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मुगल शासक आलमगीर द्वितीय

 आलमगीर द्वितीय मुगल शासक




अब तक हमने पढ़ा कि 1707 ई. में   औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल सत्ता एक एक कर उसके आयोग्य उत्तराधिकारीयों के हाथों में जाती रही और मुगल साम्राज्य पतन की ओर अग्रसर होता रहा|साथ ही मुहम्मद शाह के काल में नादिर शाह का आक्रमण और उसके बाद उसी के काल में व अहमद शाह के काल में अहमदशाह अब्दाली का आक्रमण ने भी आग में घी का काम किया अर्थात् मुगल साम्राज्य के लिए प्राणघातक वार था|इसी क्रम मे अघला मुगल शासक आलमगीर द्वितीय बना वह भी पूर्ववती सम्राट की भांती अयोग्य ही था|

  

आलमगीर द्वितीय (1754-59)


अहमद शाह को गद्दी से हटाने के बाद जहाँदार शाह के पौत्र  अजीजुद्दीन को आलमगीर द्वितीय के नाम से गद्दी पर बैठाया  गया। आलमगीर द्वितीय अपने वजीर इमादुलमुल्क का कठपुतली शासक था।

 साम्राज्य की सैनिक और वित्तीय स्थिति इस हद तक खराब हो गई थी कि मध्य एशियाई और बादशाह के अपने  व्यक्तिगत सैनिकों ने मंत्रियों और अमीरों के घरों से सामान निकाल कर उसे बाजार में बेच दिया । शाही सेना और महल के कर्मचारियों को तीन वर्षों में पन्द्रह दिन का वेतन भी प्राप्त नहीं हुआ था। भूख से मरते और अपने बकाया वेतन वसूल करने के लिए सैनिकों के दंगे और उपद्रव आलमगीर के शासनकाल की दिन-प्रतिदिन की घटनाएँ थीं। राजधानी की दयनीय स्थिति का स्वाभाविक प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों पर भी पड़ा । मई, 1755 में वज़ीर इमाद के अपने ही सैनिकों ने उस पर प्रहार किए और उसे बुरी तरह से घसीटा गया जिसके कारण उसके कपडों के चिथड़े हो गए ।


वजीर इमादुलमुल्क ने मुईनुलमुल्क के स्थान पर अदीना बेग ख़ां को पंजाब का सूबेदार नियुक्त कर दिया।लेकिन अहमदशाह अब्दाली ने इसे पंजाब के काम में हस्तक्षेप बतलाया तथाअब तक हमने पढ़ा कि 1707 ई. में औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल सत्ता एक एक कर उसके आयोग्य उत्तराधिकारीयों के हाथों में जाती रही और मुगल साम्राज्य पतन की ओर अग्रसर होता रहा|साथ ही मुहम्मद शाह के काल में नादिर शाह का आक्रमण और उसके बाद उसी के काल में व अहमद शाह के काल में अहमदशाह अब्दाली का आक्रमण ने भी आग में घी का काम किया अर्थात् मुगल साम्राज्य के लिए प्राणघातक वार था|इसी क्रम मे अघला मुगल शासक आलमगीर द्वितीय बना वह भी पूर्ववती सम्राट की भांती अयोग्य ही था| आलमगीर द्वितीय (1754-59) अहमद शाह को गद्दी से हटाने के बाद जहाँदार शाह के पौत्र अजीजुद्दीन को आलमगीर द्वितीय के नाम से गद्दी पर बैठाया गया। आलमगीर द्वितीय अपने वजीर इमादुलमुल्क का कठपुतली शासक था। साम्राज्य की सैनिक और वित्तीय स्थिति इस हद तक खराब हो गई थी कि मध्य एशियाई और बादशाह के अपने व्यक्तिगत सैनिकों ने मंत्रियों और अमीरों के घरों से सामान निकाल कर उसे बाजार में बेच दिया । शाही सेना और महल के कर्मचारियों को तीन वर्षों में पन्द्रह दिन का वेतन भी प्राप्त नहीं हुआ था। भूख से मरते और अपने बकाया वेतन वसूल करने के लिए सैनिकों के दंगे और उपद्रव आलमगीर के शासनकाल की दिन-प्रतिदिन की घटनाएँ थीं। राजधानी की दयनीय स्थिति का स्वाभाविक प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों पर भी पड़ा । मई, 1755 में वज़ीर इमाद के अपने ही सैनिकों ने उस पर प्रहार किए और उसे बुरी तरह से घसीटा गया जिसके कारण उसके कपडों के चिथड़े हो गए । वजीर इमादुलमुल्क ने मुईनुलमुल्क के स्थान पर अदीना बेग ख़ां को पंजाब का सूबेदार नियुक्त कर दिया।लेकिन अहमदशाह अब्दाली ने इसे पंजाब के काम में हस्तक्षेप बतलाया तथा नवम्बर 1756 में उसने भारतीय सीमाओं में प्रवेश किया। फिर जनवरी 1757 में वह दिल्ली में प्रवेश कर गया |उसके बाद उसने मथुरा व आगरे तक खूब लूटमार की।और अपनी वापस जाने से पहले अब्दाली भारत में आलमगीर द्वितीय को सम्राट, इमादुलमुल्क को वज़ीर, रुहेला सरदार नजीबुद्दीला को साम्राज्य का मीर बख्शी और अपना मुख्य ऐजन्ट बना कर गया। आलमगीर द्वितीय नाममात्र का शासक था |उसने शासन की वास्तविक शक्ति अपने हाथ में लेने का प्रयास भी किया |पर नवम्बर 1759 में आलमगीर द्वितीय की उसके वजीर इमाद ने हत्या कर दी और उसकी नंगी लाश को लालकिले के पीछे बहती यमुना नदी में फेंक दिया गया । वज़ीर को सम्राट की हत्या से कोई फायदा नहीं हुआ। पूरे देश में अराजकता व्याप्त थी और देशद्रोही इमाद के लिए "दिल्ली अब उसकी शरणस्थली नहीं रह गई थी ।" आलमगीर द्वितीय के बाद अलीगौहर शाहआलम द्वितीय की उपाधि के साथ मुगल बादशाह बना।

 

नवम्बर 1756 में उसने भारतीय सीमाओं में प्रवेश किया। फिर जनवरी 1757 में वह दिल्ली में प्रवेश कर गया |उसके बाद उसने मथुरा व आगरे तक  खूब लूटमार की।और अपनी वापस जाने से पहले अब्दाली भारत में आलमगीर द्वितीय को सम्राट, इमादुलमुल्क को वज़ीर, रुहेला सरदार नजीबुद्दीला को साम्राज्य का मीर बख्शी और अपना मुख्य ऐजन्ट बना कर गया।


आलमगीर द्वितीय नाममात्र का शासक था |उसने शासन की वास्तविक शक्ति अपने हाथ में लेने का प्रयास भी किया |पर नवम्बर 1759 में आलमगीर द्वितीय की उसके वजीर इमाद ने हत्या कर दी और उसकी नंगी लाश को लालकिले के पीछे बहती यमुना नदी में फेंक दिया गया । वज़ीर को सम्राट की  हत्या से कोई फायदा नहीं हुआ। पूरे देश में अराजकता व्याप्त थी और देशद्रोही इमाद के लिए "दिल्ली अब उसकी शरणस्थली नहीं रह गई थी ।"

 आलमगीर द्वितीय के बाद अलीगौहर शाहआलम द्वितीय की उपाधि के साथ मुगल बादशाह बना।






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