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Khushi, crackers and pollution

वर्तमान समय में कोई भी तीज त्योहार, कार्यक्रम  हो तो सबसे पहले याद आती है मिठाई और पटाखों की। इनके बिना कोई भी खुशी अधूरी सी लगती है। 

चुकि मैं एक जैन हूँ अतः पटाखे नहीं जलाते क्योंकि हम मानते हैं कि पटाखे जलाने से जीव हिंसा या जीव हत्या होती है और जैन धर्म में जीव हिंसा पाप है । हमारे आसपास के वातावरण में मौजूद सूक्ष्म जीव जो आंखों से नही दिखते पर पटाखे जलाने पर वे मर जाते हैं।

इसके अलावा इन पटाखों की धूल व धुंए से वायु प्रदूषण तथा तेज आवाज 🔉 से ध्वनी प्रदूषण भी होता है।


पर यह अपनी खुशी को इजहार करने का भी एक तरीका है  शादी, उत्सव, दिपावली, दशहरे , क्रिकेट मेच जीतने या किसी भी खुशी के अवसर पर इन्हे जलाकर अपनी खुशी का इजहार किया जाता है। हर धर्म, जाति, सम्प्रदाय के लोग जलाते हैं । हम ने भी बचपन में बहुत जलाए हैं बडा मजा आता था। हमारी तो पटाखों की लिस्ट दीपावली से बहुत पहले ही तैयार हो जाती थी ाअब जाकर चलाना बंद किया है।
पर पहले पटाखे किसी खास अवसर पर ही जलाए जाते थे जैसे दीपावली, दशहरा, बारात, आदि और वह भी बहुत ही कम मात्रा में तब सही था पर आ हर छोटी खुशी या बात मे पटाखे जलाए जाते है जो सही नही है इससे पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है वह प्रदूषित होता है दिल्ली में तो स्थति बदतर हो जाती है जिससे वहां सरकार को पटाखों पर रोक लगानी पडती है। और कितने ही हादसे पटाखे  बनाते व जलाते समय होते है । 

अब इसका मतलब यह तो नही कि हम दशहरे या दिपावली मनाना बंद कर दे । अरे भाई हर चीज़ के दो पहलू होते हे एक अच्छा व दूसरा बुरा। बुरा तो. यह कि प्रदूषण होता है पर एक बात तो अच्छी भी है कि इससे बरसात के बाद जो बिमारियों के मच्छर, मक्खी, जीवाणु, या जो भी है बहुत हद तक नष्ट हो जाते हैं।
हां पर अति हर चीज की बुरी होती है चाहे वह पटाखे हों या प्रदूषण  । तो आप इस बार यह प्रणलें कि पटाखे नहीं जलाएगें और दूसरों को भी मना करेंगे। हमने तो शुरूआत कर दी है अब आप की भारी है। 

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