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महिला शासिकाएं-1

.1.रानी लक्ष्मी बाई :-

4 जून 1857 को झांसी में विद्रोह शुरू हुआ , रानी ने विद्रोहियों का बड़े साहस के साथ नेतृत्व किया। और वह विद्रोह की प्रमुख नेता बन गयी।वह सेनिक वेशभूषा में थी उनकी सखियाँ काना और  मंदरा उनके संग थी। . परंतु झांसी एक पतन के बाद वह ग्वालियर के लिए प्रस्थान कर गयी।
 ग्वालियर में तात्या टोपे  के साथ विद्रोह का किया उन्होने कई जगह अंग्रेजों को परास्त किया।
   अंत में ग्वालियर के किले पर गवर्नर जनरल ह्यूरोज से लड़ते लडते 1958 को वीर गति को प्राप्त हुई । 3 अप्रैल 1958 को अंग्रेजों ने झांसी पर अधिकार कर लिया।
                           गवर्नर जनरल ह्यूरोज ने रानी लक्ष्मी बाई की डेथ पर कहा था कि "भारतीय क्रांतिकारियों में यहाँ सोई हुई औरत अकेली मर्द है। ".

2.बेगम हजरत महल:-


 4/6/1857 को लखनऊ में विद्रोह का प्रारम्भ हुआ। बेगम हजरत महल ने अपने अल्पायु पुत्र बिरजिस कादिर  को नवाब घोषित किया। तथा लखनऊ स्थित ब्रिटिश रेजीडेंसी पर आक्रमण किया।
इसके बाद बेगम हजरत महल ने मौलवी अहमदुल्ला के साथ मिलकर शाहजहांपुर में भी विद्रोह का नेतृत्व किया।
बाद में वह नेपाल चली गईं जहां उनकी मौत हो गई।

 3. महारानी जिन्दां( पंजाब) :-


पंजाब के शासक रणजीत सिंह (1792-1839) के पश्चात 1843 में महाराजा के अल्पायु पुत्र दिलिप सिंह राजमाता झिंदन के संरक्षण अथवा प्रतिशासन में सिंहासनारूढ हुआ।
इन्ही के समय अंग्रेजों ने पंजाब पर आक्रमण किया तथा प्रथम आंग्ल सिख युद्ध प्रारम्भ हुआ। इसके परिणाम स्वरूप 8/3/1846 में लाहौर की संधि हुई वसंधि के बदले अंग्रेजों ने दिलिप सिंह को महाराजा व झिंदन को संरक्षिका के रुप में मान्यता दी। इसके पश्चात (1848-49-) को होने वाले द्वितीय आंग्ल - सिख युद्ध के परिणाम स्वरूप 30/3/1849 को पंजाब का अंग्रेजी राज्य में विलय हुआ तथा रानी झींदन को महाराजा दिलिप के साथ वार्षिक पेंशन पर इंग्लैंड भेज दिया गया।

 4. ताराबाई(1707):-

मराठा शासक शिवाजी के पुत्र राजाराम की मृत्यु के पश्चात उसकी विधवा पत्नी ताराबाई ने अपने चार वर्ष के पुत्र शिवाजी द्वितीय को गद्दी पर बैठाया व मुगलों से स्वतंत्रता का संघर्ष जारी रखा। तथा ताराबाई ने रायगढ, सतारा, सिंह गढ़ आदि किलो को मुगलों से जीता। 1708 में शाहू द्वारा सतारा पर कब्जा कर लेने पर मराठा राज्य दो भागों में बंट गया एक सतारा व दूसरा कोल्हापुर इस कोल्हापुर की प्रमुख वस्तुतः ताराबाई ही थी।

