सिक्ख धर्म गुरू व उनके कार्य
सिक्ख धर्म की स्थापना गुरू नानक देव ने की थी | 'सिख' शब्द का अर्थ पंजाबी भाषा में 'शिष्य' होता है। ईश्वर के वे शिष्य जो दस सिख गुरुओं के लेखन और शिक्षाओं का पालन करते हैं ,सिक्ख कहलाते हैं|
ये एक ईश्वर में विश्वास करते हैं। ये विश्वास करते है कि उन्हें अपने प्रत्येक काम में ईश्वर को याद करना चाहिये। इसे ही सिमरन (सुमिरण) कहा जाता है।
सिक्ख धर्म गुरू व उनके कार्य
1, गुरु नानक(1469-1538) -
गुरुनानक देव सिक्ख धर्म के संस्थापक थे|
इनका जन्म रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी, पंजाब (पाकिस्तान)नामक गाँव में कार्तिकी पूर्णिमा को एक खत्रीकुल में हुआ था। इन्होने समानता एवं सत्कर्मों पर सर्वाधिक बल दिया| तथा धर्म के प्रचार प्रसार के लिये 'संगतों' की स्थापना की|इसके अलावा नानक जी ने हिन्दु -मुस्लिम एकता पर बल दिया और, अवतारवाद एवं कर्मकाणड का विरोध किया|उन्होंने कर्तारपुर नामक एक नगर बसाया, वर्तमान पाकिस्तान में है।सन् 1539 को गुरु नानक जी का देहांत इसी स्थान पर हुआ था।
2. गुरु अंगद (लेहना) (1538-1552ई.)
गुरू अंगद जी का जन्म हरीके नामक गाँव ( फिरोजपुर, पंजाब)में 10 अप्रैल 1504को हुआ था। उनके पिता का नाम श्री फेरू जी व माता का नाम माता रामो देवी था यह गुरू गानक के शिष्य थे|इन्हें बाबा श्री चन्द के नाम से भी जाना जाता है| इन्होने गुरू के उपदेशों का सरल भाषा में प्रचार किया| गुरु अंगद ने लंगर व्यवस्था को स्थायी बनाया । तथा गुरुमुखी लिपि की शुरुआत की| मुगल बादशाह हुमायूं 1504 में सिक्ख धर्म गुरु अंगद से पंजाब में मिला था|
3. अमरदास-(1552-1574ई.)-
गुरू अमर दास जी का जन्म बसर्के गिलां( अमृतसर) में हुआ था। इनके पिता का नाम तेजभान भल्ला एवं माता का नाम बख्त जी था| यह गुरु अंगद के शिष्य थे| इन्होने सिक्ख सम्प्रदाय को एक संगठित रूप दिया |जिसके लिये 22 गद्दीयाँ बनाया. अपने शिष्यों के लिये पारिवारिक संत होने का उपदेश दिया, सती प्रथा, पर्दा प्रथा मादक द्रव्यों के सेवन का विरोध किया। श्री चन्द्र के विरोध के कारण स्थान बदलना पड़ा।मुगल बादशाह अकबर ने पंजाब में गुरू अमरदास से भेट की थी |,अकबर ने गुरु और उनके शिष्यों को तीर्थ यात्रा कर से मुक्त किया तथा उनकी पुत्री के नाम कई गाँव दान में दिये थे। यह वैष्णव सम्प्रदाय के अनुयायी थे। इन्होंने सिखों और हिन्दुओं के विवाह को पृथक करने केलिए 'लवन पद्धति' का प्रारम्भ किया था।
4 गुरु रामदास(1574-1581ई.)-
यह सिक्खों के चौथे धर्म गुरू थे| गुरू राम दास (जेठा जी) का जन्म चूना मण्डी, लाहौर ( पाकिस्तान ) में 24 सितम्बर 1534 को हुआ था।इनकी माता का नाम दया कौर जी (अनूप कौर जी) एवं पिता का नाम हरी दास जी सोढी था| मुगल बादशाह अकबर इनसे बहुत अधिक प्रभावित था,अकबर ने 1577 ई.में इन्हें 500 बीघा जमीन दी जिसमें एक प्राकृतिक तालाब था, यहीं पर 'अमृतसर नगर की स्थापना हुई|इनके समय गुरु का पद पैतृक हो गया।
5.गुरू अजुन देव(1581-1606)-
अर्जुन देव गुरु राम दास के पुत्र थे व उनकी माता का नाम बीवी भानी जी था। उनका जन्म 25अप्रैल 1563को गोइंदवाल साहिब में हुआ ।
1604 में 'आदिग्रन्थ' में करवाया,गुरू अर्जुन देव ने सूफी संत मियां मीर द्वारा अमृतसर में हरमिंदर साहब की नींव डलवायी, कालांतर में रणजीतसिंह द्वारा हरमिंदर साहब में स्वर्ण जडवाने के बाद अंग्रेजों द्वारा पहलीबार 'Golden Temple(स्वर्ण मंदिर) नाम दिया गया। इन्होंने धर्म का प्रचार करने के लिए स्थायी रूप से धर्म प्रचारक (मसंद और मेवरा) नियुक्त किया | इसके अलावा 'गुरू पद' को सिक्खों का आध्यात्मिक तथा सांसारिक प्रमुख बनाकर 'शान-ओ-शौकत' से रहना शुरू किया।इन्होंने ही सिक्खों से उनकी आय का 10 प्रतिशत दान के रूप में लेने की प्रथा प्रारम्भ की| मुगल बादशाह जहाँगीर के विरोधी पुत्र खुसरो को आशीर्वाद देने के कारण राजद्रोह के आरोप में 1606 ई० फांसी दे दी गयी|अर्जुन देव ने अपने पुत्र हरगोविन्द को सशस्त्र होकर बैठने और सर्वोच्च सेना गठित करने का आदेश दिया। अपने गुरू के मृत्यु दण्ड को सिक्खों ने मुगलों द्वारा धर्म पर पहला आक्रमण माना ।इन्होंने 1590ई. में तरनतारन नामक नगर की स्थापना की।
