स्वामी विवेकानंद
- नाम - नरेंद्रनाथ दत्त
- जन्म - 12 जनवरी 1863
- स्थान - कलकत्ता (अब कोलकाता)
- मृत्यु - 4 जुलाई 1902
- उम्र - 39
- स्थान - बेलूर मठ, बंगाल रियासत, (ब्रिटिश राज)
- पुस्तक - मैं समाजवादी हूँ
स्वामी विवेकानंद का जन्म कलकत्ता के एक कुलीन परिवार में हुआ था। उनके असली नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। वे रामकृष्ण परमहंस के परम शिष्य थे।
1886 में रामकृष्ण परमहंस की मृत्यु के पश्चात नरेन्द्रनाथ ने अपने गुरु के संदेशों को प्रसारित करने के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया तथा सांसारिक जीवन से सन्यास ले लिया। उसके बाद सम्पूर्ण भारत का भ्रमण किया।
1893 में अमेरिका के शिकागो धर्म सम्मेलन में जाने से पूर्व खेतडी के महाराज अजित सिंह के सुझाव पर इनका नाम नरेन्द्रनाथ से बदल कर स्वामी विवेकानंद रख दिया गया।
11 सितंबर 1893 को अमेरिका के शिकागो शहर में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में अपना ऐतिहासिक भाषण दिया।
न्यूयार्क हेराल्ड ने स्वामी जी के इस भाषण के बारे में लिखा कि - उनको सुनने के बाद हम यह अनुभव करते हैं कि ऐसे ज्ञान सम्पन्न देश में अपने धर्म प्रचारक भेजना कितना मूर्खतापूर्ण है।
रोम्यांरोला ने विवेकानंद जी के भाषण के बारे में लिखा है कि संसार का कोई भी धर्म मनुष्यता की गरिमा को इतने ऊंचे स्वर में सामने नहीं लाता जितना कि हिन्दू धर्म।
स्वामी जी ने वेदान्त सभाओं की स्थापना अमेरिका में 1896 में की।
1897 में उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।
स्वामी विवेकानंद के कथन /विचार:-
- 11 सितंबर 1893 में शिकागो धर्म सम्मेलन में दिये भाषण का सार यह था कि - जिस प्रकार सारी धारायें अपने जल को सागर में लाकर मिला देती हैं, उसी प्रकार मनुष्य के सारे धर्म ईश्वर की ओर ले जाते हैं। स्वामी जी ने कहा कि पृथ्वी पर हिन्दू धर्म के समान कोई भी धर्म इतने उदात्त रुप से मानव की गरिमा का प्रतिपादन नहीं करता।
- जब तक देश में लाखों लोग भूखे व अज्ञानी हैं मैं ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को देशद्रोही समझूंगा जिन्होंने उनकी मेहनत की कमाई से शिक्षा ग्रहण की पर उनकी परवाह नहीं करते।
- उन्होंने कहा कि - ऐसे धर्म या ईश्वर को नहीं मानता जो विधवाओं के आंसू न पोंछ सके, या किसी अनाथ को एक टुकड़ा रोटी भी न दे सके। वेद कुरान व सभी धर्म ग्रंथों को अब कुछ समय के लिए विश्राम करने दे।
- उन्होंने महिलाओं के लिए कहा- पांच सौ समर्पित व्यक्तियों के साथ मुझे देश सुधारने में पचास वर्ष लगेंगे, लेकिन पचास समर्पित स्त्रियों के सहयोग से मैं यह कार्य कुछ ही वर्षों में सम्पन्न कर सकता हुँ।
- स्वामी जी के अनुसार - हम मानवता को वहां ले जाना चाहते हैं जहां न वेद हैं न कुरान और नही बाइबिल।
- विवेकानंद ने धार्मिक अंधविश्वास के बारे में कहा कि हमारा धर्म रसोईघर में है, हमारा ईश्वर खाना बनाने के बर्तन में हैऔर हमारा धर्म है मुझे मत छूओ मैं पवित्र हूँ यदि एक शताब्दी तक यह चलता रहा तो हम पागलखाने में होंगे।
सुभाष चंद्र बोस ने उन्हें आधुनिक राष्ट्रीय आन्दोलन का आध्यात्मिक पिता कहा।
इंडियन अरनेस्ट के लेखक चिरोल के अनुसार स्वामी जी के उद्देश्य राष्ट्रीय आन्दोलन का एक मुख्य कारण थे।
संदर्भ:- चित्र गूगल से, विकीपीडिया, राजस्थान पत्रिका, आधुनिक भारत का इतिहास - यशपाल व ग्रोवर।
0 Comments