उत्तरवर्ती मुगल शासक फ़र्रुख़सियर भारतीय इतिहास
2.फर्रुखसियर ( 1713-1719 ई० ):-
फर्रुखसियर के आदेश पर 11 फरवरी, 1713 को जहाँदार शाह की हत्या कर दी गई।व स्वयं मुगल सिंहासन पर बैठा| जिसमें उसका साथ सैय्यद बंधुओं-अब्दुल्ला खां और हुसैन अली ने दिया|
फर्रुखसियर जिस वक्त सिंहासनारुढ़ हुआ वह 31 वर्ष का युवा व्यक्ति था । फर्रुखसियर को मुगल सिंहासन सैय्यद बंधुओं-अब्दुल्ला खां और हुसैन अली खां बराह के सहयोग से मिला।सैय्यद बंधु जो हिन्दुस्तानी गुट के अमीर थे,इस उपकार के बदले उनको सम्मानित करने के लिए सम्राट ने सैयद अब्दुला खाँ को वज़ीर और उसके छोटे के भाई हुसैन अली खाँ को मीर बख्शी अथवा वस्तुतः मुख्य सेनानायक के रूप में नियुक्त किया ।
खाफी खाँ के अनुसार, "उसमें अपनी कोई ने इच्छाशक्ति नहीं थी। वह युवा, अनुभवहीन और राज्य के काम-काज के प्रति लापरवाह था ।"यह केवल नाममात्र का शासक था. उसके शासनकाल में वास्तविक सत्ता उसके प्रधानमंत्री अब्दुल्ला खाँ तथा प्रधान सेनापति सैयद अली खाँ के हाथ में रही.
उत्तरोत्तर मुगल काल में गुटबंदी:-
उत्तरोत्तर मुगल काल में ईरानी, तूरानी तथा हिन्दुस्तानी गुट के अमीर मुगल राज दरबार में सक्रिय थे।अमीरों के इन विभिन्न गुटों ने शासक निर्माता के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की|
इनमें भी तूरानी मध्य एशियायी मूल, ईरानी फारस और खुरासान के तथा हिन्दुस्तानी विदेशी मूल के वे मुसलमान थे जिनका जन्म हिन्दुस्तान में हुआ था या बहुत वर्षों से हिन्दुस्तान में निवास कर रहेथे।
शासनकाल के प्रारम्भ के साथ ही उसने अपने लिए मुसीबतें मोल ले लीं |
फर्रुखसियर ने तूरानी गुट के एक अन्य अमीर निजामुलमुल्क अथवा चिनकिलिच खां को दक्कन के छ: मुगल सूबों की सूबेदारी प्रदान की, इसने औरंगाबाद को अपना मुख्यालय बनाया|वह समकालीन मुगल साम्राज्य का योग्यतम व्यक्ति था|
कालांतर में फर्रुखसियर ने जुल्फिकार खां की धोखे से हत्या करवा दी। और उसकी संपत्ति को जब्त कर लिया गया|और उसका पिता असद खाँ 1716 में अपनी मृत्यु पर्यन्त दुःख झेलता रहा औरंगज़ेब काल के अन्तिम प्रतिष्ठित व्यक्ति को समाप्त करना उसकी एक भयंकर राजनीतिक भूल थी ।
फर्रुखसियर के सैन्य अभियान :-
फर्रुखसियर के शासन की अक्षमता और शक्तिहीनता ने शाही शासन के विरुद्ध विद्रोहों को भी प्रोत्साहित किया और इन विद्रोहों का दमन करने के लिए तीन सैन्य अभियान किए गए |
उसके शासन काल में जाटों के नेता चूड़ामण ने मुगलों के विरुद्ध विद्रोह किया.चूड़ामन जाट के नेतृत्व में हुए जाटों के विद्रोह को दबाने के लिए आमेर के सवाई जयसिंह ने एक सैन्य अभियान किया, जिसका अन्त समझौते में हुआ।
मारवाड़ के शासक अजीत सिंह जिसने बहादुर शाह के समक्ष समर्पण कर दिया था, पुनः स्वतंत्र हो गया और यहाँ तक कि उसने अजमेर पर भी अधिकार कर लिया । जो मुगलों का प्रदेश था| सैय्यद बंधुओं ने मारवाड़ के राजा अजीत सिंह के विरुद्ध सैन्य अभियान कर उसे पराजित किया, और उसे शांति संधि करने के लिए बाध्य किया| अजीत सिंह ने अपनी पुत्री का विवाह फर्रुखसियर से किया था।
फर्रुखसियर के समय में सिखों तथा मुगलों के बीच संघर्ष हुआ. सिख नेता बंदा बहादुर को हराने के बाद उसे पकड़ लिया गया और उसकी हत्या कर दी गई।
सैयद बंधुओं की शक्ति में लगातार वृद्धि होती गई |
