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उत्तरवर्ती मुगल शासक शाह आलम द्वितीय

 शाह आलम द्वितीय मुगल शासक









शाह आलम द्वितीय (1759-1806) :-


 यह आलमगीर द्वितीय का पुत्र था और इसका वास्तविक नाम अलीगौहर था। 1758 ई. में आलमगीर द्वितीय की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र अलीगौहर. शाहआलम द्वितीय उपाधि धारण करके  सिंहासन पर बैठा|


अलीगौहर अपने पिता की हत्या के समय  बिहार में था| जहाँ उसने स्वयं को 22 दिसम्बर, 1759 को शाह आलम द्वितीय की उपाधी के साथ बादशाह घोषित कर दिया।  और उधर दूसरी तरफ दिल्ली में इमाद और अमीरों ने मिलकर कामबख्श के पौत्र मुही-उल-मिल्लर को शाहजहाँ द्वितीय की उपाधी के साथ मुगल  राजसिंहासन पर बैठा दिया । इस तरह आलमगीर द्वितीय की हत्या के उपरान्त मुगल साम्राज्य में  एक साथ दो बादशाह हो गये| एक तो  शाह आलम द्वितीय की उपाधी धारण कर पटना में और और दूसरा  शाहजहाँ द्वितीय की उपाधी धारण कर दिल्ली में सिंहासनारूढ़ हुए । वह केवल नाममात्र का शासक था. शासन की वास्तविक शक्ति 'गाजीउद्दीन  फिरोज जंग के हाथ में थी. इस समय दिल्ली में दो दल बन गए. एक दल था-गाजीउद्दीन फिरोज जंग का, दूसरा दल था-उसके विरोधी मुसलमान, जिसका नेतृत्वकर्ता अहमदशाह अब्दाली था. 



शाहआलम द्वितीय (1758-1806)के शासन की मुख्य घटनाएं:-

  • पानीपत का तृतीय युद्ध

  • दक्षिण में अकाल 

  •  अंग्रेजो के विरुद्ध बक्सर का युद्ध

  • 1803 में अंग्रेजों ने दिल्ली पर अधिकार 



इन परिस्थितियों के कारण शाह आलम द्वितीय अगले बारह वर्ष अर्थात् 1772ई. तक दिल्ली में प्रवेश नहीं कर पाया और उसे बारह वर्ष निर्वासित के रूप में बिताने पड़े |यही नहीं वह अंग्रेजों तथा मराठों की कठपुतली बना रहा| इसी दौरान अहमद शाह अब्दाली पाँचवीं बार भारत आया जिसके फलस्वरूप 1761ई. में पानीपत का तीसरा युद्ध हुआ ।  पानीपत के युद्ध के बाद   नजीब खाँ रूहेला 31 अक्तूबर, 1770 को अपनी मृत्यु तक दिल्ली का तानाशाह और "मुगल साम्राज्य में जो कुछ बचा था, उसका कर्ता-धर्ता बना रहा ।" 

दूसरी तरफ अंग्रेज भी प्रभुसत्ता की ओर तेजी से बढ़ रहे थे और उन्होंने प्लासी के युद्ध (1757) में बंगाल के नवाब को तथा बक्सर के युद्ध (1764) में शाह आलम द्वितीय,नवाब मीरकासिम ,अवध के नवाब सुजाउद्दौला को हराया|

 चुंकि शाहआलम द्वितीय 1764 ई० में अंग्रेजों के विरुद्ध लड़े गये  'बक्सर के युद्ध' में बंगाल के अपदस्थ नवाब मीरकासिम का साथ दिया,और इस युद्ध में कासिम की ओर से अवध के नवाब सुजाउद्दौला ने भी हिस्सा लिया। अतः बक्सर के युद्ध में पराजित होने के बाद शाहआलम द्वितीय को 1765 अंग्रेजों से इलाहाबाद की संधि करनी पडी| 


बक्सर का युद्ध :-


प्लासी के युद्ध में विजयी होने के पश्चात अंग्रेजों के हौसले और भी बुलंद हो गए और बक्सर युद्ध के पश्चात् तो अंग्रेजों के पूरी तरह भारत में पैर जम गए. 1764 ई. को बक्सर नामक स्थान पर कम्पनी की सेना व अवध के नवाब शुजाउद्दौला, मुगल सम्राट शाहआलम तथा मीरकासिम की संयुक्त सेना के बीच बक्सर का युद्ध हुआ.शाह आलम द्वितीय और उसके वज़ीर शुजा-उद्-दौला को हरा दिया और उन्होंने मुगल बादशाह को बन्दी बना लिया । बक्सर के युद्ध में कम्पनी की सेनाओं की जीत हुई. युद्ध समाप्त होने के पश्चात् इलाहाबाद की संधि हुई.


