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शिवाजी पुत्र राजाराम भोंसले कालीन मराठा साम्राज्य

 शिवाजी पुत्र राजाराम भोंसले कालीन मराठा साम्राज्य

बीजापुर तथा 1687 ई. में गोलकुण्डा को विजित करने के पश्चात् औरंगजेब ने शम्भाजी की ओर ध्यान केन्द्रित किया. 1689 ई. में शम्भाजी परिवार सहित पकड़ा गया और उसे मार दिया गया. अब सम्पूर्ण महाराष्ट्र प्रदेश पर औरंगजेब का अधिकार हो गया. शम्भाजी की इस अपमानजनक मृत्यु से मराठे जाग्रत हो गए. अब वे संगठित हुए और उन्होंने राजाराम के नेतृत्व में मुगलों की शक्ति के विरुद्ध संघर्ष छेड़ दिया.


राजाराम (1689-1700)


  • जन्म -24 फ़रवरी 1670

  • स्थान -रायगढ़ दुर्ग

  • पिता-शिवाजी

  • वंश -भोंसले

  • निधन -3 मार्च 1700 (उम्र 30)

  • स्थान -सिंहगढ़ दुर्ग, महाराष्ट्र

  • पत्नी -जानकीबाई,ताराबाई

  • पुत्र-शिवाजी द्वितीय,संभाजी द्वितीय

  • शासनावधि- 11 मार्च 1689– 3 मार्च 1700

  • राज्याभिषेक-20 फरवरी 1689




शम्भाजी की मृत्यु के समय उनका पुत्र शाहू केवल सात वर्ष का छोटा बालक था। शिवाजी के छोटे पुत्र और शम्भाजी के सौतेले भाई राजाराम को, जिसे शम्भाजी ने बन्दी बना रखा था, मराठा मंत्रिपरिषद् ने राजा घोषित किया फरवरी 1689 ई० में रायगढ़ में उसका राज्याभिषेक हुआ।

राजाराम ने अपने को शाहू का प्रतिनिधि माना |राज्याभिषेक के तत्काल बाद ही राजाराम ने मुगलों के आक्रमण की आशंका से रायगढ़ छोड़ दिया और इधर से उधर भटकते हुए अन्ततः ये जिजी अथवा गिजी (जिला दक्षिण आकाडि तमिलनाडु) चले गए| मराठा मंत्रिपरिषद और अन्य अधिकारी भी जिजी में उनके साथ मिल गए। 1698 तक जिंजी मुगलों के विरुद्ध मराठा गतिविधि का केन्द्र तथा मराठा साम्राज्य की राजधानी रही।राजाराम के जिंजी चले जाने के तत्काल बाद ही मुगलों ने जुल्फिकार खाँ के नेतृत्व में अक्टूबर 1689 में रायगढ़ पर अधिकार कर लिया ।शम्भाजी के पुत्र शाहू सहित उनके परिवार के सभी सदस्य मुगलों के कब्जे में आ गए । 

। 1689 ई० तक औरंगजेब ने सम्पूर्ण मराठा क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। इसी समय राजाराम के नेतृत्व में मराठे अपने देश की स्वतन्त्रता के लिए कटिबद्ध हो गये।


यहीं से मराठों का स्वतन्त्रता संग्राम आरम्भ हुआ जो उस समय (1707 ई०) तक चलता रहा जब तब शाहू को मराठा-छत्रपति नहीं स्वीकार कर लिया गया। यद्यपि शाहू को राजा की उपाधि और मनसब भी दिया गया लेकिन वह 1707 ई० अर्थात् औरंगजेब की मृत्यु तक वस्तुत: मुगलों के अधीन कैदी ही बना रहा। 


