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नादिरशाह का भारत आक्रमण ,कारण व परिणाम

 नादिरशाह का भारत आक्रमण ,कारण व परिणाम






नादिरशाह का आक्रमण (Nadir Shah's Invasion, 1738-39) 


औरंगज़ेब ने उत्तर-पश्चिमी सीमाओं की सुरक्षा और प्रान्तों के प्रशासन पर विशेष ध्यान दिया था। काबुल का प्रशासन बहुत उत्तम ढंग से चल रहा था |राजमार्ग खुले रहते थे और दिल्ली और काबुल के बीच प्रशासनिक पत्र-व्यवहार समुचित ढंग से चल रहा था। लेकिन औरंगज़ेब के बाद मुगल शासन की शिथिलता स्पष्ट थी क्योकि तब उत्तर पश्चिमी सीमा पर सुरक्षा प्रबन्ध ढीले कर दिए थे। और 1707 में बहादुरशाह के काबुल से चले आने पर काबुल और ग़नी का प्रशासन बिगड़ गया मुगल साम्राज्य की शक्ति को घुन लग चुका था। और यह इस बात से सिद्ध हो जाता है कि सीमाएं पूर्णतया अरक्षित पड़ी थी। जिस तरह स्वार्थ ,भ्रष्टाचार और असावधानी के कारण गुजरात और मालवा मराठों के आक्रमणों के शिकार बने,उन्ही विद्यमान कारणों से नादिरशाह की महत्वाकांक्षाएं जाग्रत हुई।  स्वेच्छाचारी सम्राट अथवा उसके मन्त्री उत्तर-पश्चिमी सीमाओं की सुरक्षा से पूर्णतया उदासीन हो गए थे उदाहरणॎार्थ जब मुगल गवर्नर द्वारा फारस से आक्रमण के भय का समाचार दिल्ली भेजा गया तो खान-ए-दौरान ने कल्पना मात्र कह कर उसकी हंसी उड़ाई और जब गवर्नर ने  सैनिकों का पिछले 5 वर्षों से बकाया वेतन के बारे में बोला तो उसे टाल दिया गया।




नादिरशाह (या 'नादिर कुली बेग़') (1688 -1747) फ़ारस का शाह था| नादिर कुली का जन्म 1688 में खुरासान के तुर्कमान वंश में हुआ। उसने अपना जीवन दासता से आरंभ किया था उसका यौवन तूफानी दौर से गुजरा|जब अफ़ग़ानों ने फारस पर आक्रमण किया तो उसने फारस का रक्षा की। अफगानों ने महमूद नामक व्यक्ति के नेतृत्व में कन्धार फारसी लोगों से छीना और 1722 में फारस की राजधानी इसफहान को जीत लिया। नादिर ने देश को अफगानों से मुक्त कराने हेतु सर्वप्रथम 1727 में निशापुर से अफ़गानी को निकाल दिया।और शीघ्र ही समस्त फारस अफगानों से मुक्त हो गया।

  शाह ने उसे उपहार के रुप में आधा राज्य दे दिया साथ ही वहाँ अपने सिक्के चलाने का अधिकार. भी| और 1736 में सफ़वी वंश का अन्तिम सम्राट मरने से नादिर समस्त देश का शासक बन गया। नादिर अपने आप को सफ़वी राजा शाह तहमासप का मुख्य सेनापति ही मानता था। 

उसने सदियों के बाद ईरानी प्रभुता स्थापित की थी। और फ़ारस का शाह ही नहीं बना, बल्कि उसने उस समय ईरानी साम्राज्य के सबल शत्रु 'उस्मानी' साम्राज्य और 'रूसी' साम्राज्य को ईरानी क्षेत्रों से बाहर निकाला।


