उत्तरवर्ती मुगल शासक
मुगल साम्राज्य की नींव बाबर ने रखी थी| उसके पश्चात् उसका पुत्र हुमायूं इस मुगल साम्राज्य का उत्तराधिकारी बना| लेकिन1540 ई. में शेरशाह ने हुमायूं को कन्नौज के युद्ध में परास्त कर दिल्ली का सिंहासन प्राप्त कर लिया|और 1555 ई. में हुमायूं फिर से दिल्ली के तख्त पर बैठा|
हुमायूं के पश्चात् इस मुगल साम्राज्य का उत्तराधिकारी उसका पुत्र अकबर बना| उसने 1542ई. -1605ई. तक शासन किया|और अकबर ने ही मुगल साम्राज्य को स्थायित्व प्रदान किया|अकबर के पश्चात् इस मुगल साम्राज्य का उत्तराधिकारी उसका पुत्र जहाँगीर बना|
और जहाँगीर के उत्तराधिकारी शाहजहाँ ने मुगल साम्राज्य को ज्यादा से ज्यादा फैलाने का प्रयत्न किया। मनसबदारी प्रणाली में आवश्यक परिवर्तन करके उसने मुगल साम्राज्य को बदलती हुई परिस्थितियों के अनुकूल बनाया।
शाहजहाँ के बाद औरंगजेब ने देश की एकता को कायम रखने के लिए अंतिम समय तक अपना प्रयत्न जारी रखा। लेकिन उसकी मौत (1707) के बाद मुगल सम्राट की आजादी एवं मुगल शासन की कुशलता खत्म होती चली गई। मुगल शासन की कुशलता जिन मनसबदारी और जागीरदारी प्रणाली, पर निर्भर करती थी, विभिन्न कारणों से शासन की बर्बादी का कारण बनी। मुगल दरबार राजनीतिक पार्टियों का अखाड़ा बन गया जिससे स्थिति में और बिगड़ गई।उमरा वर्ग के द्वारा सम्राट के अधिकारों पर नियंत्रण करने के कारण सम्राट उनके हाथ में कठपुतली बन कर रह गया और देश का सारा कामकाज खुदगर्ज और लालची अमीरों के हाथ में आ गया।
केंद्रीय शासन की कमजोरी की वजह से उमरा और जमींदारों ने देश के विभिन्न प्रांतों में अपने राज्य कायम कर लिए। इस प्रकार लगभग 150 वर्षों तक मुगल साम्राज्य भली-भाँति चलकर ठप्प हो गया। एवं इसी काल में देश के भिन्न-भिन्न भागों में देशी और विदेशी शक्तियों ने अनेक छोटे-बड़े राज्य स्थापित किए। कुछ प्रदेश जैसे बंगाल, अवध और दक्कन आदि मुगल नियंत्रण से बाहर हो गए। उत्तर-पश्चिम सीमा से विदेशी आक्रमण तथा विदेशी व्यापारी कम्पनियों द्वारा भारत की राजनीति में हस्तक्षेप होने लगा। लेकिन फिर भी मुग़ल साम्राज्य का दबदबा इतना था कि पतन की गति बहुत धीमी रही। पर 1737 में बाजी राव प्रथम और 1739 में नादिर शाह के दिल्ली आक्रमणों ने मुगल साम्राज्य के खोखलेपन की पोल खोल दी और 1740 तक मुगल साम्राज्य का पतन क्रम तेज हो गया|
इसके अतिरिक्त - पादशाहों और उनके अमीरों के स्तर में गिरावट, दरबारी षड्यंत्र, शाही अंत:पुर की स्त्रियों का राजनीति में अनावश्यक हस्तक्षेप, आदि अनेक कारण इर्विन और जदुनाथ सरकार जैसे इतिहासकारों ने बताए हैं| इसी तरह हिंदू और मुसलमान के बीच वह भाईचारा जिसे अकबर और उसके उत्तराधिकारियों ने स्थापित किया था |वह औरंगजेब की धार्मिक नीति के फलस्वरूप समाप्त हो गया था।
उपरोक्त विवरण से एक बात तो स्पष्ट है कि जिस तरह की मुगल शासन व्यवस्था और मुगल शासकों की स्थित थी उसके चलते अकबर होता या न होता,जहाँगीर होता या न होता, औरंगजेब होता या न होता, इस व्यवस्था और इसे चलाने वाले का पतन सुनिश्चित था।
मुगल शासक कालक्रम
बाबर
(1526-1530ई. )
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हुमायूं
( 1530-1540ई.व
1555-1556ई.)
