ahmad shah abdali attack on india and panipat battle
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण
मुहम्मदशाह(1719-48) सर्वाधिक विलासप्रिय शासक था |उसको अधिक समय महल की चारदीवारी के भीतर हरम की स्त्रियों तथा हिजड़ों में बिताने तथा असंयत आचरण के कारण 'रंगीला' अथवा रंगीले कहा गया। 1748 को मुहम्मदशाह की मृत्यु के बाद अगला मुगल बादशाह अहमदशाह हुआ।
नादिरशाह का आक्रमण(1739ई०)
मुहम्मदशाह के शासन काल में नादिरशाह जो 'ईरान के नेपोलियन' के नाम से प्रसिद्ध था|या फारस के नादिरशाह ने 1738-39 के मध्य भारत पर आक्रमण किया| बादशाह ने उसके आक्रमण को रोकने के लिए निजामुलमुल्क, कमरूद्दीन खां और खान-ए-दौरां के नेतृत्व में सेना भेजी, जिसमें बाद में सआदत खां भी शामिल हो गया था।13 फरवारी, 1739 को करनाल के युद्ध हुआ|
इस आक्रमण के दुष्परिणाम नादिर शाह के भारत से जाने के बाद तक अनुभव किए जाते रहे। इस आक्रमण ने सम्पूर्ण विश्व के सम्मुख मुगल साम्राज्य में की शक्तिहीनता को उद्घाटित कर दिया और अहमद शाह अब्दाली के भावी आक्रमणों के लिए भारत के द्वार उन्मुक्त कर दिए । अहमद शाह अब्दाली ने 1748 से 1767 तक पाँच बार भारत पर आक्रमण किए, जिनकी चरम परिणति पानीपत के तृतीय युद्ध के रूप में हुई।
अहमदशाह अब्दाली:-
नादिरशाह भारत से वापस 1739 में गया, 1747 में उसकी मृत्यु हो गई।किसी योग्य शासक के अभाव में नादिरशाह विशाल साम्राज्य का विघटन हो गया । नादिर शाह के प्रमुख सेनानायकों में अब्दाली जनजाति का अहमद नामक एक अच्छे कुल का अफगान पदधिकारी था| नादिरशाह उसका बहुत आदर करता था। उसने एक बार कहा भी था कि मैंने अहमदशाह अब्दाली जैसे चरित्र का व्यक्ति सारे ईरान, तूरान और हिन्दुस्तान में नहीं देखा | अहमदशाह अब्दाली को ''दुर्रे-दुर्रानी' (युग का मोती) कहा गया।
नादिर शाह की मृत्यु ।(1747 में )के बाद अहमदशाह अब्दाली कन्धार का स्वतन्त्र शासक बन गया और शाही उपाधि (शाह) धारण कर ली| उसने अपने सिक्के भी चला दिए। शीघ्र ही उसने काबुल को जीत लिया और आधुनिक अफ़गान राज्य की नींव रखी। काबुल और कन्धार पर अधिकार कर लेने के बाद वह पेशावर की ओर बढ़ा और इस महत्त्वपूर्ण नगर पर कब्जा करके उसने सिन्ध नदी को पार (दिसम्बर 1747) किया। इसके बाद उसने लाहौर (जनवरी 1748) और सरहिन्द पर अधिकार कर लिया।
अहमदशाह अब्दाली का भारत पर आरम्भिक. आक्रमण :-
नादिरशाह के जाने के बाद मुगल दरबार में अव्यवस्थाओं ने अधिक उग्र रूप ले लिया | दरबारी गुटों के पारस्परिक मतभेद पहले से कहीं अधिक तीव्र हो गए। और केन्द्रीय प्रशासन का ढाँचा धराशायी हो गया | मुगल साम्राज्य अब केवल सम्राट की नाममात्र की प्रभुसत्ता स्वीकार करने वाले ५ स्वायत्त राज्यों का समूह रह गया । मुहम्मद शाह स्थिति की असहायता और इसमें सुधार लाने में अपनी असमर्थता, दोनों को समझ चुका था। निज़ाम-उल-मुल्क दक्कन में व्यस्त था तो कमरुद्दीन खाँ अकर्मण्यता एवं व्यभिचारिता में निमग्न था । स्वार्थी और विवेकहीन नए युवा अमीर आपसी विवादों और झगड़ों में व्यस्त थे । योग्य नेतृत्व और अनुशासनविहीन मुगल सेना मात्र एक भीड़ के समान थी। इस उथल पुथल युक्त और पतन की ओर जाते मुगल साम्राज्य को अहमद शाह अब्दाली के क्रमिक आक्रमणों ने मरणान्तक आघात प्रदान किया।
