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ग्रीन बिल्डिंग (green biliding) या हरित इमारतें

हरित इमारतें :- 

ग्रीन बिल्डिंग या हरित इमारत उन्हें कहा जाता है जिसके डिजाइन से लेकर निर्माण, प्रचालन, रखरखाव तक में पर्यावरण का ध्यान रखा जाता है। इन्हें ग्रीन कंस्ट्रक्शन या सस्टेनेबल बिल्डिंग या पर्यावरण अनुकूल इमारतें भी कहा जाता है।
हरित इमारतों में परम्परागत इमारतों की अपेक्षा पानी व  बिजली की कम खपत, प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, ऊर्जा का अधिकतम उपयोग होता है तथा फिर भी यह परम्परागत इमारतों की तुलना में स्वस्थ व आरामदेह होती है साथ ही अपशिष्ट पदार्थ भी कम निर्मित होते हैं।
CII सोहराबजी गोदरेज ग्रीन बिजनेस सेंटर

      भारत में हरित इमारतों कि निर्माण 2003 में प्रारम्भ हुआ। हैदराबाद के CII सोहराबजी गोदरेज ग्रीन बिजनेस सेंटर के निर्माण के  साथ जिसकी शुरुआत हुई। फिर तो यह सिलसिला चल निकला और 2017 तक देश में लगभग 1 करोड़ 60 लाख वर्ग मीटर का हरित इमारत क्षेत्र बन गया। व 2017 तक  भारत ने हरित इमारतों के मामले में चीन व कनाडा के बाद तीसरा स्थान प्राप्त किया।

हरित इमारतों की आवश्यकता :-

आज हमारे देश में लगभग सभी  क्षेत्रों मे तेजी से निर्माण कार्य हो रहा है इन निर्माण कार्यों उनके प्रचालन तथा रखरखाव में काफी मात्रा में ऊर्जा की खपत होती है। जिससे ऊर्जा की मांग तेजी से बढ रही है।
लोगों की वहनीय क्षमता का बढ जाना।
शहरीकरण की वजह से जो वायु, जल, ध्वनि  आदि प्रदूषण हो रहा है, उसका आंशिक समाधान हरित इमारत हो सकता है।
बढी हुई ऊर्जा की खपत की पूर्ति कुछ हद तक हरित भवन बना कर की जा सकती है।

 हरित इमारतों की विशेषताएं :-


  •  वर्षा जल संचयन। 
  • अवशिष्ट जल पुनर्चक्रण।
  • दोहरी प्लम्बिंग प्रणाली।
  •  परिष्कृत कम प्रवाह वाले साजो समान। 
  • वायु व जल प्रदूषण रोकने हैतु बैरीकेट लगाना।
  •  निर्माण सामग्रीयों का समुचित प्रबंधन। 
  • सोलर लाइट सिस्टम व स्कायलाइट सिस्टम का उपयोग। 
  • अपशिष्ट प्रबंधन कार्य नीतियां। 

हरित इमारतों के निर्माण से लाभ:-


  • हरित इमारतों में परम्परागत इमारतों की अपेक्षा पानी व बिजली की खपत कम होती है।
  • हरित इमारतों मे ऊर्जा की अधिकतम राशि का उपयोग होता है।
  • इनके निर्माण में लम्बे समय में पैसे की बचत होती है।
  • परम्परागत भवनों की तुलना में कम अपशिष्ट उत्पन्न होता है।
  • इन भवनों में प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण होता है।
  • हरित इमारतें स्वास्थ्यकर व आरामदायक होती है।
  • यह गर्मी के प्रभाव को कम करती है।
  • स्वस्थ वातावरण उपलब्ध कराती हैं। 
  • उसी स्थान पर ऊर्जा उत्पादन का कार्य किया जाता है।
  • इनसे  अपेक्षाकृत प्रदूषण कम होता है।
  • इनमें ओजोन विघटन वाले उच्च  सम्भाव्यता वाले पदार्थों का उपयोग प्रतिबंधित होता है।
  • हरित इमारतों में निर्माण काल व उपयोग काल दोनों में समुचित सुरक्षा, स्वास्थ्य, व सफाई सुविधाएं सुनिश्चित की जाती है।
  • इनमें अच्छी विपणन की स्थिति पैदा होती है।

