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शिवाजी पुत्र शम्भाजी कालीन मराठा साम्राज्य

 शिवाजी पुत्र शम्भाजी  कालीन मराठा साम्राज्य


शम्भाजी (1680-89)


शिवाजी की मृत्यु के बाद उनके द्वारा निर्मित नवगठित मराठा साम्राज्य में आन्तरिक फूट पड़ गयी। शिवाजी की दो पत्नियों से उत्पन्न दो पुत्रों-शम्भा जी और राजाराम के बीच उत्तराधिकार का विवाद खड़ा हो गया।  अन्त में उत्तराधिकार के युद्ध में शम्भाजी अथवा शम्भूजी की जीत हई||और राजाराम को गद्दी से उतारकर शम्भाजी  20 जुलाई 1680 को सिंहासनारूढ़ हुआ। शम्भा जी आरम्भ से ही अभिमानी क्रोधी और भोगविलासी था। अपनी मृत्यु के अवसर पर शिवाजी ने उसे (शम्भा जी को) पन्हाला के किले में कैद कर रखा था।तथापि एक वर्ष से भी अधिक समय तक उनकी स्थिति डावांडोल ही रही । मराठा नायकों के प्रति अविश्वास के कारण शम्भाजी  का संपूर्ण शासनकाल दुष्प्रभावित हुआ व उनके साथी-सहयोगी उनका साथ छोड़ गए। उनके जागीरदारों में विद्रोह फैल गया |उन्होने मराठा नायकों  के स्थान पर उत्तर भारतीय ब्राह्मण कवि कलश को अपना विश्वास पात्र  माना और उसे कवि कलश की उपाधि के साथ प्रशासन का सर्वोच्च अधिकारी नियुक्त किया| तथा प्रशासनिक अधिकार उसे सौंप दिया। 

 1680-81 में जब औरंगजेब उत्तर में राजपूत युद्ध में उलझा हुआ था,  तब उन्होंने दक्षिण में मुगलों के साथ  दौबारा युद्ध छेड़ दिया| बुरहानपुर पर चढ़ाई की व अहमदनगर पर आक्रमण करने का प्रयास किया।और इसी समय औरंगजेब के  पुत्र अकबर ने विद्रोह कर दिया| तथा राजपुताना से होते हुए बागी अकबर  दक्कन में आ गया व उसने शम्भाजी से संरक्षण की मांग की।अतः 1681 ई० में औरंगजेब के विद्रोही पुत्र अकबर को उसने शरण दी।  फिर बागी बेटे का पीछा करते करते औरगजेब को  भी दक्कन आना पड़ा,जिसका वह मृत्युपर्यन्त वहीं रहा । शम्भाजी ने औरंगजेब को गद्दी से हटाकर उसके पुत्र अकबर को मुगल राजगद्दी पर बैठाने की एक बहुत बड़ी योजना बनाई लेकिन इसके लिए किसी प्रकार की कोई ठोस रूपरेखा तैयार करने की बजाय उन्होंने अपनी सारी शक्ति और संसाधनों को जंजीरा के सिदियों और पुर्तगालियों के साथ युद्ध करने में ही गया दिया । अन्ततः शम्भाजी से किसी भी प्रकार की सहायता प्राप्त करने में विफल और निराश होकर वह फरवरी 1687 में फारस भाग गया।

  इसी तरह जब औरंगजेब बीजापुर और गोलकुंडा के साथ संघर्ष में उलझा था,तब भी  शम्भाजी में उस अवसर का भी लाभ  उठाते हुए अपनी स्थिति सुदृद नहीं किया। बीजापुर और गोलकण्टा पर विजय प्राप्त करने और अकबर के फारस भाग जाने के बाद औरंगजेब को  अब केवल मराठों से निपटने था। एक तो शम्भाजी बीजापुर और गोलकुण्डा के पतन के बाद राजनीतिक रूप से अकेले पड़ गए और  दूसरा आन्तरिक षड़यन्त्रों और विद्रोहों से त्रस्त हो गये |और इसलिए अब पूरी  वह तरह से कवि कलश जिसे मराठा विदेशी समझते थे, पर आश्रित हो गए |

उनका राज्य प्रशासन पर कोई नियंत्रण नहीं रह गया और वे विलासितापूर्ण आमोद प्रमोद में इतने डूब गए कि फरवरी 1689 में एक मुगल अधिकारी द्वारा कवि-कलश के साथ बंदी बना लिए गए तीन सप्ताहों से भी अधिक तक मारक यातना देने के उपरान्त 21 मार्च, 1689 को शम्भाजी के शरीर के कड़े टुकड़े करके क्रुरतापर्वक  औरंगजेब ने उसकी (शम्भाजी की) हत्या करवा दी उसकी राजधानी रायगढ़ पर कब्जा कर लिया तथा उसके पुत्र शाहू और पत्नी येसूबाई को गिरफ्तार कर रायगढ़ के किले में कैद करवा दिया।



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