5.रानी अवंती बाई(1831-1858):-


यह 1857 की एक वीरांगना थी। रानी अवंती बाई का जन्म मनकेहणी, जिला सिवनी, मध्य प्रदेश में हुआ था।  इनका विवाह रामगढ के राजकुमार विक्रमादित्य से हुआ। पर उनके अस्वस्थ रहने तथा  दोनों पुत्रों के अल्पव्यस्क होने के कारण सम्पूर्ण राजकार्य रानी अवंती बाई ने ही संभाला।
इस स्थिति कि लाभ उठाते हुए डलहौजी ने अपनी डक्ट्रीन ऑफ लेप्स की नीति के तहत रामगढ को कोर्ट ऑफ वार्ड के अधीन कर लिया। इससे रानी अत्यंत क्रुद्ध हो गई।
राजा विक्रमादित्य की मृत्यु के बाद रानी  ने सम्पूर्ण राज्य की बागडोर अपने हाथ में ले ली। और जब 1857 की क्रांति प्रारम्भ हुई तब वह भी अंग्रेजों के विरूद्ध इस संग्राम में कूद पडी।और कई जगह अंग्रेजों को भारी शिकस्त दी। और अंत में एक युद्ध में जब वह चारों तरफ से घिरने लगी तो अपने अंगरक्षक की तलवार ले कर अपनी इहलीला समाप्त कर ली। किन्तु जीवित अंग्रेजों के हाथ नहीं लगी। और देश पर बलिदान हो गई।

6.रानी अहिल्याबाई होल्कर:-


इनका जन्म महाराष्ट्र के अहमदनगर में हुआ था। यह एक कुशध योद्धा व तीरंदाज थी। इनका विवाह मल्हारराव होल्कर के पुत्र खंडेराव से हुआ था। इनके एक पुत्र व एक पुत्री थि। अहिल्याबाई होल्कर के पति खंडेराव की मृत्यु मल्हारराव होल्कर के जीवन काल में ही हो गई थी। इन्हें मल्हारराव होल्कर ने ही राज काज की शिक्षा दी थी। अतः उनकी मृत्यु के पश्चात राज्य के शासन का कार्यभार रानी अहिल्याबाई ने ही संभाला। तथा 1795 में अपनी मृत्यु तक इन्होंने ही कुशलता के साथ राज्य का कार्य भार संभाला। इनके सम्मान में भारतीय डाक टिकट जारी किया तथा इंदौर हवाईअड्डे व इंदौर विश्वविद्यालय का नाम इन्ही के नाम पर रखा गया है।

7.रानी ईश्वरी कुमारी :-

ईश्वरी कुमारी गोरखपुर के पास स्थित तुलसीपुर की रानी थी। तथा 1857 की क्रान्ति की वीरांगना थी। वैसे तो इनके बारे में कम ही लोग जानते हैं। रानी ईश्वरी कुमारी के पति राजा दृगनाथ सिंह को ब्रिटिश सरकार के विरुद्घ काम करने पर नजरबंद कर दिया गया था। जहां उनकी मृत्यु हो गई। तब रानी ने रियासत का कार्यभार संभाला। इन्होंने अंग्रेजी शासन के अधीन होने की अपेक्षा उनका विरोध करना सही समझा। अतः उनके खिलाफ युद्ध किया। उन्हे कई प्रलोभन दिये गए पर वह अंग्रेजों के आगे नहीं छुकी न ही आत्मसमर्पण किया अपितु बेगम हजरतमहल की तरह एश से बाहर निर्वासित जीवन जीना बेहतर समझा। और वह नेपाल के जंगलों की तरफ चली गयी।

8.रानी चिन्नेम्मा :- 

यह किट्टूर (कर्नाटक) की थी। किट्टूर के शासक की मृत्यु के पश्चात अंग्रेजों ने राजा के उत्तराधिकारी को मान्यता देने से इंकार कर दिया इस पर दिवंगत राजा की विधवा पत्नी चिन्नम्माने रामप्पा की सहायता से अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया। यह विद्रोह (1824-29-) के मध्य हुआ।

संदर्भ :- चित्र गूगल से, Bbc.com, patrika.com मध्यकालीन भारत का इतिहास - हरिश्चंद्र वर्मा, आधुनिक भारत का इतिहास - यशपाल व ग्रोवर कॉम, barstdiscovery.Com,ww.allresearchjornal.com

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