दारा शिकोह (एक मुगल) भारत के इतिहास में
दारा शिकोह (एक मुगल) :एक परिचय
मुगल बादशाह शाहजहाँ जो भारत का मध्य कालीन शासक था । उसी का सबसे बड़ा पुत्र दारा शिकोह था । शाहजहाँ का विवाह 1612 में आसफ खाँ की पुत्री अर्जूमंद बानो बेगम से 1612 में हुआ ।
जो कि इतिहास में मुमताज महल के नाम से प्रसिद्ध हुई । शाहजहाँ की इस पत्नी से उसकी 14 संताने थी। संतानों में से 4 व 3 पुत्रियाँअर्थात कुल 7 संताने ही जीवत रही । वो संताने -(!)जहाँआरा ,(2)दाराक्षिकोह ,( 3)रोशनआरा ,(4) औरंगजेब ,(5) मुरादबख्श (6)गौहनआरा ।
दारा शिकोह (एक मुगल) :एक परिचय
- दारा शिकोह का जन्म शाहजहाँ की प्रिय बेगम मुमताज महल के गर्भ से 1615 को हुआ ।
- दारा को उसके पिता व मुगल बादशाह शाहजहाँ के द्वारा 'शाहबुलंद इकबाल ' की उपाधि से विभूषित किया गया ।
- इसके अलावा दारा को लेनपूल ने 'लघु अकबर' कहा है ।
- दारा कादरी सूफी परंपरा से बहुत प्रभावित था ।
- दारा के आध्यात्मिक गुरु संत मुल्लाशाह थे , जो कादरी सूफी परंपरा से तालुक रखते थे।
- दारा ने बहुत से ग्रंथों का अनुवाद करवाया ।
- उसने पुस्तकों की रचना भी की।
उसने पुस्तकों की रचना भी की।
दारा शिकोह (एक मुगल) के सूफी मत वाले ग्रंथ :-
- सफीनत -उल -औलिया ,
- सकीनत -उल -औलिया
- हसनात -उल -आरफीन
- तरीकत -उल-हकीकत
- रिसालाए -हक -नुमा
दारा शिकोह (एक मुगल)की रचनाएं :-
- दारा ने संस्कृत ग्रंथ -भगवत गीता का और योगवशिष्ठ का फारसी में अनुवाद करवाया |
- इसके अलावा 'बारह उपनिषदों' का 'सिर्र- ए - अकबर ' नाम से फारसी में अनुवाद करवाया । इसमें काशी के संस्कृत पंडितों के साथ वह स्वयं लगा था ।
- दर ने वेदों को ईश्वरीय कृति माना । तथा वेदों का संकलन करवाया । जो उसका सबसे महत्वपूर्ण कार्य है।
- 'मज़्म -उल -बहरीन ' (दो समुद्रों का संगम) -दारा की एक मौलिक पुस्तक है। जिसमें बताया गया है की हिन्दू व मुस्लिम धर्म एक ही ईश्वर को प्राप्त करने के दो साधन हैं ।
दारा शिकोह (एक मुगल) :और मुगल उत्तराधिकार का युद्धध
शाहजहाँ के चार पुत्र दाराशिकोह , शाहशूजा , औरंगजेब , तथा मुरादबख्श
थे । सितंबर 1657 में शाहजहाँ के बीमार हो जाने के कारण वह राजनीति के प्रति उदास हो गया । इसलिए उसके चारों पुत्रों में सिंहासन के लिए उत्तराधिकार का युद्धध हुआ ।
इस युद्धध में उसकी पुत्रीयों ने भी किसी न किसी शहजादे का पक्ष लिया ।
मुगल इतिहास में एसा पहली बार हुआ की बादशाह के जीवित रहते सिंहासन के लिए इतना भीषण युद्धध (विद्रोह के अलावा ) लड़ गया हो।
- सर्वप्रथम शाहशूजा ने बंगाल में खुद को बादशाह घोषित किया और जनवरी 1658 में राजधानी की ओर कूच किया ।
- शाहशूजा और शाही सेना के बीच बनारस से 5 किमी दूर 'बहादुरपुर ' में युद्धध हुआ । यही युद्धध की शुरुवात थी । जिसमे शुजा हारकर पूर्व की ओर भाग गया ।
- शुजा की तरह ही शाहजहाँ के दूसरे पुत्र मुराद ने स्वयं को गुजरात में बादशाह घोषित कर दिया । लेकिन औरंगजेब ने एसा नहीं किया ।
- अब मुरादबक्श और औरंगजेब की सम्मिलित सेना ने मिलकर शाही सेना को उज्जैन से 14 मील दूर धरमत के युद्धध में अप्रैल 1658 में पराजित किया ।
- शाही सेना के साथ दारा था ।
सामू गढ़ का युद्धध -
- यह युद्ध जिसमें एक तरफ शाही सेना जिसमें दारा था और दूसरी तरफ मुराद व औरंगजेब की सम्मिलित सेना थी ।
- इस युद्धध ने दारा के भाग्य का फैसला कर दिया । सामूगढ़ के युद्धध में शाही सेना की पराजय हुई । तथा औरंगजेब व मुराद की सम्मिलित सेना की विजय हुई।
- दारा सामुगढ़ के युद्धध में इस कारण पराजित हुआ की मुसलमान सरदारों ने उसके साथ विश्वासघात किया । इसके अलावा औरंगजेब दारा से ज्यादा योग्य सेनापति था ।
- और औरंगजेब ने बाद में मुराद की भी हत्या करवा दी ।
देवराई घाटी का युद्धध :-
- यहाँ दारा और औरंगजेब के मध्य आखरी व निर्णायक लड़ाई हुई । यह युद्धध अप्रैल 1659 को अजमेर के निकट देवराई घाटी में हुआ।
- इस लड़ाई में दारा अंतिम रूप से औरंगजेब से पराजित हुआ ।
- दारा को बंदी बनाया गया । और न्यायधीशों की एक कोर्ट द्वारा उसे मृत्यु दंड दिया गया ।
- मृत्यु दंड के पश्चात् भी उसके शव को अपमानित किया गया । उसके शव को दिल्ली की सड़कों पर घुमाया गया ।
- और आखिर में उसके शव को हुमायूँ के मकबरे में दफन दिया गया ।
- बर्नियर ने लिखा है कि -"विशाल भीड़ एकत्र थी ,सर्वत्र मैने लोगों को रोते ,बिलखते और दारा के भाग्य पर शोक प्रकट करते हुए देखा । "दारा के साथ हुए अपमान जनक बरताव का बर्नियर एक चश्मदीद गवाह था ।
- दारा बादशाह शाहजहाँ का सबसे प्रिय व योग्य पुत्र था । किन्तु भाग्य ने और उसके सेनानायकों ने उसका साथ नहीं दिया । जिस कारण उसका अंत बहुत बुरा हुआ ।
- इसी के साथ औरंगजेब अगला मुगल शासक हुआ । तथा शाहजहाँ को भी उसने कैदखाने मे डलवा दिया जहां वह अपनी मृत्यु तक रहा ।
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