उसने लगभग 50,000 सेना एकत्रित की और नादिरशाह के वैध उत्तराधिकारी के रूप में पश्चिमी पंजाब पर अपना दावा करते हुए पंजाब पर आक्रमण किए और पानीपत का तीसरा युद्ध लड़ा।
मुहम्मदशाह के ही शासन काल में नादिरशाह के उत्तराधिकारी अहमदशाह अब्दाली ने 1748 ई० में भारत में पंजाब पर प्रथम आक्रमण किया जो असफल रहा,मच्छीवाड़ा के समीप मनूपुर में अब्दाली की सेना को मार्च 1748 में शाहजादा अहमदशाह (मुहम्मदशाह के पुत्र) ने पराजित किया।
पर वह आसानी से हार मानने वाला नहीं था| उसने 1749 में पंजाब पर दूसरा आक्रमण कर सूबेदार मुइनुलमुल्क को पराजित किया।परन्तु 14,000 रुपया वार्षिक कर देने के वादे पर वह लौट गया।अहमद शाह अब्दाली के दूसरे आक्रमण के दौरान सम्राट मुहम्मद शाह की मृत्यु हो गई। औल उसकी जगह अगला मुगल शासक अहमदशाह बना|
1752 में उसने पंजाब पर तीसरा आक्रमण किया।जिसका कारण यह था कि उसे नियमित रूप से वार्षिक कर नहीं मिल रहा था| अहमदशाह ने नादिरशाह की तरह पुन: लूटे जाने के डर से, उसे पंजाब तथा सिंध का प्रदेश दे दिया। नवम्बर 1753 में मुईनुलमुल्क की मृत्यु होने से पंजाब में अव्यवस्था फैल गई।
वजीर इमादुलमुल्क ने मुईनुलमुल्क के स्थान पर अदीना बेग ख़ां को पंजाब का सूबेदार नियुक्त कर दिया।लेकिन अहमदशाह अब्दाली ने इसे पंजाब के काम में हस्तक्षेप बतलाया तथा नवम्बर 1756 में उसने भारतीय सीमाओं में प्रवेश किया। फिर जनवरी 1757 में वह दिल्ली में प्रवेश कर गया |उसके बाद उसने मथुरा व आगरे तक खूब लूटमार की।और अपनी वापस जाने से पहले अब्दाली भारत में आलमगीर द्वितीय को सम्राट, इमादुलमुल्क को वज़ीर, रुहेला सरदार नजीबुद्दीला को साम्राज्य का मीर बख्शी और अपना मुख्य ऐजन्ट बना कर गया।
अब यहाँ से इसमें मराठों का प्रवेश होता है| होता यह है कि मार्च 1758 में जब पेशवा रघुनाथ राव दिल्ली पहुंचा तो उसने अहमदशाह अब्दाली के प्रतिनिधि नजीबुद्दौला को मीर बख्शी पद से हटाकर अहमद शाह बंगश को उस पद पर नियुक्त किया।।और फिर पंजाब को लूटा और अन्त में अदीना बेग खां को अपनी ओर से पंजाब का गवर्नर नियुक्त कर लौट गया।इस तरह 1758 तक उसने सरहिन्द तथा लाहौर पर भी अधिकार कर लिया। अहमदशाह अब्दाली मराठों का यह कार्य सही नहीं लगा | और वह इस उद्दण्डता का बदला लेने के लिए पुन: भारत आया।उसका सामना पानीपत के मैदान में मराठों से हुआ|इस तरह पानीपत का तीसरा युद्ध 14 जनवरी, 1761 को शुरु हुआ जिसमें मराठों की पूर्णतया हार हुई।
अहमदशाह अब्दाली का अन्तिम आक्रमण 1767 में हुआ।
पानीपत का तृतीय युद्ध के कारण( 14 जनवरी, 1761):-
पानीपत का तृतीय युद्ध मुख्यतः दो कारण थे-
प्रथम नादिर शाह की भाँति अहमदशाह अब्दाली भी भारत को लूटना चाहता था।
मराठे हिन्दू पादशाही की भावना से प्रेरित होकर दिल्ली पर प्रभाव स्थापित करना चाहते थे।
रघुनाथ राव दिल्ली पहुंचकर अहमदशाह अब्दाली के प्रतिनिधि नजीबुद्दौला को मीर बख्शी पद से हटाकर अहमद शाह बंगश को उस पद पर नियुक्त किया|
उसने सरहिन्द तथा लाहौर पर भी अधिकार कर लिया|
अहमदशाह अब्दाली का आक्रमण और पानीपत का तीसरा युद्ध-
