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मुग़ल शासक औरंगजेब काल में विद्रोह

 

औरंगजेब के शासन काल  में हुए विद्रोह 


औरंगजेब कट्टर सुन्नी मुसलमान था तथा उसकी आर्थिक ,धार्मिक व राजपूत नीतियों के कारण उसके शासन काल में अनेक  विद्रोह हुए उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-


 
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अफगान विद्रोह

 

1665 से 1675 के मध्य उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत में अनेक जनजातीय विद्रोह हुए। उन्ही में से एक अफ़गान विद्रोह था। 1667 ई० में युसुफजई कबीले (पश्चिमोत्तर क्षेत्र में स्थित) के एक सरदार 'भागू' ने एक प्राचीन शाही खानदान का वंशज होने का दावा करने वाले एक व्यक्ति मुहम्मदशाह को 'राजा' और स्वयं को उसका वजीर घोषित करके विद्रोह कर दिया। मुगलों द्वारा इस विद्रोह को अमीर खाँ के नेतृत्व में दबाया गया। अफगानों ने1672 ई० में अफरीदी सरदार अकमल खाँ के नेतृत्व में एक बार दुबारा  विद्रोह का झण्डा खड़ा कर दिया उसने खुद को राजा घोषित किया। तथा अपने नाम का 'खुतबा' पढ़वाया, एवं  सिक्का चलवाया। 1675 ई० में औरंगजेब में स्वयं जाकर शक्ति और कूटनीतिक प्रयासों द्वारा अफगानों की एकता तोड़ी और शान्ति स्थापित किया। इस अफगान विद्रोह का प्रमुख कारण पृथक अफगान राज्य की स्थापना का उद्देश्य था। 'रोशनाई' नामक धार्मिक आन्दोलन' ने इस विद्रोह को पृष्ठभूमि प्रदान की थी।

 

 

जाटों का विद्रोह

 

जाटों का विद्रोह आर्थिक कारणों को लेकर शुरू हुआ । औरंगजेब के समय का पहला संगठित विद्रोह  था । जो आगरा और दिल्ली क्षेत्र में बसे जाटों ने किया था । इस विद्रोह को 'सतमानी आन्दोलन' का समर्थन प्राप्त था । अधिकतर किसान और काश्तकार ही इस विद्रोह की रीढ़ थे लेकिन नेतृत्व मुख्यतः जमीदारों ने किया। 1669 ई० में मथुरा क्षेत्र के जाटों ने एक स्थानीय जमीदार 'गोकुला' के नेतृत्व में पहला हिन्दू विद्रोह किया। मुगल फौजदार इसन अली खाँ ने तिलपत के युद्ध में जाटों को परास्त किया और गोकुला को बन्दी बनाकर मार डाला गया ।

 

जाटों ने दूसरा जाट विद्रोह 1685 ई० में राजाराम के नेतृत्व में किया। यह विद्रोह  पहले विद्रोह से अधिक संगठित था। इस विद्रोह में जाटों ने छापामार हमलों के साथ ही  लूटमार की नीति अपनायी।जाट नेता  राजाराम ने सिकन्दरा में स्थित अकबर के मकबरे को लूटा लिया  और मकबरे से अकबर की हड्डियों को निकाल कर जला दिया। औरंगजेब के पौत्र वीदर वख्श और आमेर के राजा विशन सिंह ने1688 ई० में राजाराम को परास्त किया। 1688 ई० में राजाराम की मृत्यु के पश्चात जाट नेतृत्व की बागडोर उसके भतीजे चूरामन ने संभाली ली तथा वह औरंगजेब की मृत्यु तक विद्रोह करता रहा था  । अन्त में मथुरा के निकट चूरामन ने 'भरतपुर' नामक एक स्वतंत्रत राज्य की स्थापना की। 

 

सतनामी विद्रोह(1672 ई०)

 

सतनामी विद्रोह की आरंभ एक सतनामी और एक मुगल  सैनिक अधिकारी के बीच झगड़े को लेकर हुई । सतनामी वैरागियों क एक धार्मिक सम्प्रदाय या  पन्थ था। इस पन्थ की स्थापना 1657 ई० में नारनौल नामक स्थान पर हुई थी। शुद्ध अद्वैतवाद' में उनका विश्वास था।

 मथुरा के निकट नारनौल नामक स्थान पर 1672 में किसानो और मुगलों के बीच एक युद्ध हुआ जिसका नेतृत्व इसी सतनामी नामक धार्मिक सम्प्रदाय ने किया था।

अधिकतर सतनामी किसान, दस्तकार तथा नीची जाति के लोग थे।  वह सत्य एवं ईश्वर में विश्वास रखने के कारण वे खुद को 'सतनामी' पुकारते  थे। वे अपने पूरे शरीर के बालों को मूँड़कर रखते थे इसलिए  उन्हें 'मुण्डिया' भी कहा जाता था।

 स्थानीय हिन्दू जमींदारों (जिनमें अधिकतर राजपूत थे) ने इस विद्रोह को दबाने में मुगलों का साथ दिया था।

 

 

 

बुन्देलों का विद्रोह

 

 

बुंदेलखंड में चंपतरायऔर छत्रसाल बुंदेला के नेतृत्व में बुंदेलों ने विद्रोह किया ।'मधुकर शाह' के समय  मुगलों और बुन्देलों के बीच पहली बार संघर्ष शुरू हुआ।