हरित रेटिंग प्रणाली :-

भारत में दो तरह की हरित रेटिंग प्रणाली प्रचलित है - 1.GRIHA (गृहा) :- 

इसका पूरा नाम ग्रीन रेटिंग फॉर इंटीग्रेटेड हैबिटेट एसेसमेंट काउंसिल है।यह एक रेटिंग प्रणाली है जिसे( GRIHA)  ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान तथा नवीन एवं अक्षय ऊर्जा मंत्रालय ने संयुक्त रूप से भारत में हरित इमारतों को बढावा देने के लिए स्थापित किया है।
इसका कार्य राष्ट्रीय स्तर के कुछ स्वीकार्य मानकों पर इमारतों कै प्रदर्शन को आंकने में लोगों की मदद करना है।

  • इस प्रणाली में 100 अंकों के साथ 34 मूल्यांकन मानदंड हैं इनमें से कुछ मानदंड अनिवार्य हैं व कुछ वैकल्पिक हैं तथा प्राप्त किये अंकों के आधार पर 1 से लेकर 5 स्टार तक विभिन्न स्तर की रेटिंग प्रदान की जाती है।
 भारत में पिछले एक वर्ष में इस परिषद ने कुल 80 इमारतों को हरित होने का प्रमाणपत्र दिया है।  तथा परिषद ने  दिल्ली में कुल 80 इमारतों का हरित होना प्रमाणित किया है।

LEED:- 

यह भी एक रेटिंग प्रणाली है। जिसका विकास अमेरिका में हुआ। अमेरिका में लीड का विकास अमेरिका हरित भवन परिषद् ने किया। तथा इसे वहाँ प्रायोगिक तौर पर लागू किया। 2001 में भारतीय हरित भवन परिक्तद की स्थापना हुई व इसने लीड प्रणाली को अपनाकर लीड भारत के रुप में इसके भारतीय संस्करण का आरम्भ किया।

भवनों की लीड भारत प्रणाली के अन्तर्गत प्लैटिनम, स्वर्ण, रजत  रेटिंग दी जाती है। अथवा लीड द्वारा प्रमाण पत्र दिये जाते हैं।
भारत की कुछ ग्रीन इमारतों के उदाहरण :-


  • आईआईटी कानपुर
  •  बीसीआईएल (बायो डायवर्सिटी कंजर्वेशन इंडिया लिमिटेड) टी-जेड इमारत बेंगलुरू ;
  •   टोरेंट आर एंड डी सेंटर, अहमदाबाद;
  •   इंस्पेक्टर जनरल ऑ़फ पुलिस ऑफिस कॉम्प्लेक्स,  गुलबर्गा (कर्नाटक) जो कि भारत की पहली सरकारी इमारत है जिसे लीड यानी लीडरशिप इन एनर्जी एंड एनवायर्नमेंटल डिज़ाइन की गोल्ड रेटिंग मिली है।
  •    मुंबई का सीमेंट हाउस, जिसे लीड ने गोल्ड रेटिंग दी है। 
  •    बी यानी ब्यूरो ऑफ एनर्जी एफिशिएंसी की इमारत;
 
हरित इमारतें समय की मांग हैं. जलवायु में होने वाले परिवर्तन को रोकने के लक्ष्य मुश्किल हो रहे हैं. बिजली की लागत बढ़ रही है, पानी कम हो रहा है और मौसम बार-बार विध्वंसक रूप दिखा रहा है। GRIHA’ के प्रमुख के अनुसार
 देश में दो प्रतिशत से कम इमारतें पर्यावरण अनुकूल हैं। लेकिन इस संख्या में बढोत्तरी करने के लिए बड़ा अवसर है क्योंकि भारत में अगले 20 वर्ष में करीब 60 प्रतिशत आधारभूत ढांचे बनाए जाने हैं।
अतः समय की मांग, पर्यावरण व अपने भविष्य को ध्यान में रखकर हमें अधिक से अधिक हरित इमारत बनाने के प्रयास करने चाहिए व दूसरे लोगों को भी जागरूक करना चाहिए ।
संदर्भ :चित्र गूगल से, jansatta.com,navbharattimes.indiatimes.com,अक्षय ऊर्जा  - mnre. Gov.in,grihaindia.org

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