हुमायूं के तीन भाई कामरान, अस्करी और हिन्दाल थे तथा उसने अपने पिता बाबर के कहे अनुसार कामरान को काबुल वकंधार, अस्करी को सम्भल, व हिन्दाल को अलवर की जागीर दी।
उसे विरासत में मिला राज्य कमजोर, असंगठित, अस्थायी था ही साथ ही उसका शाही खजाना दिवालिया हो चुका था।
हुमायूं के सैन्य अभियान :-
- 1531-कलिंजर के शासक प्रताप रुद्र देव पर हुमायुं का पहला आक्रमण हुआ जो कि असफल रहा।
- 1532- हुमायुं का देहरिया में अफगानों से पहला मुकाबला जिसमें अफगान नेता महमूद लोदी को हराया।
- 1532-हुमायुं ने प्रथम बार चुनार का घेरा डाला जिसमे अफगान नेता शेरखांने हुमायूं की अधीनता स्वीकार की।
- । 153-मिर्जा बंधु जमान मिर्जा (बिहार) व सुल्तान मिर्जा (कन्नौज) के विद्रोह को दबाया।
- 1534-35-मालवा व गुजरात पर आक्रमण किया।
- 1535-36-हुमायूं ने बहादुर शाह पर आक्रमण कर पराजित किया व माण्डु तथा चम्पानेर का किला जीता।
- 1538- हुमायुं ने शेरखां की बढी हुई शक्ति को दबाने के लिए चुनारगढ का दूसरा घेरा डाला तथा उस किले को जीत लिया। 1538 में ही गौड का नाम बदलकर जन्नताबाद रखा।
चौसा का युद्ध (29 जून 1539) :-
यह युद्ध हुमायूं व शेरखां के मध्य बक्सर के निकट चौसा नामक स्थान पर हुआ। इसमें शेरखां विजयी हुआ व उसने शेरशाह की उपाधि धारण की। तथा हुमायु बुरी तरह पराजित हुआ उसने जान बचाने के लिए घोडे सहित गंगा में छलांग लगा दी तब एक भिश्ती ने उसकी जान बचाई। भिश्ती ने उसे कर्मनासा नदी पार कराई।
हुमायुं उसके इस उपकार को नहीं भूला व भिश्ती को एक दिन के लिए 1555 में बादशाह बनाया।
कन्नौज /बिलग्राम का युद्ध (17 मई 1540):-
यह एक निर्णायक युद्ध था जिसमें हुमायूं शेरशाह से पराजित हुआ तथा हिन्दुस्तान की सत्ता अफगानों के हाथ आ गई।
1540-1554:- हुमायूं का भारत से निर्वासन, इस काल में हिन्दाल के आध्यात्मिक गुरु मीर अली की पुत्री हुमीदा बानो बेगम से अगस्त 1541 ई. में हुमायूं ने निकाह किया। इन्ही हमीदा बानो बेगम ने अकबरको जन्म दिया।
1545 में हुमायूं ने काबुल व कंधार पर अधिकार किया
1555 में लाहौर पर अधिकार किया।
मच्छीवाडा का युद्ध (15 मई 1555) -
अफगान सरदान नसीर खां व तातर खां तथा मुगल सेना के मध्य हुए इस युद्ध मे मुगल विजयी हुए व पंजाब पर मुगलों का अधिकार हो गया।
सरहिंद का युद्ध (22 जून 1555):-
अफगान नेता सिकन्दर सूर व मुगलों के मध्य हुए इस युद्ध में मुगलों का नेतृत्व बैरम खां ने किया तथा अफगान बुरी तरह पराजित हुए।
इसके साथ ही हुमायूं को हिन्दुस्तान के सिंहासन की पुनः प्राप्ति हुई।
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