 

 दारा शिकोह से बदला लेने के लिए चम्पतराय (ओरछा का शासक) ने उत्तराधिकार के युद्ध में  औरंगजेब का साथ दिया था और बदले में  औरंगजेब ने भी उसे पंचहजारी मनसब और एक सम्मान-सूचक खिताब दिया था। लेकिन किसी बात को लेकर चम्पतराय ने 1661 ई० में मुगलों के खिलाफ विद्रोह कर दिया।  तथा परास्त होने के पर  उसने आधिपत्य स्वीकार करने के स्थान पर आत्महत्या कर ली थी ।

चम्पतराय के पुत्र 'छत्रसाल' ने चम्पतराय की मृत्यु के बाद औरंगजेब के खिलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया। यद्यपि छत्रसाल ने पुरन्दर की सन्धि तथा बीजापुर घेरे के दौरान औरंगजेब की सराहनीय सेवा की थी। छत्रसाल ने 1705 ई० में औरंगजेब से सन्धि कर ली। जिसके परिणाम स्वरूप उसे 4000 का मनसब और 'राजा' घोषित किया गया।

 

औरंगजेब की मृत्यु के बाद 1707 ई० में वह बुन्देलखण्ड का स्वतंत्र शासक बन गया।

 

शाहजादा अकबर का विद्रोह

 

शहजादा अकबर मुगल शासक औरंगजेब का पुत्र था । उसने मेवाड़ के शासक तथा मारवाड़ के राठौरों से सहयोग का आश्वासन पाकर 11 जनवरी, 1681 ई० को अपने को स्वतंत्र बादशाह घोषित कर दिया। और 1681 ई० में शाहजादा अकबर ने अजमेर के निकट औरंगजेब पर आक्रमण कर दिया। चूंकि शहजादा अकबर ने राजपूतों की प्रेरणा से विद्रोह किया था अतः असफल होकर वह मारवाड़ के वीर दुर्गादास के पास शरण के लिए पहुंचा और बाद में शम्भा जी के पास सहायता के लिए शरण ली।  लेकिन उसके पीछे पीछे  औरंगजेब के दक्षिण पहुँच जाने के कारण वह फारस भाग गया और वही उसकी मृत्यु हो गयी।

 

 

राजपूतों का विद्रोह (1669-1709)

 

इस राजपूत विद्रोह का मुख्य कारण उत्तराधिकार की समस्या थी । जो औरंगजेब की धार्मिक नीति के कारण उत्पन्न हुई थी|मुगलों और मारवाड़ के बीच तीस वर्षीय युद्ध (1679-1709) लडा गया । जिसका नायक दुर्गादास था ।इस युद्धध में मारवाड़ का साथ मेवाड़ ने भी दिया क्योंकि अजित सिंह की माँ मेवाड़ की राजकुमारी थी तथा मेवाड़ का राजा राजसिंह जाजीया लगाने के कारण औरंगजेब से नाराज था ।  बाद में औरंगजेब को उसके बेटे शहजादा अकबर के विद्रोह का दमन करने के लिए दक्षिण जाना पडा इसलिए उसने मेवाड़ के राज्य से संधि कर ली तथा जजीया कर भी समाप्त कर दिया । तथा मारवाड़ की सहायता न करने का वचन लिया ।

 

 

सिक्ख विद्रोह

 

 औरंगजेब के शासन काल में उसके खिलाफ बगावत करने वालों में सिक्ख अन्तिम थे।औरंगजेब  के काल का यह  एक मात्र विद्रोह था जो धार्मिक कारणों से हुआ था। सिक्खों का विद्रोह प्रत्यक्ष रूप से 1675 ई० तेग बहादुर को प्राणदण्ड दिये जाने के बाद शुरू हुआ।  सिक्ख गुरू तेग बहादुर की मृत्यु के पश्चात गुरू गोविन्द सिंह ने औरंगजेब की नीतियों का अनवरत  विरोध किया। गुरू गोविन्द सिंह ने 'मखोवल' या 'आनन्दपुर’ अपना मुख्यालय बनाया।

  अपनी मृत्युसे पहले सिक्ख गुरू गोविन्द सिंह ने ही गुरू की गद्दी को समाप्त कर दिया था, तथा  सिक्खों को एक कट्टर सम्प्रदाय बनाया ।  गुरू गोविन्द सिंह ने पूरक ग्रन्थ को संकलित किया जिसका बादशाह का ग्रन्थ' रखा गया।

 

 औरंगजेब का साम्राज्य विस्तार,दक्षिण नीति,व मराठों से संघर्ष>>

·         इन विद्रोहों के अतिरिक्त औरंगजेब के समय मुगलों का असम के अहोमों के बीच लम्बा संघर्ष हुआ,तथा मुगल सेना ने मीरजुमला के नेतृत्व में अहोमों पर आक्रमण कर उन्हें संधि लिए मजबूर किया (1663)। अहोमों ने 1671 में अपने इलाके मुगलों से दोबारा छीन लिया।

·         औरंगजेब ने 1686 ई. अंग्रेजों को हुगली में पराजित कर उन्हें बाहर खदेड़ दिया ।

 

 

 

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