नादिरशाह एक महत्वाकांक्षी शासक था और उसने अपने राज्य का विस्तार हेतु पहला लक्ष्य  कन्धार जीतना रखा क्योंकि यह  उसके साम्राज्य की शान्ति बनाए रखने के लिए आवश्यक था|दूसरा इसके बिना वह सफ़वी वंश का पूरा उत्तराधिकारी भी नहीं कहलाता। कन्धार के अफ़गान शासक अकेले पड जाए इस इच्छा से उसने मुग़ल सम्राट मुहम्मद शाह को संदेश भेजा कि कन्धार के अफ़गान शासकों को काबुल में शरण नहीं मिलनी चाहिए। मुहम्मद शाह ने भी उसे इसका विश्वास दिलाया लेकिन नादिरशाह ने 1738 में कन्धार पर आक्रमण किया तो वहां के कुछ अफ़ग़ानों ने गज़नी और काबुल में शरण ले ली। नादिरशाह के सैनिकों ने मुगल साम्राज्य की सीमाओं का आदर करते हुए अफ़ग़ान भगोड़ों का काबुल और गज़नी में पीछा नहीं किया। परन्तु उसके दिल्ली भेजे गए दूत और उसके साथियों की मुग़ल सैनिकों ने जलालाबाद में हत्या कर दी।


नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण का कारण :-


  • नादिरशाह के दूतों के साथ मुगल सैनिकों व्यवहार

  • मुहम्मद शाह ने नादिर शाह से दूतों का आदान-प्रदान भी स्वीकार नहीं किया| जो नादिरशाह का अपमान था।

  • नादिरशाह को भारत लूटने की भी इच्छा थी। 

  • उसे मुग़लों की सैनिक दुर्बलता का भी आभास था

  • नादिरशाह को निश्चित रूप से मुगल शासन के ह्रास का पता था और आन्तरिक झगड़ों से मुगल शक्ति के क्षीण होने की भी सूचना थी।

  • उसे मुगल दरबारियों ने आक्रमण करने के लिए आमन्त्रित किया था।



भारी फूट और विघटन की इस पृष्ठभूमि में "ईरान के नेपोलियन," नादिर शाह ने 1738-39 में भारत पर आक्रमण किया । ईरानी आक्रमणकारी ने 1738 में काबुल, जलालाबाद और पेशावर पर कब्जा कर लिया तथा 1739 में उसने लाहौर पर भी अधिकार कर लिया।


 उसने सर्वप्रथम 29 जून को काबुल पर अधिकार कर लिया।इसमें उसे किसी प्रतिरोध का सामना नहीं करना पडा|चुंकि नादिरशाह ने एक दयालु शत्रु और उदार स्वामी के रूप में अपनी छवी बना रखी थी। और वह भगोड़ों को भिन्न-भिन्न प्रलोभन देता था। काबुल के मुगल शासक नादिर खां ने  नादिर शाह के सम्मुख घुटने टेके ,माफी मांग कर, नादिरशाह द्वारा दी गई काबुल और पेशावर की गवर्नरी स्वीकार कर ली।फिर इसी तरह नादिरशाह ने सिन्ध नदी को पार कर बहुत सरलता से लाहौर के गवर्नर को हरा दिया। नासिर खां की तरह वह भी नादिरशाह से मिलकर दिल्ली की ओर बढ़ गया।


करनाल का युद्ध(24 फरवरी, 1739):-



जब नादिर शाह ने दिल्ली की ओर तेजी से बढ़ना शुरू किया तो मुगल सम्राट ने आक्रमणकारी को रोकने के लिए निज़ाम-उल-मुल्क, कमरुद्दीन खाँ और खान-ए-दौरों के नेतृत्व में80,000 सेनिकों की सेना को भेजा । बाद में इनके साथ सआदत खाँ भी शामिल हो गया। 1739 में करनाल के निकट मुगल तथा नादिर शाह की सेनाओं के बीच वास्तविक युद्ध केवल तीन घण्टे तक ही चला, जिसमें मुगल सेना की भयंकर पराजय हुई| खान-ए-दौराँ युद्ध में मारा गया । और सआदत ख़ां बन्दी बना लिया गया।

निजामुलमुल्क ने अब शान्तिदूत की भूमिका निभाई। यह निश्चित हुआ कि नादिरशाह को 50 लाख रुपया मिलेगा, 20 लाख तुरन्त और 10-10 लाख की तीन किस्तें लौटते हुए, लाहौर, अटक और काबुल में।इस तरह निज़ाम-उल-मुल्क ने नादिर शाह को वापस जाने के लिए सहमत कर लिया था| प्रसन्न होकर सम्राट ने निजामुलमुल्क को तुरन्त मीर बख्शी नियुक्त कर दिया क्योंकि यह स्थान खान दौरान की मृत्यु के कारण रिक्त हो चुका था।


