Header Ads Widget

Ticker

6/recent/ticker-posts

मुगल शासक औरंगजेब (1658-1707):

 मुगल शासक औरंगजेब (1658-1707):-


mughal empror ourngzeb,dharmik neeti ,raajput neeti,history or india

औरंगजेब अपने पिता शाहजहाँ का योग्यतम पुत्र था । उसने अपने पिता को कैद करके व भाइयों का वध करके सन् 1658 ईस्वी में सिंहासन प्राप्त किया । इसकी धार्मिक नीति मुगल साम्राज्य के पतन का मुख्य कारण थी । व्यक्तिगत जीवन में वह एक चरित्रवान व सच्चा मुसलमान था । तथा  एक साधारण जीवन व्यतीत करता था ।  

·         नाम -औरंगजेब

·         पिता -शाहजहाँ

·         माता -मुमताज महल

·         जन्म -3 नवंबर 1618

·         स्थान –उज्जैन

·         विवाह -18 जून 1637

·       पत्नी -दिलराज बनो बेगम (रबिया बीबी-फारस की राजकुमारी  )

·        धर्म- सुन्नी मुसलमान

·      अनुयायी -1665 मे नकशबंदी सिलसिले का अनुयायी बना

·     राज्याभिषेक -21 जुलाई 1658

· औपचारिक राज्याभिषेक -5 जुलाई 1659

·        शासन काल -1658-1707

·        मृत्यु -20 फरवरी 1707

·        स्थान- अहमदनगर

· उपाधि -अबुल मुजफ्फर आलमगीर ,

·     अन्य -जिंदापीर ,शाही दरवेश, विद्वान विधिवेत्ता

औरंगजेब पहली बार 1636 में पिता शाहजहाँ द्वारा दक्षिण का सूबेदार नियुक्त हुआ । तथा 1644 तक वहाँ का सूबेदार रहा । उसने औरंगाबाद को दक्षिण में मुगलों की राजधानी बनाया । तथा दक्षिण भारत को चार भागों में बांटा -खानदेश ,बरार , तलंगाना , अहमदनगर ।इसके बाद 1652 से 1657 तक औरंगजेब  को पुनः दक्षिण का सूबेदार बनाया गया ।



उत्तराधिकार का युद्ध

शाहजहाँ के चार पुत्र दाराशिकोह , 
शाहशूजा , औरंगजेब , तथा मुरादबख्श 
थे । सितंबर 1657 में शाहजहाँ के  बीमार हो जाने के कारण वह राजनीति के प्रति उदास हो गया । इसलिए उसके चारों पुत्रों में सिंहासन के लिए उत्तराधिकार का युद्धध हुआ । 
इस युद्धध में उसकी पुत्रीयों ने भी किसी न किसी शहजादे का पक्ष लिया ।
मुगल  इतिहास में एसा पहली बार हुआ की बादशाह के जीवित रहते सिंहासन के लिए इतना भीषण युद्धध (विद्रोह के अलावा ) लड़ गया हो।
  • सर्वप्रथम शाहशूजा ने बंगाल में खुद को बादशाह घोषित किया और जनवरी 1658 में राजधानी की ओर कूच किया । 
  • शाहशूजा और शाही सेना के बीच बनारस से 5 किमी दूर 'बहादुरपुर ' में युद्धध हुआ । यही युद्धध की शुरुवात थी । जिसमे शुजा हारकर पूर्व की ओर भाग गया । 
  • शुजा की तरह ही शाहजहाँ के दूसरे पुत्र मुराद ने स्वयं को गुजरात में बादशाह घोषित कर दिया ।  लेकिन औरंगजेब ने एसा नहीं किया ।


  • अब मुरादबक्श  और औरंगजेब की सम्मिलित सेना ने मिलकर शाही सेना को उज्जैन से 14 मील दूर धरमत के युद्धध में अप्रैल 1658 में पराजित किया । 
  • शाही सेना के साथ दारा था । 
सामू गढ़ का युद्धध -  