14 जनवरी, 1761 ई० को मराठों ने आक्रमण आरम्भ किया।पानीपत का तीसरे युद्ध में पेशवा बालाजी बाजीराव ने अपने नाबालिग बेटे विश्वास राव के नेतृत्व में एक शक्तिशाली सेना भेजी किन्तु वास्तविक सेनापति उसका चचेरा भाई सदाशिव राव भाऊ था। मराठा फौज का एक महत्वपूर्ण भाग, यूरोपीय ढंग से संगठित पैदल और तोपखाने की टुकड़ी थी जिसका नेतृत्व इब्राहिम खाँ गर्दी कर रहा था।
मल्हारराव होल्कर बीच में ही युद्ध छोडकर भाग निकला। जिससे मराठा फौज के पैर पूरी तरह उखड गये। पेशवा का बेटा विश्वास राव यशवंत राव, सदाशिव रावभाऊ तुंकोजी सिन्धिया और अन्य अनगिनत मराठा सेनापति सैनिकों के साथ मारे गये।
अवध के नवाब शुजाउद्दौला और रुहेला सरदार नजीबुद्दौला ने अहमदशाह अब्दाली का साथ दिया क्योंकि ये दोनों मराठा सरदारों के हाथों हार चुके थे।
एकमात्र मुगल वजीर इमाद-उल-मुल्क ने पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों का साथ दिया था |
युद्ध में राजपूतों, सिक्खों तथा जाटों ने मराठों का साथ नहीं दिया।
जे० एन० सरकार ने लिखा है " महाराष्ट्र में सम्भवतः ही कोई ऐसा परिवार होगा जिसने कोई न कोई सम्बन्धी न खोया हो तथा कुछ परिवारों का तो सर्वनाश ही हो गया।" सदाशिव राव की कूटनीतिक और अब्दाली की तुलना में उसका दुर्बल सेनापतित्व मराठों की पराजय का मुख्य कारण था।
पानीपत के तृतीय युद्ध 1761 में मराठों के पराजय की सूचना बाजीराव को एक व्यापारी द्वारा कूट सन्देश के रूप में पहुंचायी , जिसमें कहा गया कि 'दो मोती विलीन हो गये, बाइस सोने की मुहरें लुप्त हो गई और चाँदी तथा ताँबे की तो पूरी गणना ही नहीं की जा सकती।'
पानीपत के तृतीय युद्ध के बाद अहमदशाह ने 20 मार्च, 1761 को दिल्ली छोड़ने से पहले पुन: शाह आलम को सम्राट ,नजीबुद्दौला को मीर बख्शी और इमादुलमुल्क को वज़ीर नियुक्त किया।इस तरह पानीपत के तृतीय युद्ध के बाद नजीबुद्दौला, अब्दाली के प्रतिनिधि के रूप में दिल्ली पर शासन किया।
पानीपत का तीसरे युद्ध के परिणाम :-
अहमदशाह अब्दाली के आक्रमणों से मुगल साम्राज्य के पतन की गति और भी तेज हो गई।
पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों की हार तथा बालाजी की अकस्मात् मृत्यु (23 जून 1761 ई०) के बाद माधवराव प्रथम (1761-1772.ई०) नया पेशवा बना|
अहमदशाह अब्दाली के आक्रमणों से मुग़ल साम्राज्य का खोखलापन और भी स्पष्ट हो गया और देश में अराजकता और गड़बड़ी फैल गई।
मुगल सम्राट इस कदर शक्तिहीन था कि सम्राट शाहआलम द्वितीय बारह वर्ष तक दिल्ली में प्रवेश नहीं कर सका और केवल मराठा सेना ही 1772 में उसे दिल्ली लाई और सिंहासन पर बैठाया।
रुहेला सरदार मीर बख्शी नजीबुहोला, के पश्चात उसका पुत्र ज़ाब्ता ख़ां और फिर उसका पोता गुलाम कादिर दिल्ली के एकमात्र स्वामी थे | गुलाम कादिर ने शाह आलम को सिंहासन से उतार उसकी आंखें निकलवा दी परन्तु अक्टूबर 1788 में महादजी सिंधिया ने पुनः सम्राट की ओर से, दिल्ली पर अधिकार कर लिया |
1803 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया और शाह आलम कम्पनी का पेन्शनर बन गया।
इस तरह देखा जाए तो नादिरशाह के आक्रमण के बाद ,अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण ने गिरते हुए या पतन के ओर अग्रसर मुगल साम्राज्य एक हथौडा और मारा |
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