Header Ads Widget

Ticker

6/recent/ticker-posts

भारत-श्रीलंका संबंध एतिहासिक परिपेक्ष में

 भारत-श्रीलंका सम्बन्ध

for video click here ➡




आर्थिक संकट में फंसे श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग समाप्त हो चुका है. इस संकट से उबरने के लिए श्रीलंका दो एशियाई दिग्गजों, चीन और भारत की तरफ उम्मीदों से देख रहा है. भारत ने श्रीलंका को 90 करोड़ डॉलर से अधिक का कर्ज देने की घोषणा की है। इससे देश को विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने और खाद्य आयात में मदद मिलेगी।

श्रीलंका



श्रीलंका (आधिकारिक नाम श्रीलंका समाजवादी जनतांत्रिक गणराज्य) दक्षिण एशिया में हिन्द महासागर के उत्तरी भाग में स्थित एक द्वीपीय देश है। भारत के दक्षिण में स्थित इस देश की दूरी भारत से मात्र ३१ किलोमीटर है। और यह भारत से दक्षिण में स्थित पाक जलडमरूमध्य से पृथक् होता है। यहाँ बहुमत संख्या में सिंहली तथा अल्पमत संख्या में तमिल भाषा-भाषी लोग रहते हैं। 

लंका (सीलोन) :


1. श्रीलंका:


प्राचीनकाल में श्रीलंका को रत्नद्वीप, ताम्रपणि एवं सिंहल द्वीप के नाम से का जाता था।
ईलियट के अनुसार "लंका पहला स्थान है, जहां भारतीय सभ्यता के विकास का विवरण मिलता है।"


  • 500 ई.पू. में भड़ौच के एक हिन्दू 'विजय' ने लंका अभियान का नेतृत्त्व किया तथा वहां एक पश्चिमी हिन्दू भाषा चलाई व उपनिवेश स्थापित किया। 
  • अशोक ने अपने पुत्र महेन्द्र एवं पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु लंका भेजा।अशोक के काल में वहां एक उन्नतशील बौद्ध समुदाय की स्थापना हुई।
  • पाँचवी शताब्दी में बौद्ध भिक्षु 'बुद्ध घोष' ने श्रीलंका की यात्रा की तथा वहीं अनुराधापुर में बस गया। उन्होंने कई महत्त्वपूर्णग्रंथों व टीकाओं का पालि में अनुवाद किया। उन्होंने 'विसुद्धमग्ग' (शुद्धिकरण का मार्ग) नामक ग्रंथ की रचना भी की, जो 'थेरवादी बौद्ध सम्प्रदाय' का सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ माना जाता है। 'इसुरूमुनिया' तथा 'वेस्सागिरिया' लंका के प्राचीन बौद्ध स्मारक स्थल हैं।

  • 500 ई.पू. में भड़ौच के एक हिन्दू 'विजय' ने लंका अभियान का नेतृत्त्व किया तथा वहां एक पश्चिमी हिन्दू भाषा चलाई व उपनिवेश स्थापित किया। 
  • अशोक ने अपने पुत्र महेन्द्र एवं पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु लंका भेजा।अशोक के काल में वहां एक उन्नतशील बौद्ध समुदाय की स्थापना हुई।
  • पाँचवी शताब्दी में बौद्ध भिक्षु 'बुद्ध घोष' ने श्रीलंका की यात्रा की तथा वहीं अनुराधापुर में बस गया। उन्होंने कई महत्त्वपूर्णग्रंथों व टीकाओं का पालि में अनुवाद किया। उन्होंने 'विसुद्धमग्ग' (शुद्धिकरण का मार्ग) नामक ग्रंथ की रचना भी की, जो 'थेरवादी बौद्ध सम्प्रदाय' का सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ माना जाता है। 'इसुरूमुनिया' तथा 'वेस्सागिरिया' लंका के प्राचीन बौद्ध स्मारक स्थल हैं।
  • राजराज प्रथम (985-1014 ई.)
राजराज प्रथम के राज्यारोहण के साथ ही चोल शक्ति का उत्कर्ष प्रारम्भ हुआ। 
तिरूवलंगाडु ताम्रपत्र अभिलेखों में राजराज प्रथम की श्रीलंका विजय का उल्लेख है।
राजराज प्रथम ने श्रीलंका पर आक्रमण कर उसके शासक महेन्द्र (महिन्द) पंचम को पराजित किया और श्रीलंका के उत्तरी भाग को चोल साम्राज्य का एक प्रान्त बना दिया और इसे मुम्डिचोलमण्डलम् का नाम दिया।
चोल सेनाओं ने श्रीलंका की प्राचीन राजधानी अनुराधापुर को नष्ट कर पोलन्नरूआ को चोल प्रान्त की नई राजधानी बनाया व इसका नाम जयनाथ मंडलम रखा।
उसने श्रीलंका विजय की स्मृति में वहां एक शिव मन्दिर का निर्माण करवाया।