लेकिन (अवध के प्रथम नवाब) सआदत खाँ, जो निज़ाम का विरोधी था, ने स्वार्थ भाव तथा आपसी द्वेष का वह रूप  दिखलाया जो इससे पहले सम्भवतः भारत के इतिहास में कभी देखने को नहीं मिला। उसने नादिर शाह को सुझाव दिया कि वह सम्राट मुहम्मद शाह और निज़ाम को बन्दी बना ले, दिल्ली की ओर कूच करे| तो 20 लाख नहीं 20 करोड़ रुपया आपको मिल सकता है।


नादिरशाह का दिल्ली की ओर प्रस्थान:-


 नादिरशाह को मुगल राजनीति का आभास निज़ाम से पहले ही मिल चुका था।क्योकि  निज़ाम ने स्पष्ट रूप से बता दिया था कि दरबार में गुटबन्दी के कारण ही मराठे मुगल साम्राज्य का इतना बड़ा भाग  जीत सके थे और इसीलिए वह दुःखी होकर दक्कन चला गया था|इसलिए नादिर शाह ने सआदत खाँ के सुझाव को स्वीकार कर लिया|और उसने दिल्ली की ओर प्रस्थान की आज्ञा दे दी।वह 20 मार्च, 1739 को दिल्ली पहुंचा। नादिर के नाम का खुत्बा पढ़ा गया तथा सिक्के जारी किए गए। मुगल राज्य के स्थान पर फारसी राज्य आरम्भ हो गया।


दिल्ली में पहुँचने के दो दिन बाद अर्थात 22 मार्च को दिल्ली में यह अफवाह फैल गई कि नादिरशाह की मृत्यु हो गई है। नगर में जन विद्रोह हो गया और नादिर के 700 सैनिक मार दिए गए। इस पर नादिरशाह ने कत्लेआम की आज्ञा दे दी।जिसमें 20,000 से अधिक व्यक्तियों को कत्ल कर दिया गया  लगभग 30,000 व्यक्ति हताहत हुए। मुहम्मद शाह की प्रार्थना पर ही यह आज्ञा वापिस ली गई। 


नादिरशाह' की लूट और दिल्ली से वापसी:-


नादिरशाह दिल्ली में 57 दिन अर्थात लगभग दो मास ठहरा और अधिकाधिक लूटने का प्रयत्न किया। उसने सभी मुगल अमीरों और आम जनता को भी धन देने के लिए बाध्य किया। दिल्ली के नागरिकों की सम्पत्ति की सूची बनाने के लिए कारिन्दे घर-घर गए । राजधानी का दो करोड़ रुपए कर निर्धारित किया गया । नादिर शाह के सैनिकों ने किसी भी वस्तु और किसी भी व्यक्ति को नहीं बख्शा | 


अवध के नवाब सआदत खां को कहा गया कि यदि 20 करोड़ रुपया एकत्रित नहीं हुआ तो उसे शारीरिक यातना दी जाएगी।रुपये एकत्र न हो पाने से उसने विष खाकर आत्महत्या कर ली। उसके उत्तराधिकारी सफ़दर जंग ने 2 करोड़ रुपया दिया | नादिरशाह लगभग 30 करोड़ रुपया नकद और सोना, चांदी, हीरे, जवाहरात के अलावा 100 हाथी, 7,000 घोड़े, 10,000 ऊंट, 100 हीजड़े, 130 लेखपाल, 200 उत्तम लोहार, 300 राज, 100 संगतराश  और 200 बढ़ई भी साथ ले गया। प्रसिद्ध मुगल राजसिंहासन तख्त-ए-ताऊस या मयूर सिंहासन, जिसको शाहजहाँ ने निर्मित कराया था,जिसका मूल्य एक करोड़ रुपए था और कोहिनूर हीरा, जो शाही ताज़ में जड़ा हुआ था के  साथ  ही मुहम्मदशाह द्वारा तैयार करवायी गई हिन्दू संगीत की प्रसिद्ध चित्रित फारसी पांडुलिपि को भी नादिर शाह अपने साथ ले गया। 

