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शिवाजी पौत्र छत्रपति शाहू महाराज का मराठा साम्राज्य

 शिवाजी पौत्र छत्रपति शाहू महाराज का मराठा साम्राज्य


शाहू (1707-1748 ई०)




  • नाम-छत्रपति शाहू महाराज

  • जन्म- 18 मई, 1682

  • जन्म स्थान -गंगावली गाँव ,रायगढ़

  • पिता-शम्भाजी

  • माता-येसुबाई

  • पत्नी-अंबिकाबाई और सावित्रीबाई।

  • मुगल कैद-3 नवम्बर, 1689 

  • मुगल कैद-17 वर्ष

  • शासन काल-1707-49

  • मृत्यु-1749

  • स्थान- सतारा


शाहू का जन्म रायगढ़  जिले के में गंगावली गाँव में हुआ था। उनका बचपन रायगढ़ में बीता। छत्रपति संभाजी की हत्या के बाद, मुगलों ने रायगढ़ किले (3 नवंबर, 1689) पर कब्जा कर लिया और शाहू, येसुबाई आदि को कैद कर लिया|इस तरह शम्भाजी का पुत्र शाहू  3 नवम्बर, 1689 से ही मुगलों की कैद में था । और

 लगभग सत्रह वर्षों तक औरंगजेब की हिरासत में रहा

। उसका स्वभाव कोमल, धार्मिक था|

उस समय उनकी व्यवस्था औरंगजेब की बेटी ज़ीनत उन्नीसा बेगम ने की थी।  वह शिक्षित था और दो विवाह (1703) हुए थे। उनकी दो पत्नियां हैं अंबिकाबाई और सावित्रीबाई। इसके अलावा, विरुबाई अंत तक उनकी नौकरानी थी। औरंगजेब ने शाहू को 7,000 जातों और 7,000 घुड़सवारों के साथ माननीय मनसब और राजा की उपाधि दी थी। 

 औरंगजेब ने उन्हें इस्लाम में परिवर्तित करने की कोशिश की लेकिन बेगम की मध्यस्थता से इस घटना को टाल दिया गया। 


औरंगजेब (1707) की मृत्यु के बाद, उसके पुत्र आजमशाह ने 8 मई 1707 ई० को शाहू को कैद से मुक्त कर दिया।

और औरंगजेब की मृत्यु के साथ ही मराठा स्वतन्त्रता संग्राम भी समाप्त हो गया, क्योंकि अब मुगलों ने मराठों से संधि कर ली तथा  मराठा शासक शाहू को मराठों का राजा में स्वीकार कर लिया. |औरंगज़ेब के पुत्र बहादुर शाह ने उसकी संप्रभुता को मान्यता देने के साथ ही उसे दक्षिण में चार उप-राज्यों खानदेश, वरहाद, औरंगाबाद, बीदर, हैदराबाद और बीजापुर के अधिकार दिए। 

अपनी मुक्ति के पश्चात जब शाहू सतारा पहुँचे , तब तक ताराबाई शिवाजी द्वितीय को छत्रपति घोषित कर दिया था। साथ ही ताराबाई ने उन्हें धोखेबाज कहा तथा अपने सेनापतियों को उन्हें विनष्ट करने का आदेश दिया लेकिन सामान्य जनता और सैनिक वर्ग शाहू के पक्षधर थे। मराठा सेनापति धनाजी जाधव तथा दीवान बालाजी विश्वनाथ की सहायता से शाहू ने विषम परिस्थितियों पर विजय पाई।इस वक्त तक मराठा उत्तराधिकार का प्रश्न बडा विवादास्पद हो चुका था| जिसे सुलझाने के लिए

शाहू की रिहाई के बाद ताराबाई और शाहू की सेनाओं के बीच राजगद्दी के प्रश्न को लेकर गृहयुद्ध शुरू हो गया और 2 अक्टूबर, 1707 ई० में शाहू तथा ताराबाई के मध्य 'खेड़ा का युद्ध हुआ| जिसमें शाहू, बालाजी विश्वनाथ की मदद से विजयी हुआ। 1708 ई० में शाहू ने सत्ता पर अधिकार कर लिया। अब मराठा राज्य दो विरोधी उपराज्यों में विभक्त हो गया। एक राज्य सतारा के प्रमुख शाहू थे


दूसरे राज्य कोल्हापुर के प्रमुख शिवाजी द्वितीय या वस्तुत: ताराबाई थी। शिवाजी द्वितीय की मृत्यु के बाद राजाराम का दूसरा पुत्र शम्भा जी  कोल्हापुर की गद्दी पर बैठा। इन दो प्रतिद्वन्दी शक्तियों (सतारा तथा काल्हापुर) के मध्य शत्रुता अन्ततः 1731 ई० वार्ना की सन्धि के द्वारा समाप्त हुई। इस सन्धि में यह व्यवस्था की गई कि शम्भा जी द्वितीय मराठा राज्य के दक्षिणी भाग पर जिसकी राजधानी कोल्हापुर थी, शासन करे तथा उत्तरी भाग जिसकी राजधानी सतारा थी, पर शाहू शासन करे।