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अकबर
(1556-1605ई. )
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जहाँगीर
(1605-1627ई. )
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शाहजहाँ
( 1627-1658ई.)
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औरंगजेब
( 1658-1707ई.)
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उत्तरवर्ती मुगल
(1707के पश्चात्)
मुग़ल साम्राज्य जिसने समकालीन विश्व को अपने विस्तृत प्रदेश, विशाल सेना तथा सांस्कृतिक उपलब्धियों से चकाचौंध कर दिया था वह अठारहवीं शताब्दी के आरम्भ में अवनति की ओर अग्रसर था। या यों कहा जाए कि औरंगज़ेब का राज्यकाल मुग़लों का संध्या ,काल था तो गलत नही होगा । और औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात आने वाले बावन वर्षों में आठ सम्राट दिल्ली के सिंहासन पर आसीन हुए।
उत्तरोत्तर मुगल काल:-
औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात भारतीय इतिहास में एक नवीन युग का पदार्पण होता है ,जिसे 'उत्तरोत्तर मुगल काल' के नाम से जाना जाता है|और इस काल के मुगल शासकों को ' उत्तरवर्ती मुगल' कहा जाता है|
उत्तरवर्ती मुगल शासक. कालक्रम
बहादुर शाह प्रथम
(1707-1712ई.)
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जहांदार शाह
(1712-1713ई.)
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फ़र्रुख़सियर
(1713-1719ई.)
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मुहम्मद शाह
(1719-1748ई.)
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अहमदशाह
(1748-1754ई.)
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आलमगीर द्वितीय
(1754-1759ई.)
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शाह आलम द्वितीय
(1759-1806ई.)
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अकबर द्वितीय
(1806-1837ई.)
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बहादुर शाह द्वितीय
(1837-1862ई.)
औरंगजेब काल में सम्पूर्ण भारत में मुगलों की पताका फहराने लगी. लेकिन उसकी राजपूत नीति, धार्मिक नीति, दक्षिण की विजय, उत्तरी भारत की अधिक उपेक्षा आदि ऐसे कारण थे कि औरंगजेब के साम्राज्य में विद्रोह होने लगे थे. और विशाल मुगल साम्राज्य को अविश्वास की पृष्ठभूमि में एक ही केन्द्र एवं एक ही व्यक्ति द्वारा नियन्त्रित करना अत्यंत ही दुष्कर कार्य था. औरंगजेब चाहता था कि अपने साम्राज्य को अपने पुत्रों में विभाजित कर दे तकि उत्तराधिकार के युद्ध की पुनरावृत्ति को रोका जा सके| उसकी इच्छा पूर्ण न हो सकी. सिंहासन के लिए युद्ध की परम्परा जो पूर्वजों ने डाली थी, वह चलती रही. उसके तीन पुत्र मुहम्मद मुअज्जम, मुहम्मद आजम तथा कामबक्श के मध्य उत्तराधिकार का युद्ध हुआ. युद्ध में उसका बड़ा पुत्र शाहजादा मुअज्जम विजयी हुआ|
(क) उत्तरकालीन मुग़ल सम्राट (Later Mughal Emperors)
1.बहादुरशाह प्रथम (1707-1717)
