मुगल साम्राज्य का पतन
औरंगजेब की मृत्यु 3 मार्च, 1707 को अहमदनगर में होने के बाद भारतीय इतिहास में एक नवीन युग का पदार्पण हुआ, जिसे 'उत्तरोत्तर मुगलकाल' के नाम से जाना जाता है। मुगल साम्राज्य का एक युग वह था जिसमें शाही दरबार की तड़क-भड़क अमीर उमराओं की साज सज्जा और ऐश्वर्य ,व्यापारियों की धन सम्पत्ति, विकसित हस्तकलाएं और ताजमहल जैसी भव्य इमारतों के कारण भारत ने विश्व को चकाचौंध कर दिया था,लेकिन औरंगजेब की मृत्यु के साथ ही वह सब समाप्त हो गया। मुगल साम्राज्य का पतन भारतीय इतिहास की एक अत्यन्त महत्वपूर्ण घटना है। जो मध्यकालीन भारत का अंत कर आधुनिक भारत की नींव डालती है।
इतिहासकारों में मुगल साम्राज्य के पतन की प्रक्रिया के लिए उत्तरदायी कुछ महत्त्वपूर्ण कारण को लेकर विवाद है। पतन के कारणों को लेकर इतिहासकार दो समूहों में बंटे हैं। पहला समूह जिसमें यदुनाथ सरकार, एस० आर० शर्मा, लीवर पुल जैसे इतिहासकार शामिल हैं, उनका मानना है कि औरंगजेब की नीतियां-धार्मिक,राजपूत, दक्कन आदि के कारण ही मुगल साम्राज्य का पतन हुआ। दूसरा समूह, जिसमें सतीशचंद्र, इरफान हबीब, अतहर अली, शीरीन मूसवी आदि शामिल है, इन्होंने मुगल साम्राज्य के पतन को व्यापक सन्दर्भ में देखते हुए इसके कारण को बाबर के शासनकाल में ही ढूंढ लिया | इनके अनुसार मुगल साम्राज्य का पतन दीर्घावधिक प्रक्रिया का परिणाम है।
कुल मिलाकर मुगल साम्राज्य का पतन न तो आकस्मिक था और न ही यह रहे विस्मयकारी था । मुगल साम्राज्य के स्वरूप में अंतर्निहित अनेक दोष इसके पतन और विघटन के लिए उत्तरदायी थे जो शासक और शासितों, दोनों के लिए एक सुदीर्घ-कालिक यंत्रणा थी।
मगल साम्राज्य के दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण पतन के कुछ कारण संक्षेप में इस प्रकार है:-
- औरंगज़ेब की दक्कन नीति
- औरंगजेब की धार्मिक नीति
- असंतुष्ट कृषक-वर्ग
- उत्तराधिकार का कोई सर्वसम्मत स्वीकृत नियम न होना
- मुगल सेना
- मुगल अमीर वर्ग
- मुगल दरबार की गुटबंदी
- औरंगजेब की राजपूत नीति
- अयोग्य उत्तराधिकारी
- मनसबदारी प्रथा और जागीरदारी संकट
- विशाल मुगल साम्राज्य
- मुगल साम्राज्य की खराब आर्थिक स्थिति
- अन्य कारण
1.औरंगज़ेब की दक्कन नीति :-
मुगल साम्राज्य के पतन का एक प्रमुख कारण औरंगज़ेब की दक्कन नीति थी |जो मुगल साम्राज्य के लिए आत्मघाती सिद्ध हुई| जदुनाथ सरकार ने दक्कन नीति के परिणामों का वर्णन करते हुए लिखा है, "यह उसके अन्त की शुरुआत थी । उसके जीवन त का सबसे दुखद और निराशाजनक पक्ष अब शुरू हो गया था। मुगल साम्राज्य इतना विस्तृत हो गया था कि उस पर एक केन्द्र से और एक व्यक्ति द्वारा शासन करना असंभव था । चारों ओर उसके शत्रु उठ खड़े हुए, वह उन्हें हरा तो सकता था लेकिन सदा के लिए कुचल नहीं सकता था । बादशाह जो सुदूर दक्षिण में था, हिन्दुस्तान में अपने अधिकारियों पर नियंत्रण खो बैठा :और प्रशासन शिथिल तथा भ्रष्ट हो गया । अमीर और जमींदार स्थानीय अधिकारियों की अवज्ञा करने लगे तथा अपना सदा और होने के लिए कुचल नहीं सकता था। बादशाह जो सुदूर दक्षिण के स्थानीय अधिकारियों की अवज्ञा करने लगे तथा अपना अधिकार जमाने लगे, जिसकी वजह से देश में अव्यवस्था फैल गई। दक्कन में निरंतर लड़ाइयों से मुगल खजाना खाली हो गया। सरकार दिवालिया हो गई; लम्बे समय तक वेतन न मिल पाने के कारण भूख से मरते सैनिकों ने विद्रोह कर दिया।" इस तरह>>आगे>>
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