मुगलों की कैद से शाहू की रिहाई तथा पेशवाओं का उत्कर्ष-


  • पेशवाओं की शक्ति का उत्थान शाहू व राजाराम की विधवा पत्नी ताराबाई के मध्य चल रहे गृहयुद्ध के दौरान हुआ।

  • शाहू के गर्दिश के इन दिनों में बालाजी विश्वनाथ बहुत  अधिक निष्ठावान, विश्वासपात्र और सक्षम हितैषी सिद्ध हुए ।

  • 1708 ई० में अपने सिंहासनारूढ़ होने के अवसर पर शाहू ने बालाजी विश्वनाथ को सेनाकर्ते (सेना के व्यवस्थापक) का पद प्रदान किया तथा अन्ततः 1713 ई० में उसे पेशवा के पद पर आसीन किया।

  • बालाजी विश्वनाथ की पेशवा के पद पर नियुक्ति के साथ ही यह पद शक्तिशाली हो गया, बालाजी और उसके उत्तराधिकारी राज्य के वास्तविक शासक बन गये। इसके बाद छत्रपति नाममात्र का ही शासक होकर रह गया|



शाहु का वृद्धावस्था में बीमारी और आंतरिक झगड़ों के कारण के निधन हो गया। शाहू का कोई पुत्र नहीं था। उन्होंने  ताराबाई के पोते और एक अन्य शिवाजी के बेटे राम राजा को गोद लिया | छत्रपति शाहू ने वर्षों मुगल सैन्य शिविर में बिताए गए थे। इसके अलावा, इस अवधि के दौरान, उनके पास कोई वास्तविक अनुभव नहीं था क्योंकि युद्ध और संघर्ष की कोई घटना नहीं थी। परिणामस्वरूप, वे विलासिता और रॉयल्टी का जीवन जीने के आदी थे। उन्हें शिकार करने और विभिन्न पक्षियों और जानवरों को इकट्ठा करने का शौक था। वह नृत्य और गीत के लिए विदेशों से नर्तकियों और गायकों को आमंत्रित करते थे। उन्हें बहुत कम सैन्य अभियानों का नेतृत्व करना पड़ा। उनके कार्यकाल के दौरान, मराठी शक्ति के विकेंद्रीकरण ने पेशवाओं के अद्वितीय महत्व को बढ़ा दिया। हालांकि, कठिन परिस्थितियों में गुणी व्यक्ति के विवेक और समय की पाबंदी के कारण, उन्होंने लंबे समय तक सत्ता (1707-49) का आनंद लिया। वे स्वयं सेना के अधिकारी, मनसबदार, पेशवा आदि हैं। उच्च पदस्थ अधिकारियों की नियुक्ति। परिस्थिति के अनुसार सही निर्णय लेना। उन्होंने बालाजी विश्वनाथ, बाजीराव प्रथम और बालाजी बाजीराव,जैसे सक्षम पेशवा प्राप्त किए| और चौथ-सरदेशमुखी की पुनर्प्राप्ति,आदि से  राज्य में वित्तीय स्थिरता आई|


शाहू के अधीन 'मराठा मण्डल':-


शाहू के अधीन 'मराठा मण्डल' या मराठा राज्यसंघ की स्थापना से शिवाजी द्वारा स्थापित मराठा प्रशासन का स्वरूप अब मूलतः परिवर्तित हो चुका था। राजाराम के शासनकाल में प्रतिनिधि के पद का सृजन किया गया । पदक्रम में पेशवा का पद प्रतिनिधि के बाद था । इस प्रकार शिवाजी के अष्टप्रधान में प्रतिनिधि सहित नौ मंत्री हो गए। यह नई प्रणाली सामन्तवादी और साथ ही वंशानुगत हो गई थी । योग्य तथा शक्तिशाली व्यक्तियों को राज्य की सेवाओं के प्रति आकर्षित करने तथा छत्रपति के प्रति उनकी सेवाओं और निष्ठा को बनाए रखने के लिए जागीर प्रथा फिर से प्रारम्भ की गई । इस प्रथा से वंशानुगत राजकर्मियों तथा जागीरदारों के सामन्तवादी वर्ग का उदय हुआ। ये मात्र राजस्व संग्राही तथा सैन्य अधिकारी ही नहीं बल्कि नव-विजित प्रदेशों के शासक भी बन बैठे । 'जीतो। और राज्य करो', मराठों की नई राजनीति का मूल मन्त्र बना|


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