 इस प्रकार 1689 के अंत तक मराठा राज्य की स्थिति पूरी तरह बदल गई थी । राजाराम नाममात्र का राजा रह गया था और वह भी अपने मराठा गृह प्रदेश से बहुत दूर तमिलनाडु में रह रहा था |इस तरह भोंसले राज-परिवार निष्क्रिय हो गया था और अब मराठा राष्ट्र का न कोई सर्वमान्य प्रमुख था और न ही केन्द्रीय सरकार थी। सम्पूर्ण दक्कन  विमिन्न मराठा सेनानायकों के अधीन पृथक-पृथक प्रभाव क्षेत्रों में बंट चुका था । । इन परिस्थितियों में मुगलों से मुकाबला करने के लिए मराठा सरदारों और सेनानायकों ने कमान संभाली और मुगल मराठा संघर्ष का मूल स्वरूप गृह युद्ध अथवा स्वाधीनता संग्राम में बदल गया। मराठा सरदारों और सेनानायकों में नीलकट मोरेश्वार पिंगले (पेशवा), रामचन्द्र नीलकंट बावड़ेकर (आमात्य), शंकरजी मल्हार (सचिव) तथा प्रहलाद निराजी रावजी (भूतपूर्व न्यायाधीश का पुत्र ) के रूप में चार कुशल मराठा सरदारों ने मुगलों के विरुद्ध संघर्ष करने का संकल्प लिया ।इसके अलावा गैर महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत तीन अन्य व्यक्ति-धनाजी जाधव, सन्ताजी घोरपड़े तथा परशुराम अम्बक अपनी योग्यताओं के बल पर आगे आए । महाराष्ट्र में मराठा सेनानायकों तथा अन्य प्रशासनिक अधिकारियों को पूर्णरूप से नियंत्रित करने के लिए रामचन्द्र बावड़े कर को निरंकुश शासक (हुकूमत पनाह) के अधिकार दिये गए । लेकिन अब औरगजेब की कठिनाइयाँ और अधिक बढ़ गई क्योंकि मराठों में सर्वमान्य प्रमुख और केन्द्रीय सरकार के अभाव में प्रत्येक मराठा सरदार अपनी सैन्य टुकड़ियों के द्वारा विभिन्न दिशाओं में अपनी इच्छा  से आक्रमण करने लगे | विभिन्न मराठा सरदारों द्वारा स्वतंत्र रूप से सैनिक अभियान करने और राजाराम द्वारा उन्हें जागीरें प्रदान करने के फलस्वरूप, मराठा सरदारों की स्वायत्त सत्ता का उदय हुआ, जिसके परिणामस्वरूप अन्ततः मराठा मण्डल या राज्यसंघ का उदय हुआ|


राजाराम कालीन मराठा साम्राज्य की प्रमुख घटनाएँ


  •  उन्होंने1690 के मध्य में सतारा के निकट मुगल सेनानायक श्री सखाँ को उसके परिवार, अश्वारोहियों और उसकी सेना के संपूर्ण साज-सामान के साथ बन्दी बना लिया । यह मराठों की सबसे महत्त्वपूर्ण सफलता थी|

  • 1692 में उन्होंने पन्हाला पर अधिकार कर लिया ।यह भी उनकी उल्लेखनीय सफलता थी|

  •  1694-95 के दौरान छोटे -मोटे युद्धों के कारण मुगल सेना की शक्ति और मनोबल क्षीण-प्राय हो गई । 

  • सन्ताजी ने 1695 के अन्त में दो वरिष्ठ मुगल सेनानायकों कासिम खाँ और हिम्मत खाँ को पराजित करके उनकी हत्या कर डाली ।

  •  परन्तु 1696-97 में सन्ताजी और धनाजी के मध्य सेनापति के उच्च पद के लिए पारस्परिक प्रतिद्वन्द्विता के कारण  मराठों में गृह-युद्ध की स्थति आ गई|इस कारणवश  मराठों का पक्ष कमजोर हो गया |

  • 1698 में मुगलों द्वार सुदूर दक्षिण में मराठों की राजधानी जिजी पर अधिकार कर लेने से  राजाराम जो जिंजी से भागकर महाराष्ट्र में विशालगढ़ में शरण लेना पड़ी । 

  •  जब वहाँ मुगल आक्रमण हुआ तो वह सतारा भाग गया. इस प्रकार मराठे कहीं नहीं थे और सर्वत्र थे. जनता की सहानुभूति भी उनके साथ थी. लूटपाट करते हुए राजाराम ने मुगल शक्ति को अपार क्षति पहुँचाई.

  • 1699 में उसने खानदेश और बरार के रास्ते से मुगलो पर आक्रमण की व्यापक योजनाएँ बनाई और इस अभियानके लिए सतारा, जो जिंजी के पतनोपरान्त 1699 से मराठों की राजधानी बना से आगे बढ़ा, पर इसके शीघ्र बाद ही मार्च 1700 में राजाराम की मृत्यु हो गई ।

  • 1700 ई० में अपनी मृत्यु तक राजाराम ने स्वतन्त्रता संघर्ष जारी रखा।




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