सुभाष चन्द्र बोस (1897-1945) |
- नाम - सुभाष चन्द्र बोस
- जन्म - 23 जनवरी 1897
- स्थान - कटक, उडीसा
- पिता - जानकीनाथ बोस
- माता - प्रभावती
- परिवार - मध्यवर्गीय बंगाली
- स्नातक - 1919, कलकत्ता विश्वविद्यालय
- भारतीय जनपद सेवा (ICS) - 1920
- योग्यता क्रम - चौथा स्थान
- त्याग पत्र - 1921
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य बने-4/1921
- मृत्यु - 18 अगस्त 1945 (सम्भवतः)
- स्थान - ताइवान
- कारण - हवाई दुर्घटना
- नेताजी के नाम से प्रसिद्ध सुभाष चन्द्र बोस का जन्म उडीसा में एक अच्छे मध्यमवर्गीय बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था। पिता जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वकील थे।
- नेताजी ने 1919 में स्नातक की उपाधि कलकत्ता विश्वविद्यालय से प्राप्त की।
- 1920 की ICS में उन्होने योग्यता क्रम में चतुर्थ स्थान प्राप्त किया।किन्तु कुछ समय कार्य करने के पश्चात भारतीय जनपद सेवा से त्यागपत्र दे दिया।
- 1921 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य बन गए।
- सुभाष चन्द्र देशबंधु चितरंजन दास से अत्यंत प्रभावित थे और जल्द ही उनके विश्वासपात्र व दाहिने हाथ बन गये।
- 1924 में वह कलकत्ता निगम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किए गए।
- उनकी राजनीतिक गतिविधियों के कारण 10/1924 को उन्हे बंदी बनाकर माण्डले निर्वासित किया गया। वह पूर्ण स्वतंत्रता चाहते थे।
- 1938 के कांग्रेस के हरिपुर अधिवेशन में एकमत से अध्यक्ष चुने गए।
- पुनः फरवरी 1939 के कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में गांधी जी द्वारा नामित डॉ. पट्टाभि सीतारमैया को हरा कर अध्यक्ष बने। किन्तु अप्रैल 1939 को इन्होने अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया।
- तत्पश्चात अखिल भारतीय फारवर्ड ब्लॉक की स्थापना की।
- वे जनवरी 1941 में पेशावर से होते हुए रुस पहुंचे फिर मार्च मे बर्लिन। यहां से वह 2 जुलाई 1943 को सिंगापुर आए। यहां पर रास बिहारी बोस ने आजाद हिन्द फौज की कमान सुभाष चंद्र बोस को सोंप दी।
- 21 अक्टूबर 1943 को सुभाष चन्द्र बोस ने सिंगापुर में भारत की अस्थाई सरकार स्थापित कर दी। जिसे संसार की नौ शक्तियों जिसमें जापान, इटली, जर्मनी आदि थे ने मान्यता प्रदान की।
- जापान सरकार ने नवम्बर 1943 अण्मान व निकोबार द्वीपों को भारत की अस्थाई सरकार को सोंपा।
- मई 1944 तक उन्होने भारतीय भूमि असम में कोहिमा स्थान तिरंगा झंडा गाड दिया था।
- तथा कहा जाता है कि 18 अगस्त 1945 को ताइपेई, ताइवान में वायुयान दुर्घटना में वह मारे गए।
वे भारत माता के सच्चे सपूत थे भारतीय इतिहास में उनका नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा।
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