19 वीं शताब्दी के भारत में चरक पूजा या Hook-swinging का त्योहार मनाया जाता था या यह भी कह सकते हैं कि चरण पूजा आरम्भ भारत में हुआ। भारत के बहुत से भागों जैसे बंगाल, बोम्बे, मद्रास मुख्य थे। यद्यपि इसे 1864 में ब्रिटिश सरकार ने कानून द्वारा बंद कर दिया था ।किन्तु आज भी यह पश्चिमी बंगाल, दक्षिणी बांग्लादेश , श्रीलंका आदि जगहों पर इसका अस्तित्व है।
इस त्योहार में आस्था रखने वाले लोगों का मानना है कि इसमें शिव व शक्ति की आराधना कर उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश की जाती है जिससे वे भक्त को पिछले दुःख व कष्टों से मुक्ति देते हैं तथा समृद्धि लाते हैं।. इसके अलावा मोक्ष की कामना से भी उपासक उपासना करते हैं।
उपासक की टीम एक माह पूर्व से शिव व काली की मूर्ति लेकर गांव गांव घूमते हैं। तथा पूजा के लिए आवश्यक सामग्री जैसे - धान, तेल, चीनी, नमक, शहद, पैसे आदि एकत्र करते हैं।
इस दिन मेला लगता है। मेले के पूर्व रात को तांत्रिक क्रिया होती हैं। जिसमें आधी रात को चार अनुयायीयों को चार दिशाओं में तलवार लेकर भेजा जाता है जो सुबह तक मानव खोपड़ी कहीं से भी लेकर आते हैं। जिसे चरक मंदिर में दबा दिया जाता है। एक साल बाद उसी खोपडी को निकालकर उससे पूछा की जाती है। फिर तांत्रिक विधि से चरक का पेड लगाया जाता है।
एक सखुआ का खम्भा लगाते हैं उसे ही चरण पेड कहा जाता है ।तथा पूजा के पश्चात् खम्बे के ऊपर घूमने वाला पहिया लगाया जाता है। फिर अनुयायियों को पहिए की रस्सी में लगे हुक से लटकाया जाता है। इसमें उपासक के मेरुदण्ड में लोहे के दो हुक धसाकर लटकाते हैं। फिर पहिये को झूले की चक्री की तरह घुमाया जाता है। इस क्रिया में कई बार उपासक के प्राण भी निकल जाते हैं।
Fanny Parkes included a depiction of hook-swinging in her 'Wanderings of a Pilgrim in search of the picturesque...', London, 1850 (BL) |
- अन्य नाम - चडक, चरण पूजा, निल पूजा, हजरा पूजा, Hook-swinging
- अराध्य देव - शिव और शक्ति
- अनुयायी - हिन्दू
- कब(समय) -चेत्र माह की आखरी संक्रांति पर आधी रात के वक्त
- कहां-पश्चिमी बंगाल, दक्षिणी बांग्लादेश।
- अन्य समान से त्योहार - बगाड(महाराष्ट्र में), सिरीमनु उत्सवम(Sirimanu utsavam) आन्ध्र प्रदेश।
- मान्यता :-
इस त्योहार में आस्था रखने वाले लोगों का मानना है कि इसमें शिव व शक्ति की आराधना कर उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश की जाती है जिससे वे भक्त को पिछले दुःख व कष्टों से मुक्ति देते हैं तथा समृद्धि लाते हैं।. इसके अलावा मोक्ष की कामना से भी उपासक उपासना करते हैं।
- चरक पूजा की तैयारी :-
उपासक की टीम एक माह पूर्व से शिव व काली की मूर्ति लेकर गांव गांव घूमते हैं। तथा पूजा के लिए आवश्यक सामग्री जैसे - धान, तेल, चीनी, नमक, शहद, पैसे आदि एकत्र करते हैं।
- चरक पूजा :-
इस दिन मेला लगता है। मेले के पूर्व रात को तांत्रिक क्रिया होती हैं। जिसमें आधी रात को चार अनुयायीयों को चार दिशाओं में तलवार लेकर भेजा जाता है जो सुबह तक मानव खोपड़ी कहीं से भी लेकर आते हैं। जिसे चरक मंदिर में दबा दिया जाता है। एक साल बाद उसी खोपडी को निकालकर उससे पूछा की जाती है। फिर तांत्रिक विधि से चरक का पेड लगाया जाता है।
- चरक पेड:-
एक सखुआ का खम्भा लगाते हैं उसे ही चरण पेड कहा जाता है ।तथा पूजा के पश्चात् खम्बे के ऊपर घूमने वाला पहिया लगाया जाता है। फिर अनुयायियों को पहिए की रस्सी में लगे हुक से लटकाया जाता है। इसमें उपासक के मेरुदण्ड में लोहे के दो हुक धसाकर लटकाते हैं। फिर पहिये को झूले की चक्री की तरह घुमाया जाता है। इस क्रिया में कई बार उपासक के प्राण भी निकल जाते हैं।- शिव शक्ति को समर्पित इस पूजा में कठिन तपस्या के तहत उपासकों को चरम शारिरिक दर्द व तनाव से गुजरना पड़ता है। जैसे कि हुक से लटकना, आग पर चलना, हजारों कीलों पर सोना, मिट्टी के नीचे दफन होना। इसके अलावा बॉडी को पेंट करना, अलग अलग कॉस्ट्यूम पहनना, औरतों द्वारा व्रत रखना आदि भी होता है । सरकार द्वारा प्रतिबंधित किये जाने पर भी यह प्रथा दूरदराज के क्षेत्रों में देखने को आज भी मिल जाती है।
- इस मेले में रोंगटे खडे कर देने वाले अद्भुत करतब दिखाए जाते हैं। बहुतों के लिए यह पागलपन या अजीब हो सकता है पर कुछ के लिए यह एक घोर आस्था है।
- संदर्भ :चित्र गूगल से, विकीपीडिया, navbharattimes. Indiatimes. Com, amarujala. Com, baskar. Com, prabhstksbar. Com, http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00routesdata/1800_1899/hinduism/hookswinging/hookswinging.html
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