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उत्तरवर्ती मुगल शासक अहमदशाह

उत्तरवर्ती मुगल शासक अहमदशाह


अहमद शाह (1748-54)



मुग़ल साम्राज्य केन्द्रीकृत  था और जिसमें शासक का व्यक्तित्व विशेष महत्व रखता है। केन्द्रीकृत  शासन में शक्तिशाली सम्राट के अधीन सब कुछ ठीक चलता है किन्तु जब शक्तिहीन उत्तराधिकारियों  के अन्तर्गत सम्पूर्ण शासन व्यवस्था गडबडा जाती है|और यही हाल मुगल साम्राज्य का था| वहाँ तो दुर्भाग्यवश औरंगजेब के पश्चात सभी मुग़ल सम्राट दुर्बल थे ।साथ ही उनके नैतिक पतन और सनकों के कारण वे आन्तरिक तथा बाह्य परिस्थितियों को नहीं संभाल सके बल्कि अवस्था संभलने के स्थान पर और भी बिगड़ गई। मुहम्मद शाह (1719-48) अपना अधिकतर समय पशु-युद्धों को देखने व सुरा -सुन्दरी में व्यतीत करता था। उसकी प्रशासन के प्रति उदासीनता, मदिरा और सुन्दरी के प्रति रुचि होने के कारण लोग उसे 'रंगीला' कहा करते थे। 


मुहम्मद शाह की मृत्यु के उपरान्त उसका एकमात्र पुत्र अहमद शाह(1748-54) उसका उत्तराधिकारी बना | गद्दी पर बैठने के समय यह 22 वर्ष का था |और विषय-वासनाओं में अपने पूर्वजों से एक कदम आगे था| उसका मुगल  हरम तो लगभग 4 वर्ग मील में फैला हुआ था जहां पुरुषों को आने की अनुमति नहीं थी।उसके बचपन और जवानी में महल की औरतें एवं हिजड़े ही उसके केवलमात्र साथी रहे थे| वह  सप्ताह भर या कई बार तो एक मास तक हरम में पड़ा रहता था। 

मुहम्मद शाह का पुत्र अहमद शाह का जन्म एक नर्तकी से हुआ था| अर्थात् उसकी माँ एक नृतकी थी जिससे मुहम्मद शाह ने विवाह किया|अहमद शाह की कोई शिक्षा-दीक्षा नहीं हुई थी और न ही उसने किसी प्रशासनिक या सैनिक दायित्व का ही निर्वाह किया था।


 इसलिए अहमद शाह ने मूर्खतापूर्ण प्रशासनिक निर्णय लिए। उसने अपने 2 वर्षीय पुत्र को 1753 में पंजाब का सूबेदार बनाया और एक वर्षीय बालक मुहम्मद अमीन को उसका नायब सूबेदार । इसी तरह कश्मीर की सूबेदार एक-वर्षीय बालक  सैयद शाह को बनाया और एक 15 वर्षीय लड़का उसका नायब |एसे निर्णय उस समय लिए गए जब अफ़ग़ानों के आक्रमणों का अत्यधिक डर था।

 



 मुगल शासक अहमदशाह  के काल में दरबारी गुटबंदी( 1748-1754 ):-




अहमदशाह के समय राजमाता उधमबाई के नाम से प्रसिद्ध महिला और उसके प्रेमी जाविद खाँ नामक हिजड़े, जो नवाब बहादुर के नाम से प्रसिद्ध था, का प्रशासनिक कार्यों में अत्यधिक हस्तक्षेप था। दरसल अहमदशाह सम्राट बनने के बाद शराब एवं शवाब में ही डूबा रहता था और उसने साम्राज्य की सम्पूर्ण प्रशासन व्यवस्था को राजमाता ऊधम बाई के हाथों में सौंप दिये। जिससे वह अत्यंत शक्तिशाली हो गई  उसने 'बिला-ए-आलम' की उपाधि धारण की।उधम बाई एक दुर्बुद्धि और दुश्चरित्र महिला थी| उसे 5,000 सवारों का मनसब भी प्राप्त था|इसी तरह जावेद खाँ जो हिजड़ों का सरदार था ,को 'नवाब बहादुर' की उपाधि प्रदान की।राजमाता ने स्वयं बड़े-बड़े राजविरुद धारण किए |और सम्पूर्ण मुगल साम्राज्य से प्राप्त याचिकाएँ या प्रतिवेतन उसके आदेशों के लिए उसके सम्मुख प्रस्तुत किए जाते थे|इस तरह अहमद शाह की दुश्चरित्रता व निकम्मेपन के कारण दोनों संपूर्ण मुगल प्रशासन के केन्द्र बिन्दु हो गए।

