भारत-श्रीलंका सम्बन्ध
आर्थिक संकट में फंसे श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग समाप्त हो चुका है. इस संकट से उबरने के लिए श्रीलंका दो एशियाई दिग्गजों, चीन और भारत की तरफ उम्मीदों से देख रहा है. भारत ने श्रीलंका को 90 करोड़ डॉलर से अधिक का कर्ज देने की घोषणा की है। इससे देश को विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने और खाद्य आयात में मदद मिलेगी।
श्रीलंका
श्रीलंका (आधिकारिक नाम श्रीलंका समाजवादी जनतांत्रिक गणराज्य) दक्षिण एशिया में हिन्द महासागर के उत्तरी भाग में स्थित एक द्वीपीय देश है। भारत के दक्षिण में स्थित इस देश की दूरी भारत से मात्र ३१ किलोमीटर है। और यह भारत से दक्षिण में स्थित पाक जलडमरूमध्य से पृथक् होता है। यहाँ बहुमत संख्या में सिंहली तथा अल्पमत संख्या में तमिल भाषा-भाषी लोग रहते हैं।
लंका (सीलोन) :
1. श्रीलंका:
- 500 ई.पू. में भड़ौच के एक हिन्दू 'विजय' ने लंका अभियान का नेतृत्त्व किया तथा वहां एक पश्चिमी हिन्दू भाषा चलाई व उपनिवेश स्थापित किया।
- अशोक ने अपने पुत्र महेन्द्र एवं पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु लंका भेजा।अशोक के काल में वहां एक उन्नतशील बौद्ध समुदाय की स्थापना हुई।
- पाँचवी शताब्दी में बौद्ध भिक्षु 'बुद्ध घोष' ने श्रीलंका की यात्रा की तथा वहीं अनुराधापुर में बस गया। उन्होंने कई महत्त्वपूर्णग्रंथों व टीकाओं का पालि में अनुवाद किया। उन्होंने 'विसुद्धमग्ग' (शुद्धिकरण का मार्ग) नामक ग्रंथ की रचना भी की, जो 'थेरवादी बौद्ध सम्प्रदाय' का सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ माना जाता है। 'इसुरूमुनिया' तथा 'वेस्सागिरिया' लंका के प्राचीन बौद्ध स्मारक स्थल हैं।
- 500 ई.पू. में भड़ौच के एक हिन्दू 'विजय' ने लंका अभियान का नेतृत्त्व किया तथा वहां एक पश्चिमी हिन्दू भाषा चलाई व उपनिवेश स्थापित किया।
- अशोक ने अपने पुत्र महेन्द्र एवं पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु लंका भेजा।अशोक के काल में वहां एक उन्नतशील बौद्ध समुदाय की स्थापना हुई।
- पाँचवी शताब्दी में बौद्ध भिक्षु 'बुद्ध घोष' ने श्रीलंका की यात्रा की तथा वहीं अनुराधापुर में बस गया। उन्होंने कई महत्त्वपूर्णग्रंथों व टीकाओं का पालि में अनुवाद किया। उन्होंने 'विसुद्धमग्ग' (शुद्धिकरण का मार्ग) नामक ग्रंथ की रचना भी की, जो 'थेरवादी बौद्ध सम्प्रदाय' का सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ माना जाता है। 'इसुरूमुनिया' तथा 'वेस्सागिरिया' लंका के प्राचीन बौद्ध स्मारक स्थल हैं।
- राजराज प्रथम (985-1014 ई.)
सिंहल विजय :- राजराज प्रथम के समय सिंहल राज्य के उत्तरी भागों पर चोल शासन स्थापित हुआ था।
- केरल पाण्ड्य तथा सिंहल आदि शासकों के विद्रोहों का दमन : जिस समय राजेन्द्र प्रथम द.पू.एशियाई राज्यों की विजयों में व्यस्त था, सुन्दर पाण्ड्य के नेतृत्व में इन तीन राज्यों ने उसके विरूद्ध एक संयुक्त मौर्चा बना विद्रोह कर दिया। राजेन्द्र ने अपने युवराज 'राजाधिराज प्रथम' (1044-1052)को इन विद्रोहों का दमन करने हेतु भेजा, जिसमें वह पूर्णतः सफल हुआ। 1014 ई. में सिंहल के पूर्व शासक 'महेन्द्र पंचम' के पुत्र 'कस्यप' ने 'विक्रम बाहु प्रथम' नाम से स्वयं को स्वतन्त्र कर लिया। राजाधिराज ने युद्ध में उसका सिर काट लिया तथा विद्रोह का दमन किया।
- 1080 ई. के दशक में श्रीलंका तथा उसके पश्चात मालदीव के विरूद्ध चोलों के सैन्य अभियान मात्र लूट के लिए नही बल्कि उनका उद्देश्य व्यापारिक केन्द्रों पर नियन्त्रण प्राप्त करना था। श्रीलंका तथा दक्षिण भारत के मध्य मुक्त व्यापार का केन्द्र 'केण्टन' का बन्दरगाह था।
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