मार्च 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद उसके पुत्रों में उत्तराधिकार के युद्ध का शुरू हुआ| मुहम्मद मुअज्ज़म (शाह आलम), मुहम्मद आज़म, और कामबख्श में से सबसे बड़े पुत्र मुहम्मद मुअज्जम को विजय प्राप्त हुई । विजय के पश्चात् उसने अपने भाई आजम को जजाओं के स्थान पर 18 जून, 1707 को और कामबख़्श को हैदराबाद के समीप 13 जनवरी, 1709 को हरा कर मार डाला|तथा खुद 'बहादुर शाह प्रथम' की उपाधि धारण कर सिंहासन पर बैठा। उस समय उसकी आयु पकी हुई थी(लगभग 63 या 67 वर्ष) की थी और वह एक सक्रिय नेता के रूप में कार्य नहीं कर सकता था। अतः उसने शान्तिप्रिय नीति अपनाई यद्यपि यह कहना कठिन है कि यह नीति उसकी शिथिलता की द्योतक थी अथवा उसकी सोच-समझ का फल । यद्यपि उसमें प्रशासनिक प्रतिभा नहीं थी तथापि उसके मिलनसार स्वभाव और सहयोगपूर्ण रवैये के कारण उसे शाही दरबार में अधिकांश गुटों और समूहों का समर्थन प्राप्त होता रहा। स्वभाव से वह कठोर नहीं था, लेकिन उसमें राजनीतिक स्थिति को पूरी तरह से समझने की क्षमता थी। उसने तालमेल और समझौते की कुशल प्रक्रिया से अपने दुस्सह उत्तरदायित्वों को निभाने का प्रयत्न दिया। किया । उसने राजपूतों और मराठों के प्रति सुलहपूर्ण नीति उसके अपनाई ।राजपूत राजाओं से शान्ति स्थापित कर ली|
रायगढ़ के पतन के बाद 1689ई.से मुगल कैद में रह रहे शिवाजी के पौत्र व शम्भाजी के पुत्र शाहू को रिहा कर दिया गया । और महाराष्ट्र जाने की अनुमति दे दी।औरंगज़ेब द्वारा लगाया गया जजिया हटा लिया । बहादुर शाह उदार, विद्वान और धार्मिक था लेकिन धर्मान्ध के नहीं था। वह जागीरें देने तथा पदोन्नतियाँ देने में भी उदार था । उसने आगरा में जमा वह खज़ाना भी खाली कर दिया जो 1707 में उसके हाथ लगा था।
मुगल इतिहासकार खाफी खाँ ने उसके बारे में कहा है कि, "यद्यपि उसके चरित्र में कोई दोष नहीं था लेकिन देश की सुरक्षा और प्रशासन व्यवस्था में उसने इतनी आत्मतुष्टि और लापरवाही दिखाई कि परिहास और व्यंग्य करने वाले व्यक्तियों ने द्वयार्थक रूप में उसके राज्यारोहण के तिथि-पत्र को शाह बेखबर के रूप में उल्लिखित किया।' अर्थात् राजकीय कार्यों में इतना अधिक लापरवाह था कि लोग उसे 'शाहे बेखबर' कहने लगे|
पंजाब में बहादुर शाह को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, वहाँ सिक्ख गुरु गोविन्द सिंह की मृत्यु के बाद बंदा बहादुर बहुत शक्तिशाली हो भयंकर उपद्रव और लूटपाट कर रहा था । इसलिए बंदा बहादुर के विरुद्ध लड़ाई की बागडोर मुगल बादशाह ने स्वयं संभाली लेकिन सिखों को न तो कुचला जा सका और न ही उनके साथ समझौता हो सका । इस अभियान के दौरान 1712 में बहादुर शाह की मृत्यु हो गई।
बहादुर शाह की मृत्यु के बाद पुनः उत्तराधिकार की आम लड़ाई उसके चार पुत्रों के बीच शुरू हो गई | जिसमें सम्राट के ज्येष्ठ पुत्र जहाँदार शाह विजयी हुआ| राजसिंहासन के दावेदार इतनी अधिक शर्मनाक जल्दबाजी में थे कि जहाँदार शाह के पक्ष में उत्तराधिकार के युद्ध के समापन तक, मृत सम्राट बहादुर शाह का शव लगभग दस सप्ताह तक बिना दफनाए हुए ही पड़ रहा और उत्तराधिकार के युद्ध के अन्त के बाद ही उसे दिल्ली में दफनाया गया ।और फिर 1712ई. में बहादुर शाह की मृत्यु के बाद जहांदारशाह अगला मुगल शासक बना|
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