नादिर शाह के पुत्र नासिरूल्लाह मिरजा से मुग़ल सम्राट ने अपनी पुत्री का विवाह कर दिया। इसके अतिरिक्त कश्मीर तथा सिन्ध नदी के पश्चिमी प्रदेश ,थट्टा का प्रान्त और उसके अधीनस्थ बन्दरगाहें भी नादिर शाह को मिल गए।  पंजाब के गवर्नर ने 20 लाख रुपया वार्षिक कर देना स्वीकार किया और यह भी वचन दिया कि नादिरशाह की सिन्ध के पार सेना को शिकायत का कोई अवसर नहीं मिलेगा।






नादिर शाह का आक्रमण का परिणाम:-
(1738-39)


  • लगभग 348 करोड़ रुपए संपत्ती उसके हाथ लगी| 

  • मुहम्मद शाह को पुनः मुग़ल साम्राज्य का सम्राट घोषित कर ,खुत्बा पढ़ने और सिक्के चलाने का भी अधिकार लौटा दिया।

  • नादिरशाह ने मुगलों को आड़े समय में सैनिक सहायता का वचन  दिया।

  •  कश्मीर से सिन्ध नदी तक के मुगल साम्राज्य के पश्चिमी प्रान्तों, जिनमें थट्टा का मुगल प्रान्त,उससे  सम्बद्ध मुगल किले और उसके अधीनस्थ बन्दरगाहें भी शामिल थे,को नादिर शाह ने अपने के ईरानी साम्राज्य में मिला लिया। 

  • नादिर शाह के भारत से चले जाने के बाद केन्द्रीय प्रशासन का ढाँचा धराशायी हो गया और

  • इस आक्रमण ने सम्पूर्ण विश्व के सम्मुख मुगल साम्राज्य में की शक्तिहीनता को उद्घाटित कर दिया|

  • मुगल साम्राज्य का राजनीतिक, सैनिक और नैतिक पतन अब पूर्णतः जग-जाहिर हो गया । 

  •  अहमद शाह अब्दाली के भावी आक्रमणों के लिए भारत के द्वार उन्मुक्त कर दिए । अहमद शाह अब्दाली ने 1748 से 1767 तक पाँच बार भारत पर आक्रमण किए, जिनकी चरम परिणति पानीपत के तृतीय युद्ध के रूप में हुई।

  • मुगल दरबार में अस्त-व्यस्तता ने अधिक उग्र रूप धारण कर लिया  था और पारस्परिक मतभेद पहले से कहीं अधिक तीव्र हो गए।

  • अब मुगल साम्राज्य, सम्राट की नाममात्र की प्रभुसत्ता स्वीकार करने वाले ५ स्वायत्त राज्यों का समूह मात्र रह गया ।

 

1739 में नादिर शाह के आक्रमण से मुगल साम्राज्य ने जिस अपमान, लूट-खसोट एवं विघटन को सहा, वह साम्राज्य की बढ़ती हुई अशक्तता का ही अवश्यंभावी दुष्परिणाम था । नादिर शाह मुगल साम्राज्य के पतन के लिए उत्तरदायी नहीं था,मुगल साम्राज्य के पतन की प्रक्रिया कई दशक पूर्व ही प्रारम्भ हो चुकी थी  उसने तो केवल यह सिद्ध किया कि मुगल साम्राज्य मर चुका है| उसने इस भ्रम पर्दा हटा दिया जिसके अन्तर्गत भव्य वस्त्र धारण किए हुए शव को भ्रमवश शक्तिशाली व्यक्ति समझा जा रहा था|


नादिरशाह भारत से वापस 1739 में गया| भारत में अपनी विजय के कुछ समय पश्चात् ही नादिर शाह का मानसिक सन्तुलन बिगड़ गया और उस पर पागलपन के दौरे पड़ने लगे । ऐसी स्थिति में 1747 में उसकी हत्या कर दी गई जिसके बाद योग्य शासक के अभाव में उसके विशाल साम्राज्य का विघटन हो गया । नादिर शाह के बाद उसके प्रमुख सेनानायकों में अब्दाली जनजाति का अहमद नामक एक अफगान शाही उपाधि (शाह) धारण कर अहमद शाह अब्दाली के नाम से अफगानिस्तान का शासक बन गया|





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