इलाहाबाद की संधि :-


बक्सर युद्ध के पश्चात् दोनों पक्षों के मध्य अगस्त 1765 ई. में इलाहाबाद की संधि हुई. इस संधि की शर्तें निम्नलिखित थीं-


  •  अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने अंग्रेजों को 50 लाख रुपया देना स्वीकार किया.

  •  कड़ा एवं इलाहाबाद के जिले मुगल बादशाह को दे दिए गए.

  • नवाब ने चुनार अंग्रेजों को दे दिया.

  • शाह आलम ने अपने 12 अगस्त के फरमान द्वारा कम्पनी को बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी स्थाई रूप से दे दी जिसके बदले कम्पनी सम्राट को 26 लाख रुपया देगी तथा निज़ामत के व्यय के लिए 53 लाख रुपया देगी।

  • सम्राट शाह आलम को अंग्रेज़ी संरक्षण में ले लिया गया तथा उसे इलाहाबाद में रखा गया


जिसके बाद सम्राट को कई वर्षों तक इलाहाबाद में अंग्रेजों का पेंशनयाफ्ता बन कर रहना पड़ा।

 सम्राट शाह आलम द्वितीय का दिल्ली तथा उसके आस पास के प्रदेशों पर नाम मात्र प्रभुत्व था| परन्तु उसने मराठा सरदार महादजी सिंधिया का संरक्षण स्वीकार कर लिया था क्योंकि उसका दिल्ली में अत्यधिक प्रभाव था| किन्तु मराठों का साथ देने के कारण अंग्रेजों ने उसकी पेंशन बंद कर दी.

 उधर मराठों ने अपने योग्य तथा अनुभवी नेता महादजी सिंधिया तथा जसवन्त राव होल्कर के नेतृत्व में अपनी स्थिति को पुनः सुदृढ़ बना लिया था। राजस्थान, आगरा के आस-पास के जाटों तथा दोआब के रूहेलों को पराजित कर फ़रवरी 1771 में उन्होंने दिल्ली जीत ली। 

अन्ततः जनवरी 1772 में मराठों ने पेंशनभोगी बादशाह शाह आलम द्वितीय को दिल्ली के मुग़ल सिंहासन पर बैठा दिया। इसके उपलक्ष्य में सम्राट ने इलाहाबाद तथा कारा के जिले-जो क्लाइव ने उसको 1765 में वापिस दिलवाए थे, मराठों को दे दिए।


 कालान्तर में वारेन हेस्टिंग्ज़ ने मुग़ल सम्राट के जर्जरित मुखौटे को तोड़ डाला तथा दीवानी के बदले में 26 लाख रुपया वार्षिक की सम्राट को दी जाने वाली राशि बन्द कर दी।और यह तर्क दिया गया कि यह दीवानी उन्हें 'शक्ति' से प्राप्त हुई थी। दूसरे सम्राट ने मराठों का संरक्षण स्वीकार कर लिया था। और हेस्टिंग्ज़ ने इलाहाबाद तथा कारा दोनों जिले अवध के नवाब को 50 लाख रुपए में बेच डाले|

 शाह आलम द्वितीय का सम्पूर्ण जीवन आपदाओं से ग्रस्त रहा।1788 में रुहेला सरदार गुलाम कादिर ने सम्राट को अंधा कर दिया और फिर 1806 में शाहआलम की हत्या कर दी गई। शाहआलम द्वितीय के समय में दिल्ली पर अंग्रेजों का अधिकार (1803 ई०) हो गया।

शाहआलम द्वितीय की मृत्यु के बाद उसका पुत्र अकबर द्वितीय (1806 1837 इ०) अगला मुगल बादशाह बना ।




 




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