  • यह   युद्ध जिसमें एक तरफ  शाही    सेना जिसमें दारा था और दूसरी तरफ मुराद व औरंगजेब की सम्मिलित सेना थी ।
  •  इस युद्धध ने दारा के भाग्य का फैसला कर दिया । सामूगढ़ के युद्धध में शाही सेना की पराजय हुई । तथा औरंगजेब व मुराद की सम्मिलित सेना की विजय हुई।
  •  दारा  सामुगढ़ के युद्धध में इस कारण पराजित हुआ की मुसलमान सरदारों ने उसके साथ विश्वासघात किया । इसके अलावा औरंगजेब दारा से ज्यादा योग्य सेनापति था ।
  •  और औरंगजेब ने बाद में मुराद की भी हत्या करवा दी । 

देवराई घाटी का युद्धध :-

  • यहाँ दारा और औरंगजेब के मध्य आखरी व निर्णायक लड़ाई हुई । यह युद्धध अप्रैल 1659 को अजमेर के निकट देवराई घाटी में हुआ।  
  • इस लड़ाई में दारा अंतिम रूप से औरंगजेब से पराजित हुआ ।

·       सामू गढ़ की विजय तथा आगरा पर  अधिकार करने के बाद 21 जुलाई 1658  ईस्वी को दिल्ली में अपनाप्रथम राज्याभिषेक करवाया । और ‘अबुल मुजफ्फर आलमगीर’ की उपाधि धारण की ।

·       इसके बाद जब उसने दारा और शुजा को खंजवा तथा देवराई के युद्धध में पूरी तरह पराजित कर दिया तो 5 जून 1659 को दिल्ली में दोबारा अपना औपचारिक राज्याभिषेक करवाया ।

औरंगजेब का साम्राज्य विस्तार व दक्षिण नीति और मराठों से संघर्ष >>


औरंगजेब की धार्मिक नीति:-


·       चूंकि वह एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था अतः इस्लाम के महत्त्व को समझते हुए अपने शासन का आधार ‘कुरान (शरीयत) को बनाया ।वह इस्लामी कानून को अक्षरशः मानता था । इस कारण वह अपनी कट्टर सुन्नी जनता के लिए ;जिंदा पीर’ , था ।तथा चूंकि उसका व्यक्तिगत जीवन में रहन -सहन बिलकुल सादा था एवं नमाज नियमित पढ़ता था तथा उसने आजीवन शराब नहीं पी इन सभी कारण से प्रजा के बीच शाही दरवेश कहलाता था।   

·       औरंगजेब का उद्देश्य भारत को ‘दार -उल-हर्ब’ (काफिरों के देश ) से ‘दार -उल-इस्लाम’ (इस्लाम का देश )बनाना था ।

·       इसके तहत बहुत से अध्यादेश जारी किए जो कि कुरान के नियमों के अनुसार इस्लामी आचरण सहिता के नियमों की पुनर्स्थापना के लिए थे ।

·       आरंभ से ही उसने अपनी कट्टरता का परिचय देते हुए औरंगजेब ने अपने सिक्कों पर ‘कलमा ‘ खुदवाना ,पारसी नववर्ष ‘नौरोज’ का आयोजन करना ,भांग उत्पादन ,जुआ खेलना। शराब पीना और सार्वजनिक संगीत समारोह आदि पर प्रतिबंध लगा दिया ।

·       औरंगजेब ने बृहस्पति वार (जुमेरात ) पीरों की मजार एवं कब्रों पर दीपक जलाने की प्रथा को बंद करवा दिया ।

·       औरंगजेब ने ‘मुहतसिब’(सार्वजनिक सदाचार निरीक्षक )नामक अधिकारी की नियुक्ति की । जिसका काम यह देखना था की जनता पवित्र कानून (शरीयत)के अनुसार जिंदगी बसर कर रही है या नहीं ।

·       उसने 1663 में हिंदुओं पर तीर्थ यात्रा कर लगाया था सती प्रथा को भी पूर्णरूप से बंद करवाया । इससे पहले अकबर ने भी सती प्रथा बंद करवाई थी। 

·       एक राज्यादेश के द्वारा 1665 ईस्वी बिक्री योग्य माल पर हिन्दू व्यापारियों से 5% की दर से जबकि मुस्लिम व्यापारियों पर 2.5%दर से ‘सीमा शुल्क’ लगाया ।

·       1668 में औरंगजेब ने हिंदुओं के त्योहारों और  उत्सवों को मनाए जाने पर रोक लगा दी।

