शेरशाह सूरी
शेरशाह सूरी :-
- जन्म - 1486(कानूनगो के अनुसार), 1472(परमात्मा सरन के अनुसार)
- स्थान - बैजवाडा, होशियारपुर।
- अन्य नाम - फरीद/शेरखां
- उपाधि - सुल्तान उल अदल
- पिता - हसन खां/सहसाराम/ मिंया हसन
- दादा- इब्राहिम सूर
- पत्नी- लाड मलिका,
- पुत्र- आदिल खां, जलाल खां, कुतुब खां।
- स्थापना - सूर वंश या द्वितीय अफगान साम्राज्य
- शेरखान या फरीद का बचपन संघर्ष पूर्ण था।
- फरीद को शेरखां की उपाधि दक्षिण बिहार के सुल्तान मुहम्मद नुहानी ने इसलिए दी क्योंकि उसने बाघ को मारकर अपने स्वामी के प्राण बचाए थे।
- सुल्तान ने शेरखां को शाहजादे जलालुद्दीन नुहानी का उस्ताद 1528 में नियुक्त किया।
- सुल्तान न मुहम्मद नुहानी की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी दूदू बेगम ने शहजादे की संरक्षिका बनी तो फरीद उसका कृपापात्र बन गया तथा कुछ समय बाद जब दूदू बेगम की भी मृत्यु हो गई तो वह दक्षिण बिहार का निर्विवाद रुप से शासक बन गया।
- 1530में उसने चुनार के के किलेदिर ताजखां की विधवा लाड मल्लिका से विवाह कर चुनार के किले पर अधिकार व वहाँ की अकूत सम्पत्ति प्राप्त की।
चुनार का महत्व -
लोदी वंश के अंतिम शासक इब्राहिम लोदी का खजाना ताजखां सारंगखानी की हिफाजत में रखा था तथा इब्राहिम लोदी की मृत्यु के पश्चात ताजखां बाबर के पक्ष में आ गया। फिर ताज खां की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी लाड मल्लिका से विवाह कर यह खजाना शेरशाह के पास आ गया।
शेरशाह के सैन्य अभियान -
- चंदेरी के युद्ध में वह मुगलों की तरफ से लडा था।
- घाघरा के युद्ध में महमूद लोदी की तरफ से भाग लिया।
- 1529 में नुसरत शाह (बंगाल) को पराजित कर हजरते आला की उपाधी धारण की।
- 1532 में हुए दोहरिया के युद्ध में महमूद लोदी का साथ दिया।
- 1534 में सूरजगढ के युद्ध में बंगाल के शासक महमूद शाह ने शेरशाह को 13 लाख दिनार दिए।
- 1539 में चौसा के युद्ध में हुमायूं को हरा कर शेरखां ने शेर शाह की उपाधि धारण की। अपने नाम के सिक्के चलाए तथा खुतबा पढवाया।
- 1540 में उसने हुमायूं को कन्नौज या बिलग्राम के युद्ध में पराजित किया व द्वितीय अफगान साम्राज्य की स्थापना की।
- 1542 में मालवा पर अधिकार किया तथि उसका शासक कादिर शाह भाग गया।
- 1543 में रायसीन को विजय किया तथा वहाँ के शासक पूरनमल को विश्वास घात पूर्वक मार डाला तथा वहां स्त्रियों ने जौहर किया। यह विजय शेरशाह के चरित्र पर एक कलंक की तरह है।
- 1544 में शेरशाह ने मारवाड़ विजय की उस समय वहां का शासक मालदेव था। मालदेव पर विजय के लिए उसने धोखे कि सहारा लिया व जिली चिट्ठियां तैयार करवाई।
- 1545 में कालिंजर के युद्ध में चंदेल शासक कीरत सिंह से युद्ध हुआ। युद्ध के दौरान उक्का नामक आग्नेयास्त्र चलाते हुए आग लगने से शेरशाह की मृत्यु हो गई।
- संदर्भ - हरिश्चंद्र वर्मा - मध्यकालीन भारत का इतिहास, हुमायूं के सैन्य अभियान
- शेरशाह सूरी की प्रशासनिक व्यवस्था व योगदान के बारे में जानकारी
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