पंडित दीनदयाल उपाध्याय
ने दाधीच की समान अपनी व्यक्तिगत आकांक्षाओं को छोडकर अपने आपको समाज की उन्नति व सेवा में लगा दिया।
7 वर्ष की आयु तक इनके माता-पिता दोनों का देहांत हो जाने के कारण पंडित जी की शिक्षा लालन-पालन सब उनके मामा श्री राधारमण शुक्ला के घर हुआ। मामा जी चाहते थे कि दीनदयाल जी पढ़ लिखकर नौकरी करें किंतु इन्होंने स्वयंसेवक बनकर समाज व देश सेवा को चुना| उनका मानना था कि व्यक्ति की उन्नति का तब तक कोई अर्थ नहीं जब तक कि उसका समाज उन्नत ना हो। या यूं कहें कि बिना समाज की उन्नति के व्यक्ति की उन्नति कदापि संभव नहीं।
उन व्यक्तियों में शुमार होते हैं जो जन्म से नहीं अभी तो कर्म से महान् होते हैं |वे जनसंघ के सक्रिय कार्यकर्ता ,कुशल प्रशासक व प्रभावी नेता के साथ ही एक मौलिक विचारक व लेखक भी थे|
उन्होंने 'पाञ्चजन्य' (साप्ताहिक) व 'स्वदेश' (दैनिक) समाचार पत्र का संपादन किया| 'स्वदेश' जो बाद में तरुण भारत हो गया| इसके अलावा 'राष्ट्रधर्म' में लेखन कार्य किया |उनका लघु उपन्यास 'सम्राट चंद्रगुप्त' जिसे उन्होंने लगभग 1947 (विक्रम संवत 2003) के मध्य लिखा था को एक बार में 13 घंटे लगातार बैठ कर लिया था |इसमें मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य का चरित्र लिखा गया है| इसके बाद उन्होंने हिंदी में शंकराचार्य का जीवन चरित्र भी लिखा|वह शंकराचार्य से व्यक्तिगत रूप से बहुत प्रभावित थे| इस पुस्तक का नाम 'जगद्गुरु श्री शंकराचार्य' है |
ने अपने विचार एक विषय तक सीमित नहीं बल्कि विभिन्न विषयों यथा धार्मिक, सामाजिक ,ऐतिहासिक, राजनीतिक तथा तात्कालिक समसामयिक मुद्दों पर अपने विचार रखे| वे पूर्ण शोध व अभ्यास. के पश्चात ही किसी भी विषय पर अपने विचार प्रकट करते थे |विभिन्न अवसरों पर दिए गए भाषण व लेखन से उनके विचारों का बोध होता है |पंडित जी के भाषण अत्यंत सारगर्भित और मौलिक होते थे|
"दीनदयाल का भाषण सिद्धांतशोधक तथा व्यावहारिक सूझबूझ लिए रहता था|............ सारनाथ यात्रा के समय दिए गए भाषण जिसका विषय 'गौतम बुद्ध और उनका महत्कार्य' ऐतिहासिक प्रगाढ ज्ञान तथा उनके तुलनात्मक अध्ययन का परिचय मिलता है |"1
"जो निर्मल चरित्रवाला था और जो एक ऐसा नेता था जिसके वजनदार शब्द से हजारों -हजारों शिक्षित व्यक्तियों को भी भावाभिभूत कर देते थे|"2
उनके भाषणों के आधार पर बहुत सी पुस्तकें संकलित कर प्रकाशित की गई उनमें से प्रमुख हैं-
एकात्म मानववाद ,
भारतीय आर्थिक विकास की एक दिशा ,
पॉलीटिकल (हिंदी अंग्रेजी में),
राष्ट्र चिंतन
"वे एक ऐसे राजनीतिक दर्शन को विकसित करना चाहते थे जो भारत की प्रकृति और परंपरा के अनुकूल हो और राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति करने में समर्थ हो अपने इस दर्शन को उन्होंने नाम दिया -'एकात्म मानववाद'|"3
"उनका वाचन विस्तृत था और ग्रहण शक्ति तीव्र थी…….. हास्य विनोदात्मक तथा व्यंगात्मक बातें कहने में कुशल थे……... सात्विकता, रचनात्मकता और क्रियाशीलता उनके स्वभाव के सहज आयाम थे| इसी कारण उनके लिखे 'एकात्म मानववाद' को उपनिषदों का स्तर प्राप्त हुआ|"4
Pandit Deendayal Upadhyay
left his personal aspirations like Dadhich and put himself in the progress and service of the society.Due to the death of both his parents by the age of 7, Panditji's education was brought up in the house of his maternal uncle Shri Radharaman Shukla.Mama Ji wanted Deendayal ji to do a job after studying, but he chose to serve the society and country by becoming a volunteer. He believed that the progress of a person has no meaning until his society is advanced.Or rather say that without the advancement of society, the progress of a person is never possible. Pandit Deendayal Upadhyaya is one of those people who are not great by birth but are great by karma.He was an active worker, skilled administrator and effective leader of the Jana Sangh as well as a fundamental thinker and writer. He edited the'Panchajanya'(weekly)and 'Swadesh' (daily) newspapers.
'Swadesh' which later became Tarun Bharat. Apart from this, writing work was done in 'Rashtradharma'.His short novel'Samrat Chandragupta', which he wrote about 1947 (Vikram Samvat 2003), sat for 13 hours at a time. It has the character of Maurya emperor Chandragupta Maurya.After this he also wrote the life character of Shankaracharya in Hindi. He was personally very impressed with Shankaracharya. The name of this book is 'Jagadguru Sri Shankaracharya'.Pandit Deendayal ji did not confine his views on a single subject but gave his views on various topics like religious, social, historical, political and immediate contemporary issues.They do full research and practice. Only after that he used to express his views on any subject. Speeches and writings on various occasions give a sense of their thoughts. Pandit ji's speeches were very pithy and original.
Deendayal's speech used to be principled and practical………...The speech at the time of the Sarnath Yatra, whose theme 'Gautam Buddha and His Highness', gives an introduction to historical deep knowledge and his comparative study.' 'One who was of pure character and who was a leader whose weighty words used to impress thousands of thousands of educated persons.'2
Many books were compiled and published on the basis of his speeches, chief among them are
Integral Humanism,
Bharteeya arthaneeti vikas ki ek disha
Political (Hindi in English),
Rashtra Chintan
'He wanted to develop a political philosophy that suits the nature and tradition of India and is capable of making all round progress of the nation, he called this philosophy "integral humanism".'3
'His reading was elaborate and the eclipse power was sharp… ..the comics were skilled in saying humorous and sarcastic things ... ... Satvikta, creativity and action were the innate dimensions of his nature….'4
संदर्भ
सहस्त्रबुद्धे प्र.ग.- पं. दीनदयाल उपाध्याय( मेरी स्मृति में)
उपाध्यायपं.दीनदयाल-पॉलिटिकलडायरी,(हिंदी)1968 जैको पब्लिशिंग हाउस, मुंबई
उपाध्याय दीनदयाल -एकात्म मानववाद, जागृति प्रकाशन ,नोएडा ,नवम संस्करण- 2009,
सहस्त्रबुद्धे प्र.ग.- पं. दीनदयाल उपाध्याय( मेरी स्मृति में)
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