6.गुर हरगोविन्द (1606-45 ई०)-
सिक्खों के छठे गुरू हरगोविन्द का जन्म
19 जून, 1595 गुरू की वडाली, अमृतसर, पंजाब में हुआ|तथा मृत्यु 28 फरवरी 1644 को कीरतपुर साहिब, भारत में हुई| इन्हें छट्ठे बादशाह के नाम से भी जाना जाता है| इन्होने मीरी पीरी की स्थापना की|गुरू हरगोविन्द ने रोहिला, करतारपुर,अमृतसर (१६३४),हरगोबिंदपुर ,गुरुसर की लड़ाइयों में भागिदारी की| गुरू ने सिक्खों को एक सैनिक सम्प्रदाय' बना दिया| उन्होंने अपने समर्थकों से धन के बजाय घोड़े और हथियार लेना शुरू किया, उन्हें मांस खाने की अनुमति दी। गुरू हरगोविन्द जी ने 'तख्त अकाल बंगा' की नींव डाली तथा अमृतसर की किलेबंदी की, सिक्खों को धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ सैनिक शिक्षा दी,मुगल बादशाह शाहजहाँ से बाज प्रकरण के कारण संघर्ष हुआ।
7. गुरु हर राय(1645-1661ई.)-
सिक्खों के सातवें गुरू जिनका जन्म सन् 1630 ई० में कीरतपुर रोपड़ में हुआ था। इनके पिता का नाम बाबा गुरदित्ता जी एवं माता का नाम निहाल कौर जी था|इनके दो पुत्र,रामराय व हरिकिशन थे| मुगल बादशाह औरंगजेब द्वारा दरबार में बुलाने पर अपने पुत्र रामराय को दरबार में भेजा। फलस्वरूप दूसरे पुत्र हरिकिशन को गद्दी सौपी। इन्होने मुगल बादशाह शाहजहाँ के पुत्र दारा के सामूगढ़ युद्ध में पराजित होकर पंजाब भागने पर उसकी मदद की थी |
8.गुरू हरिकिशन (1661-1664 ई०)-
आठवें सिक्ख गुरू ,गुरू हर किशन साहिब जी का जन्म 7 जुलाई 1656 को कीरतपुर साहिब में हुआ। उनके पिता गुरू हर राय साहिब जी एवं माता किशन कौर थी । इनका गद्दी के लिये अपने बड़े भाई रामराय से विवाद हुआ ।
9.गुरु तेगबहादुर(1664-75 ई०)-
सिक्खों के नवें गुरु तेगबहादुर का जन्म 1 अप्रैल 1621 को व मृत्यु 11 नवम्बर, 1675 को हुई|गुरू हरिकिशन ने मृत्यु से पहले उन्हें 'बाकला दे बाबा' कहा तत्पश्चात् वे बाकला में गुरू स्वीकृत हो गये| धीनामल और रायमल इनके प्रमुख विरोधी थे इन्होंने मुगल बादशाह औरंगजेब की धार्मिक नीतियों का विरोध किया फलस्वरूप 1675 ई० इस्लाम धर्म नहीं स्वीकार करने के कारण गुरू की हत्या कर दी गयी। जहाँ इनका शीश कट कर गिरा वहाँ आज शीशगंज गुरूद्वारा स्थित है|
10.गुरू गोविन्द सिंह (1675-1708 ई०)-
दसवें सिक्ख गुरू गोबिन्द सिंह का जन्म 26 दिसंबर , 1666 को पटना( बिहार, भारत) में हुआ|तथा मृत्यु 7 अक्टूबर 1708 (उम्र 42) नांदेड़, (महाराष्ट्र, भारत) में हुई| इनके पिता गुरु तेगबहादुर व माता का नाम गूजरी था| बच्चे अजीत सिंह,जुझार सिंह,जोरावर सिंह,फतेह सिंह थे|इन्होने पंजाब की तराई 'मखोवल' अथवा आनन्दपुर' में अपना मुख्यालय बनाया| तथा 'पाहुल' प्रथा प्रारम्भ की, इस मत में शिक्षित व्यक्ति को 'खालसा' कहा गया। और उसके नाम के अन्त में सिंह उपाधि दी गयी|'खालसा' का गठन 1699 ई० में किया|इन्होने प्रत्येक सिक्ख को 'पंचमकार' (केश, कंघा, कड़ा, कच्छ और कृपाण) धारण करने का आदेश दिया एवं अपनी मृत्यु से पहले ही गद्दी को समाप्त कर दिया |गुरू गोविन्द सिंह जी ने एक पूरक ग्रन्थ 'दसवें बादशाह का ग्रन्थ' का संकलन किया| यह सिक्खों के अन्तिम गुरू थे|
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