सम्राट फर्रुखसियर ने इस आशंका से मुक्ति पाने के लिए कि सैयद बन्धु उसे राजसिंहासन से हटाकर किसी अन्य मुगल शहजादे को सिंहासनारूढ़ न कर दें उसने कैद में पड़े मुगल राजपरिवार के कुछ प्रमुख सदस्यों को अन्धा करवा दिया। उसने मीर जुमला जैसे अपने कुछ विशेष कृपापात्रों को सैयद बन्धुओं की अवहेलना करने की अनुमति दे दी।वैसे तो मार्च 1713 से ही सम्राट फर्रुखसियर और सैयद बन्धुओं में पारस्परिक झगड़े शुरु हो गए। परन्तु बादशाह में उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही करने का साहस नहीं था, अतः उसने उनके साथ समझौता कर लिया तथापि इस समझौते के बावजूद वह सैयद बन्धुओं को शक्तिहीन करने के लिए उनके विरुद्ध मूर्खतापूर्ण एवं विश्वासघाती चालें चलता रहा । अन्ततः फरवरी 1719 में यह मनमुटाव अपनी चरम सीमा पर पहुँच गए|
सैय्यद बंधुओं के प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से फर्रुखसियर उनके विरुद्ध षड्यंत्र रचने लगा, षड्यंत्र का समय से पहले पता चलने पर 1719 में सैय्यद बंधुओं में हुसैन अली खां ने तत्कालीन मराठा पेशवा बालाजी विश्वनाथ से दिल्ली की संधि ' की जिसके तहत मुगल साम्राज्य में प्रभुसत्ता के लिए हो रहे संघर्ष में मराठे सैन्य सहायता देंगे, बदले में उन्हें ढेर सारी रियायतें दी जायेंगी।
सैय्यद बंधुओं द्वारा फर्रुखसियर को( अप्रैल, 1719) गद्दी से हटा दिया गया |और मराठा पेशवा बालाजी विश्वनाथ, मारवाड़ के अजीत सिंह के सहयोग से 19 जून, 1719 को फर्रुखसियर को सिंहासन से अपदस्थ कर हत्या करवा दी।वास्तव में सैयद बन्धुओं को अपने जीवन और सम्मान की रक्षा के लिए यह कार्यवाही करनी पड़ी थी। इस तरह सैयद बन्धुओं और सम्राट फर्रुखसियर के मध्य मतभेदों का अन्त अत्यन्त दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण हुआ।
'स्राट को धक्के देकर राज सिंहासन से उतार दिया गया। नंगे पैर एवं नंगे सर सम्राट पर लगातार घूँसों और सबसे गन्दी गालियों की बौछार की गई । तदुपरान्त उसे बंदी बना लिया गया, भूखों मारा गया, अन्धा किया गया, जहर दिया गया और अन्ततः गला घोटकर मार डाला गया ।'
फर्रुखसियर को दुर्बल, कायर और निन्दनीय होने के कारण घृणित कायर कहा गया।
फर्रुखसियूर की हत्या और मुहम्मदशाह के बादशाह बनने के बीच सैय्यद बंधुओं ने रफीउद्दौला, रफीउद्दरजात को मुगल बादशाह बनाया।फर्रुखसियूर के स्थान पर पहले रफी-उश-शान (बहादुर शाह के द्वितीय पुत्र) के पुत्र रफी-उद्-दरजात, को मुगल सिंहासन पर बैठाया। जो अधिक शराब पीने के कारण शीघ्र ही मर गया। वह सैयद बन्धुओं के कैदी के रूप में जिया और मरा ।
इसके पश्चात् उन्होंने उसके बड़े भाई रफी-उद्-दौला को मुगल सिंहासन पर बिठाया |. रफीउदद्दौला 'शाहजहां द्वितीय' की उपाधि के साथ मुगल राजसिंहासन पर बैठा। वह अफीम का आदी एक बीमार युवक था ।दुर्भाग्य से सितम्बर 1719 में उसकी भी मृत्यु हो गई।
रफीउश्शान के दोनों पुत्रों की मृत्यु के बाद शाहजहां द्वितीय के पुत्र राशन अख्तर को सैय्यद बंधुओं ने अगला मुगल बादशाह बनाया।
अब सैयद बन्धुओं ने शाहजहाँ द्वितीय के पुत्र पुत्र (बहादुरशाह के चौथे पौत्र) का चयन किया। उसे सितम्बर 1719 में मुहम्मद शाह की उपाधि देकर सिंहासन पर बैठाया गया।
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