इसके अलावा राजमाता उधम बाई का भाई मान खाँ, जो एक अवारा, बदमाश और पेशेवर नर्तक था, को मुतकात-उद-दौला की उपाधि और 6,000 का मनसब प्राप्त था|



अहमदशाह ने इस समय मुगल साम्राज्य का वजीर या प्रधानमंत्री अवध के सूबेदार सफदरजंग को  नियुक्त किया।वह एक बहुत अयोग्य सेनानायक और असंयत व्यक्ति था।और वह ईरानी था|ईरानी होने के कारण तुरानी अर्थात् जाविद खाँ और तुर्को द्वारा नियंत्रित दरबारी गुट उससे घृणा करते थे |जिसकी परणती यह हुई कि वज़ीर ने जाविद खाँ की हत्या करवा दी|

बदले में राजमाता द्वारा इमादउलमुल्क व मराठा सरदार मल्हारराव के सहयोग से 1753ई.में सफदरजंग को अपदस्थ कर इमादउलमुल्क को मुगल साम्राज्य का वजीर बनवा दिया गया।

लेकिन षडयंत्रों और गुटबाजी का दौर यहीं समाप्त नहीं हुआ|अब 2 जून, 1754 को वजीर इमादउलमुल्क ने मराठों के सहयोग से मुगल बादशाह अहमदशाह को अपदस्थ कर अजीजुद्दीन को आलमगीर द्वितीय की उपाधि के साथ मुगल बादशाह बनाया।तथा राजमाता को कैद  कर लिया। 


अहमदशा अब्दाली के आक्रमण:-


अहमदशा अब्दाली ने भारत पर 1748 से 1759 के बीच कुल पांच बार आक्रमण किया।  

 तथा मुगल बादशाह अहमद शाह के शासनकाल में अहमद शाह अब्दाली ने  भारत पर दो बार 1749 और 1752 में आक्रमण किए थे।  1752 में तो वह दिल्ली तक बढ़ आया था ।1752 में उसने पंजाब पर तीसरा आक्रमण किया।जिसका कारण यह था कि उसे नियमित रूप से वार्षिक कर नहीं मिल रहा था|  अहमदशाह ने नादिरशाह की तरह पुन: लूटे जाने के डर से, शान्ति बनाए के रखने और दिल्ली को विनाश से बचाने के लिए उसने पंजाब तथा सिंध का प्रदेश अब्दाली को दे दिया। नवम्बर 1753 में ईमादनुलमुल्क की मृत्यु होने से पंजाब में अव्यवस्था फैल गई।


उधर दूसरी ओर जाट और मराठे भी मुगल दरबार की राजनीति में बार-बार हस्तक्षेप कर रहे थे ।मुगलों का खज़ाना अहमद शाह के अन्तिम दिनों में इतना खाली हो गया था कि 'शाही मालखाने की वस्तुएँ दुकानदारों और पटरीवालों को बेची गईं और अधिकांश धन जो इस तरह एकत्र  किया गया था, उससे सैनिकों को वेतन अदा किया गया ।'

अब्दाली ने 1767 ई० में भारत पर अंतिम आक्रमण किया।

भारत से वापस जाने से पूर्व अहमदशाह अब्दाली ने अपने द्वारा जीते ये भारतीय प्रदेशों की साझेदारी रुहेला सरदार नजीबुद्दौला को सौंप दिया जो मुगल साम्राज्य का मीरबख्शी था।

इस प्रकार अहमद शाह जैसे शक्तिहीन और मूर्ख मुगल शासक, राज्य के हितों की रक्षा कैसे कर सकते थे।एसी स्थिती में तो मुगल साम्राज्य के पतन का होना निश्चित ही था| जिसे रोकना संभव नहीं था|


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