·       औरंगजेब ने अपनी धार्मिक नीति के तहत ही अपने शासन के ग्यारहवें साल में ‘झरोका दर्शन ‘ और इसी तरह बारहवें साल में ‘तुलादान प्रथा’ (बादशाह को सोने से तोलना )को खत्म कर दिया ।

·       अपनी धार्मिक नीति के तहत ही उसने 1669 ईस्वी में हिन्दू मंदिरों व पाठशालाओं को तोड़ देने की आज्ञा दी , जिससे वे अपने धर्म तथा शिक्षा का प्रचार न कर सकें ।

·       औरंगजेब की उपरोक्त आज्ञा के फलस्वरूप ही बनारस का विश्वनाथ मंदिर ,गुजरात का सोमनाथ मंदिर ,मथुरा का केशवराय मंदिर आदि तोड़ डाले गए । 

·       1679 ईस्वी में हिंदुओं पर उसने वापस जजीया कर लगा दिया । लेकिन संभवतः इस बार जजीया लगाने का कारण धार्मिक न होकर राजनैतिक था ,इस तरह वह मुसलमानों को मराठों व राजपूतों के खिलाफ संगठित करना चाहता था ।


·       औरंगजेब की राजपूत नीति :-


·       औरंगजेब के शासन काल में राजा जसवंत सिंह (जोधपुर), राजा जय सिंह (आमेर ),तथा राजा राजसिंह (मेवाड़) आदि प्रमुख राजपूत राजा थे ।

·       औरंगजेब की राजपूत नीति में हमें परिवर्तन देखने को मिलता है। उसने अकबर द्वारा शुरू की गई था जहांगीर व शाहजहाँ द्वारा अनुसरण की गई राजपूत नीति में परिवर्तन कर दिया । क्योंकि उसे लगता था कि राजपूत उसकी धार्मिक नीति के क्रियान्वयन में सबसे बड़ी बाधा है।

·       1669 में जोधपुर के राजा जसवंत सिंह की मृत्यु के पश्चात मारवाड़ को  मुगल साम्राज्य में मिलाने की औरंगजेब की अदूरदर्शिता पूर्ण नीति ने मुगल व राजपूत संबंधों में कटुता ला दी । अन्यथा इससे पहले राजपूतों से उसके संबंध सौहाद्रर्यपूर्ण  थे ।

·       औरंगजेब सदेव जसवंत सिंह के प्रति आशंकित रहता था क्योंकि उत्तराधिकार के युद्धध में उसकी भूमिका संदिग्ध थी । अतः उसने जय सिंह तथा जसवंत सिह को सदैव साम्राज्य की ददोर के इलाकों मे ही नियुक्त किया ।

·       जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद जब उसके पुत्र अजित सिंह के वैध अधिकार की मांग उसके सेनापति दुर्गादास ने की तो औरंगजेब ने यह शर्त रखी की अजित सिंह को इस्लाम धर्म स्वीकार करना होगा । यह शर्त राजपूतों द्वारा अस्वीकार कर दी ।

·       इसके बाद मुगलों और मारवाड़ के बीच तीस वर्षीय युद्ध (1679-1709) लडा गया । जिसका नायक दुर्गादास था ।


    मुगल शासक औरंगजेब कालीन विद्रोह-सतनामी,सिक्ख,जाट आदि के बारे में जानिए>>

  इस युद्धध में मारवाड़ का साथ मेवाड़ ने भी दिया क्योंकि अजित सिंह की माँ मेवाड़ की राजकुमारी थी तथा मेवाड़ का राजा राजसिंह जाजीय लगाने के कारण औरंगजेब से नाराज था ।  बाद में औरंगजेब को उसके बेटे शहजादा अकबर के विद्रोह का दमन करने के लिए दक्षिण जाना पडा ।

·       इसलिए उसने मेवाड़ के राज्य से संधि कर ली तथा जजीया कर भी समाप्त कर दिया । तथा मारवाड़ की सहायता न करने का वचन लिया ।

·       कुल मिलकर औरंगजेब कि राजपूत नीति सफल नहीं कही जा सकती क्योंकि वह ना मेवाड़ को और न ही मारवाड़ को पूरी तरह दबा सका । इसके विपरीत उसने अपने बहादुर व विश्वसनीय राजपूत मित्रों को खो दिया ।            

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 


Post a Comment

0 Comments