलिचखां ने दक्कन में स्वतंत्र हैदराबाद राज्य की स्थापना की, जिसको निजामशाही के नाम से जाना जाता है | मुहम्मदशाह ने उसकी स्वतंत्रता को मान्यता देते हुए उसे 'आसफजाह'की उपाधि प्रदान किया।
इसके अतिरिक्त मुहम्मदशाह के शासनकाल में 'बंगाल' (मुर्शीद कुली खां), दाउद खाँ ने रुहेलखण्ड में स्वतंत्र राज्यों की स्थापना की.), अवध (सआदतखां), जाटों ने भरतपुर, मथुरा (बदनसिंह) तथा गंगा-यमुना के दोआब में कटेहर रूहेलों के नेतृत्व में और फर्रुखाबाद के बंगश नवाबों ने अपनी स्वतंत्र सत्ता की स्थापना कर ली।
मालवा और गुजरात में मराठों के आक्रमणों ने इन प्रान्तों से मुगल सत्ता का सफाया कर दिया । और क्रमशः 1737 एवं 1741 में इन दोनों प्रान्तों पर मराठों ने अधिकार कर लिया । इसी तरह राजस्थान भी मुगल प्रभाव क्षेत्र से मुक्त हो गया ।
1737 में बाजीराव प्रथम के नेतृत्व में मराठा सेनायें शक्ति प्रदर्शन हेतु दिल्ली के पार्श्व तक पहुंच गई।
नादिरशाह का आक्रमण(1739ई०)
नादिरशाह 'ईरान के नेपोलियन' के नाम से प्रसिद्ध था|
मुहम्मदशाह के शासन काल में फारस के नादिरशाह ने 1738-39 के मध्य भारत पर आक्रमण किया| बादशाह ने उसके आक्रमण को रोकने के लिए निजामुलमुल्क, कमरूद्दीन खां और खान-ए-दौरां के नेतृत्व में सेना भेजी, जिसमें बाद में सआदत खां भी शामिल हो गया था।
13 फरवारी, 1739 को हुए करनाल के युद्ध में मुगल सेना बुरी तरह पराजित हुई, उसके बाद भी निजामुलमुल्क ने 50 लाख रुपये हर्जाने के रूप में देकर
नादिरशाह को वापस जाने के लिए मना लिया। लेकिन अवध के नवाब सआदत खां के बहकावे में आकर 20 मार्च, 1739 ई० को दिल्ली में प्रवेश कर नादिरशाह ने अपने चंद सैनिकों के मृत्यु के बदले भयंकर कत्लेआम किया, जिसमें करीब 20,000 के लोगों को कत्ल कर दिया गया।वह दिल्ली में रहकर कुल 57 दिन लगातार लूट-पाट करता रहा।कहते है कि उसने तैमूर से भी अधिक दिल्ली में रक्तपात किया. उसने भारत की अतुल सम्पत्ति को लूटा. स्वदेश जाते समय वह अपने साथ अपार धन सम्पत्ति, प्रसिद्ध मुगल राजसिंहासन 'तख्त-ए-ताऊस' (शाहजहाँ द्वारा निर्मित) तथा मुगल ताज में लगे विश्व के सर्वाधिक मंहगे हीरे 'कोहिनूर' के साथ मुहम्मदशाह द्वारा तैयार करवायी गई हिन्दू संगीत की प्रसिद्ध चित्रित फारसी पांडुलिपि को भी अपने साथ ले गया।
अवध के नवाब सआदत खां से नादिरशाह ने 20 करोड़ रुपये की मांग की जिसे न दे पाने पर सआदत खां ने विष खा कर आत्महत्या कर ली।
1739 में नादिरशाह भारत से वापस गया, व 1747 में उसकी मृत्यु हो गई।
- 1748 ई० में मुहम्मदशाह के ही शासन काल में नादिरशाह के उत्तराधिकारी अहमदशाह अब्दाली ने लगभग 50,000 सैनिकों के साथ 1748 में पंजाब पर आक्रमण किया जो असफल रहा, पुन: उसने 1749 में पंजाब पर आक्रमण कर सूबेदार मुइनुलमुल्क को पराजित किया।
मच्छीवाड़ा के समीप मनूपुर में अब्दाली की सेना को मार्च 1748 में शाहजादा अहमदशाह (मुहम्मदशाह के पुत्र) ने पराजित किया।
अहमदशाह अब्दाली को ''दुर्रे-दुर्रानी' (युग का मोती) कहा गया। नादिरशाह ने उसके बारे में कहा था कि "अब्दाली जैसे चरित्र का व्यक्ति सारे ईरान,तूरान और हिन्दूस्तान में नहीं देखा।"
मुहम्मदशाह सर्वाधिक विलासप्रिय शासक था |उसको अधिक समय महल की चारदीवारी के भीतर हरम की स्त्रियों तथा हिजड़ों में बिताने तथा असंयत आचरण के कारण 'रंगीला' अथवा रंगीले कहा गया। 1748 को मुहम्मदशाह की मृत्यु के बाद अगला मुगल बादशाह अहमदशाह हुआ।
0 Comments