सिंहल विजय :- राजराज प्रथम के समय सिंहल राज्य के उत्तरी भागों पर चोल शासन स्थापित हुआ था। 

अतः उसके पुत्र राजेन्द्र प्रथम ने सम्पूर्ण श्रीलंका (सिंहल) विजय कर उस पर अधिकार कर लिया। सिंहल नरेश 'महेन्द्र पंचम' बन्दी बनाकर चोल राज्य में लाया गया, जहाँ 12 वर्ष तक बन्दीगृह में रहने के पश्चात 1029ई. में उसकी मृत्यु हो गई। सिंहली ग्रन्थ 'महावंश' तथा 'करन्दै ताम्रपत्र' में उसकी सिंहल विजय का वर्णन मिलता है।
श्रीलंका एवं मालद्वीप पर जलसेना के कारण चोल नियन्त्रण बना हुआ था जिसके कारण पूर्वी जगत, विशेषत: चीन के साथ व्यापार को भी प्रोत्साहन मिल रहा था
  • केरल पाण्ड्य तथा सिंहल आदि शासकों के विद्रोहों का दमन : जिस समय राजेन्द्र प्रथम द.पू.एशियाई राज्यों की विजयों में व्यस्त था, सुन्दर पाण्ड्य के नेतृत्व में इन तीन राज्यों ने उसके विरूद्ध एक संयुक्त मौर्चा बना विद्रोह कर दिया। राजेन्द्र ने अपने युवराज 'राजाधिराज प्रथम' (1044-1052)को इन विद्रोहों का दमन करने हेतु भेजा, जिसमें वह पूर्णतः सफल हुआ। 1014 ई. में सिंहल के पूर्व शासक 'महेन्द्र पंचम' के पुत्र 'कस्यप' ने 'विक्रम बाहु प्रथम' नाम से स्वयं को स्वतन्त्र कर लिया। राजाधिराज ने युद्ध में उसका सिर काट लिया तथा विद्रोह का दमन किया।
  • 1080 ई. के दशक में श्रीलंका तथा उसके पश्चात मालदीव के विरूद्ध चोलों के सैन्य अभियान मात्र लूट के लिए नही बल्कि उनका उद्देश्य व्यापारिक केन्द्रों पर नियन्त्रण   प्राप्त करना था। श्रीलंका तथा दक्षिण भारत के मध्य मुक्त व्यापार का केन्द्र 'केण्टन' का बन्दरगाह था।


कुलोत्तुंग प्रथम (1070-1120 ई० )

यह  चोल शासक राजेन्द्र प्रथम का प्रपौत्र था। ★ कुलोत्तुंग प्रथम के साथ ही चोल चालुक्य वंश की शुरुआत हुई।  
कुलोत्तुंग के समय में श्रीलंका के राजा विजयबाहु ने अपनी स्वतन्त्रता घोषित की । किन्तु उसने श्रीलंका में चोल प्रभाव की समाप्ति के प्रति किसी कटुता का प्रदर्शन नहीं किया तथा अपनी पुत्री का विवाह श्रीलंका के राजकुमार वीरप्पेरुमाल के साथ कर दिया।

आधुनिक काल:-

भारत की तरह श्रीलंका भी 150 वर्षों तक विदेशी शक्तियों द्वारा उपनिवेशीकरण का शिकार रहा। यहाँ पर सर्वप्रथम पुर्तगालियों ने अधिकार किया उसके बाद में डचों ने और अन्त में उनका स्थान अंग्रेजों ने ले लिया।1972 तक इसका नाम सीलोन (अंग्रेजी:Ceylon) था, जिसे 1972 में बदलकर लंका तथा 1978 में इसके आगे सम्मानसूचक शब्द "श्री" जोड़कर श्रीलंका कर दिया गया। श्रीलंका का सबसे बड़ा नगर कोलम्बो समुद्री परिवहन की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण बन्दरगाह है। श्रीलंका और भारत के बीच राम सेतु भी है मौजूद है।
श्रीलंका के अधिकांश भारतीय प्रवासी-जिसमें ज्यादातर दक्षिण भारत के थे- जिन्हें अंग्रेजों द्वारा चाय और रबड़ के बागानों में काम करने के लिए ले जाया गया था। वे 1948 में श्रीलंका के स्वतन्त्र होने तक ब्रिटिश नागरिकों के रूप में समान अधिकारों एवं मताधिकार का प्रयोग करते थे।
किन्तु स्वतन्त्रता के बाद 1948 के सीलोन नागरिकता अधिनियम तथा 1949 के सीलोन संसदीय अधिनियम (निर्वाचन कानून) द्वारा भारतीय प्रवासियों को मताधिकार से वंचित कर दिया गया.
इस समस्या के समाधान के लिए जनवरी 1954 में श्रीलंका के राष्ट्रपति जान कोटले वाला नई दिल्ली आये और नेहरू के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया जो नेहरू-कोटले वाला समझौते के नाम से प्रसिद्ध है।





































Post a Comment

0 Comments